Krishna Motivational Story in Hindi: T20 वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल मैच में भारत इंग्लैंड के हाथों हार गया। इस पर तमाम भारतीय क्रिकेट प्रेमी टीम को कोस रहे हैं और अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। ऐसे में भगवान कृष्ण का जीवन चरित्र सहज ही याद हो आता है। मथुरा की एक कैद में माता देवकी के गर्भ से जन्मे कृष्ण ने अपने आचरण से मानव जाति के सामने कई ऐसे उदाहरण रखें जो जीने की राह दिखाते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है उनके ‘रणछोड़’ बनने का। जी हां, एक बार कृष्ण भी युद्ध को बीच में ही छोड़ कर मैदान से भाग गए थे फिर भी शत्रु का वध हुआ और हजारों निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा हुई।
यह है कृष्ण के ‘रणछोड़’ बनने की कहानी
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कंस का वध कर समस्त पृथ्वी लोक को उसके अत्याचारों से मुक्त कराने हेतु हुआ था। किशोरावस्था में ही वह गोकुल से मथुरा आ गए तथा दुष्ट कंस का वध किया। कंस की मृत्यु से दुखी उसके श्वसुर जरासंध ने एक विशाल सेना लेकर मथुरा पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में उसके साथ शिशुपाल और कालयवन जैसे शक्तिशाली राजा भी शामिल थे। जल्दी ही सेना मथुरा जा पहुंची और मथुरा की राजसभा में कृष्ण तथा बलराम को सेना को सौंपने का संदेश भेजा गया।
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इस युद्ध को टालने तथा मथुरा के निर्दोष नागरिकों को बचाने के लिए कृष्ण ने रातोंरात वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर समुद्र में एक नई नगरी ‘द्वारिका’ का निर्माण करवाया। अपनी माया से उन्होंने समस्त नागरिकों, उनके पशुओं तथा संपत्ति को नींद में ही नई नगरी में पहुंचा दिया। अगले दिन सूर्योदय के समय कृष्ण तथा बलराम जरासंध की सेना के सामने जा पहुंचे और उसे लड़ने के लिए चुनौती दी। जैसे ही जरासंध और दूसरे राजाओं ने कृष्ण को मारने के लिए शस्त्र उठाए, दोनों भाई भागने लगे। उन भाईयों के पीछे जरासंध तथा कालयवन जैसे राजा भी भागने लगे।
कुछ ही देर में दोनों भाई बहुत आगे निकल गए और उनके पीछे केवल मात्र कालयवन रह गया। उसे देवताओं ने वरदान दिया था कि उसकी हत्या किसी अस्त्र या शस्त्र से नहीं होगी। ऐसे में वह निर्भिक था और लगातार कृष्ण का पीछा करते-करते एक गुफा में जा पहुंचा। गुफा में राजा मुचुकुंद सो रहे थे जिन्हें इन्द्र देव ने वरदान दिया था कि जो भी उन्हें उठाएगा, वह उनके देखते ही जल कर भस्म हो जाएगा। वहां पहुंच कर कृष्ण ने सोए हुए मुचुकुंद पर अपना पीतांबर डाल दिया और स्वयं छिप गए।
कालयवन भी वहां जा पहुंचा और सोए हुए राजा मुचुकुंद पर पीतांबर देख उन्हें ही कृष्ण समझ बैठा। उसने मुचुकंद को उठाने के लिए लात मारी जिसके कारण उनकी निद्रा खुल गई और उनके देखते ही कालयवन वहीं पर जल कर भस्म हो गया। तत्पश्चात् कृष्ण ने राजा मुचुकुंद को अपने चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिए और उन्हें मोक्ष पाने का वरदान दिया। वहीं दूसरी ओर जरासंध और बाकी राजा पूरी तरह से खाली मथुरा देख कर वापिस लौट गए।
युद्ध से भाग कर कृष्ण ने रखा देवताओं के वरदान का मान
कृष्ण चाहते तो स्वयं भी कालयवन और अन्य अधर्मी राजाओं का वध कर सकते थे। परन्तु देवताओं के दिए वरदान का मान रखने के लिए ही उन्होंने कालयवन को राजा मुचुकुंद के हाथों मरवाया। इसी तरह बाद में जरासंध का वध पांडु पुत्र भीम के हाथों करवा कर भूधरा का भार कम किया।
इस तरह कृष्ण ने दिया दुनिया को उदाहरण
इस कहानी के बाद कृष्ण के नाम के साथ हमेशा के लिए ‘रणछोड़’ जोड़ दिया। कृष्ण की इस कहानी से सीख मिलती है कि अनावश्यक ताकत का प्रदर्शन नहीं कर बुद्धिबल से काम लेना चाहिए। इस तरह हम अपनी शक्ति को खर्च होने से रोक सकते हैं और बड़े से बड़े संकट का भी सामना कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष के ज्ञान पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। news24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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