डॉ. के पी द्विवेदी शास्त्री
Mal Maas 2023: अधिकमास, मलमास और पुरुषोत्तम मास एक नियति के अंदर निर्मित किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु का परम सत्रु हिरण्यकश्यप अधर्मी, पापी एक राक्षस स्वरूप था। उसका राज्य पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई, जिसका पूर्व में नाम हरिद्रोही था और नाम बिगड़ते बिगड़ते अपभ्रंश हो गया है, जो हरदोई के नाम से जाना जाता है। हिरण्यकश्यप को ब्रम्हाजी का वरदान था कि कोई भी नर-नारी, पशु, देवता, राक्षस किसी रूप में देवी देवता उसका वध नहीं कर सकते।
हिरण्यकश्यप ने वरदान लिया था कि मैं न आकाश में, न पाताल में, किसी भी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र से मेरा वध न हो। ब्रह्माजी ने कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा। हिरण्यकश्यप अधर्मी, आततायी, मांगलिक कार्यों से नफरत करता था। वह कहता था मैं ही ब्रह्मा, मैं ही विष्णु, मैं ही शंकर कहाया हूं। तीनों लोकों में मैं ही समाया हूं। उसके इस अभिमान को देखकर देवी देवता, त्रिदेव खिन्न थे। त्रिदेव ने सोचा कि इसका वध कैसे किया जाये?
हिरण्यकश्यप का हरिभक्त पुत्र
हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे, जिनका नाम प्रह्लाद, अनुहल्लाद, संहलाद और हल्लाद था। उसका पुत्र प्रह्लाद हरि भक्त था। वह कहता था कि सब कुछ हरि हैं। आप कुछ भी नहीं हैं। प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने काफी प्रयास किए, पर वह असफल रहा। उसने अपनी बहन होलिका को कहा कि हमारे पुत्र प्रहलाद को किसी भी प्रकार मृत्यु दो या उसे हरि का नाम लेने से रोको।
बहन होलिका को वरदान
बहन होलिका ने कहा कि मैं प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ जाऊंगी। मुझे वरदान है कि मुझे अग्नि नहीं जला सकती। प्रह्लाद अग्नि में भस्म हो जाएगा। मैं वरदान के कारण बच जाऊंगी। उसने ऐसा ही किया। उसने अग्नि जलवाई। अग्नि धूं-धूं करके जलने लगी और वे अग्नि में उतर गई। जिस वस्त्र से होलिका को बचना था, वह उड़कर प्रह्लाद पर गिर गया। होलिका भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। उसी दिन से भारत में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
त्रिदेव ने ऐसे तोड़ा ब्रह्माजी का वरदान
हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसे न तो किसी मनुष्य, न स्त्री, देवी, देवता न दैत्य मार सकते, न अंदर मरे न बाहर, न दिन में मरे न रात में, न अस्त्र से न शस्त्र से, न जलकर मरे न पानी में, न आकाश में मरे, न पृथ्वी में और उसे बारह मास में किसी भी दिन नहीं मारा जा सकता था। उसको तोड़ने के लिए त्रिदेव ने अधिकमास, जिसे मलमास के नाम से भी जाना जाता है का निर्माण किया। भगवान विष्णु ने इसे पुरुषोत्तम मास का नाम दिया। इसी मास में भगवान विष्णु ने भगवान नृसिंह का रूप धारण करके दहलीज में अपनी जांघों पर रखकर अपने नाखूनों से चीर कर हिरण्यकश्यप को मारा था, इसलिये इस मास में स्थायी मांगलिक कार्य, विवाह, यज्ञोपवी, मुंडन संस्कार आदि जैसे कार्य नहीं किए जाते हैं, क्योंकि हरि सैनी एकादशी को देव शयन करते हैं।
शंकर भगवान की उपासना का महत्व
इस दौरान केवल देवाधिदेव महादेव जागृत अवस्था में रहते हैं, इसलिए इस माह में शंकर भगवान की उपासना करने के लिए दो माह का समय है, जो एक अवसर है। दान, पूजा, यज्ञ आदि करने का हजार गुना लाभ मिलता है। इस माह में भागवत कथा का पाठ सुनने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस माह में “सालिग ग्राम ” भगवान की उपासना से विशेष लाभ मिलता है, क्योंकि सालिगग्राम विष्णु भगवान के स्वरूप हैं इसलिए प्रत्येक दिन सालिगग्राम भगवान के समक्ष साधकों को और भक्तों को घी का दीपक जलाना चाहिए।
सालिगग्राम भगवान की पूजा का विधान
मान्यता है कि सौभाग्यवती स्त्रियां सालिग ग्राम भगवान के समक्ष शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं, तो उन्हें अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। अधिकमास और मलमास में भागवत गीता का 14वां अध्याय का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि इस कार्य को करने से कार्य क्षेत्र में आ रही परेशानियां दूर हो जाएंगी। ब्रह्म मुहूर्त में पूजा पाठ का विशेष महत्व है, साथ ही इस मास में प्रातः स्नान, ध्यान के बाद गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। जप करने से सभी प्रकार के संकटों का नाश होता है। यही है पुरुषोत्तम मास और इसे मलमास, अधिकमास के नाम से भी जाना जाता है।
साधना और उपासना के लिए दो माह
गौरतलब है कि वर्ष 2023 में श्रावण के दो माह है। यह मास हिंदू पंचांग के अनुसार 18 जुलाई 2023 दिन मंगलवार से शुरू होगा। इसका समापन भी 16 अगस्त 2023 में बुधवार के दिन होगा। इस माह में हिंदू कलैण्डर के अनुसार एक महीना बढ़ जाता है। ऐसे में भगवान शिव के भक्तों के लिए साधना और उपासना के लिए दो माह मिल जाते हैं, जो श्रेष्ठ है। अधिक मास का निर्माण भगवान विष्णु ने अपना नाम देकर मास के महत्व को बढ़ाया है। यही कारण है कि पुरुषोत्तम मास एक अद्भुत मास है। हर तीसरे साल में इस मास का आगमन होता है, जो व्यक्ति श्रद्धा के साथ अच्छा कार्य करते हैं उसे कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दुर्लभ पुरुषोत्तम मास में दान, पूजन, धार्मिक अनुष्ठान करने पर कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण समिति दिल्ली, राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)