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जब मन रौशन हुआ तब दिवाली, जानिए आर्चाय प्रशांत से क्या होता है त्यौहार का मतलब

Diwali 2023: आचार्य प्रशांत कहते हैं कि देखों, त्यौहार तो एक ही होता है और त्यौहार की रोशनी भी एक ही होती है। तो इनके अनुसार, दिवाली का मतलब जब मन रौशन हुआ तब दिवाली जानो। आइए कहानी को विस्तार से पढ़ते हैं।

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: Nov 12, 2023 15:51
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diwali
Acharya Prashant

Diwali 2023: हर त्यौहार एक ही होता है और उसकी रोशनी भी एक ही होती है। राम की कोई घर वापसी नहीं होती, आप की राम वापसी होती है। त्यौहार का मतलब होता है – ‘आप राम की ओर वापस गए।’ त्यौहार का मतलब होता है कि अँधेरे को रोशनी की सुध आ गयी और अँधेरा जब रोशनी की तरफ़ मिटता है तभी उसके कदम बढ़ते हैं। दिवाली क्या है ये जान लो फिर दिवाली अपने-आप सही तरीके से मनेगी, वर्ष भर रहेगी। त्यौहार का मतलब समझ रहे हो- ‘मज़ा आया, उत्सव हुआ, आनंदित हुए।’

रोशनी मतलब समझ रहे हो- ‘समझ में नहीं आता था, उलझे हुए थे, अँधेरा था, कुछ दिखाई नहीं पड़ता था, लड़खड़ा कर गिरते थे, उलझते थे; अब चीज़ साफ़ है, अब ठोकरें नहीं लग रही, अब चोट नहीं लग रही। वो आपको किसी एक दिन नहीं चाहिए, वो आपको लगातार चाहिए। अँधेरा, अँधेरे को पोषण देता है।

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अँधेरा, अँधेरे को देता है पोषण

अँधेरे के पास अँधेरे के तर्क होते हैं। रोशनी की तरफ़ बढ़ने का कोई तर्क नहीं होता है। रोशनी की तरफ़ बढ़ने का यही मतलब होता है कि अँधेरे की जो जंज़ीरें थीं, अँधेरे के जो तर्क थे, अँधेरे के जो एजेंट थे, जो दूत थे उनको कीमत देना छोड़ा। त्यौहार का मतलब ही यही है कि सत्य को –और सत्य कोई बाहरी बात नहीं है, आप जानते हैं सत्य को– त्यौहार का मतलब ही यही है कि सत्य को कीमत दी। इधर-उधर के प्रभावों से हमेशा दबे रहे थे, अब उन प्रभावों से बचे। अँधेरे की जंजीरों को, अँधेरे के षड्यंत्र को काट डाला। और यह ध्यान आपको किसी एक दिन नहीं बल्कि लगातार चाहिए।

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हो उल्टा जाता है। जितना ज़्यादा आप दूसरों से वर्ष भर प्रभावित नहीं रहते, उतना आप त्यौहारों में हो जाते हैं। बच्चे पटाखे फोड़ रहे हैं और वो देख रहे हैं कि पड़ोसी ने कितने फोड़े। आप घर सजा रहे हैं, आप देख रहे हैं कि आपका घर पिछले वर्ष की तुलना में कैसा लग रहा है। खरीददारी हो रही है और खरीददारी हो ही इसीलिए रही है कि हर कोई और खरीद रहा है। बाज़ारें सजी हुई हैं, क्यों सजी हुई हैं? क्योंकि सबको खरीदना है। ये तो अँधेरा और सघन हो रहा है न? ये रोशनी थोड़े ही है।

रोशनी तो निजी होती है। अँधेरा सामूहिक होता है। त्यौहार कोई सामूहिकता की बात हो ही नहीं सकती। समूह तब है जब आप अलग-अलग बने रहें लेकिन झुण्ड में नज़र आएँ। प्रेम तब है जब आप भले ही अलग-अलग नज़र आते हैं लेकिन अलगाव जैसा कुछ महसूस नहीं होता।

त्यौहार को किसी दिन विशेष से ना जोड़ें, त्यौहार संकेत है आपके होने का। यह रोशनी, यह दिये, यह राम, यह रावण ये सब आपसे कुछ कहना चाहते हैं और ये कोई एक दिन की बात नहीं है बल्कि जीवन की बात है, जीवन पूरा ऐसा हो कि अँधेरा हावी नहीं होने देंगे, लगातार उतरोत्तर राम की ओर ही बढ़ते रहेंगे।

यह पिस्ते, यह मेवे, यह उपहार, यह अलंकार – ये थोड़े ही हैं दिवाली। जब मन रोशन हुआ तब दिवाली जानना। पटाखे नहीं फोड़ने होते, झूठ फोड़ना होता है। तो इस दिवाली वो सब छोड़ दो जिसमें अप्रेम है। फिर बजा दो बम, गूँज बहुत देर और दूर तक सुनाई देगी।

दिवाली अच्छी बीती या नहीं यह दिवाली के अगले दिन को तय करने दो, और अगले हफ्ते को और अगले महीने को और काल की पूरी श्रृंखला को क्योंकि यदि असली से तुम्हारा परिचय एक बार हो तो सदा के लिए हो जाता है, वो फिर छूटेगा नहीं। उत्सव के बाद आर्तनाद नहीं आ सकता।

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Edited By

Raghvendra Tiwari

First published on: Nov 12, 2023 03:51 PM

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