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आखिर क्यों होती है देव दिवाली पर भगवान शिव की पूजा, जानें पौराणिक कथा

Dev Diwali 2023 Katha: देव दिवाली कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि देव दिवाली के दिन भगवान शिव की पूजा क्यों की जाती है। अगर नहीं तो आइए इस खबर में विस्तार से जानते हैं।

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: Nov 27, 2023 08:32
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Dev Diwali 2023
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Dev Diwali 2023 Katha:  सनातन धर्म में जिस तरह दिवाली का पर्व मनाई जाती है ठीक उसी प्रकार देव दीपावली भी मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली का पर्व आता है। मान्यता है कि यह दिवाली सभी देव की कृपा अपने साथ लेकर आता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दिवाली के 15 दिन बाद देव दिवाली का पर्व मनाई जाती है। ज्योतिषियों के अनुसा, देव दिवाली के दिन दीपदान का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। मान्यता है कि देव दिवाली के दिन सभी देव काशी में उत्सव मनाने के लिए आते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में देव दिवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करना बेहद खास होता है। लेकिन क्या आपने सोचा है आखिर देव दिवाली के दिन भगवान शिव की पूजा क्यों होती हैं अगर नहीं तो आइए आज इस खबर के माध्यम से जानेंगे कि देव दिवाली के दिन भगवान शिव की पूजा करने की वजह के बारे में।

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क्यों होती है देव दिवाली के दिन भगवान शिव की पूजा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय भगवान के हाथों से तारकासुर का वध हुआ था। मान्यता है कि तारकासुर के वध के बाद उसके तीनों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने सभी देवी-देवताओं से बदला लेने का प्रतिज्ञा लिया। इसके बाद तीनों दैत्यों ने दिव्य और मायावी शक्तियों से एक दूसरे को एक शरीर में ढाल लिया। यानी कहा जाए तो तीनों दैत्यों ने एक ही शरीर में अपनी-अपनी आत्माओं को समाहित कर लिया। इसके बाद तीनों दैत्यों ने अपना नाम त्रिपुरासुर रखा।

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त्रिपुरासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या करना शुरु कर दिया ताकि वह अपने पिता की मृत्यु का बदला देवों से ले सके। त्रिपुरासुर के कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया कि उनके द्वारा जब तीन पुरियां अभिजित नक्षत्र में एक ही पंक्ति में सौर मंडल में सभी एक साथ नजर आएंगी तब उस समय देवों से बने रथ और ग्रहों के बनें बाण से ही त्रिपुरासुर की मृत्यु होगी। वरना कभी नहीं हो सकती हैं।

ब्रह्मा जी से वरदान पाकर त्रिपुरासुर ने अपना आतंक बढ़ाना शुरू दिया। इसके बाद तीनों लोकों में हाहाकार मच गया है। तब भगवान श्री गणेश ने एक दिव्य रथ तैयार किया। उसके बाद पृथ्वी माता ने रथ का आकार लिया, सूर्य देव और चंद्र देव पहिए बने। इसके बाद सृष्टि सारथी बने और भगवान विष्णु बाण बने, वासुकी नाग धनुष की डोर बने और मेरु पर्वत धनुष बने। इन सभी देवताओं के बने रथ पर भगवान शिव सवार होकर धनुष बाण से त्रिपुरा सुर का वध किया । उस समय कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसलिए सभी देवी-देवता इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हुए दिवाली मनाई।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

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Written By

Raghvendra Tiwari

First published on: Nov 27, 2023 08:00 AM

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