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Chandrama Rohini Story: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा का विशेष महत्व है। कहा जाता है चंद्र देव का विवाह राजा दक्ष की 27 पुत्रियों के साथ हुआ था। चंद्र देव के विवाह का मुख्य कारण उनका सौन्दर्य था। एक समय चंद्र देव को भी अपनी सुंदरता पर घमंड था, जिसकी वजह से उन्हें भी एक बार श्राप मिल गया। कहते हैं कि इस श्राप की वजह से ही चंद्रमा का प्रकाश कृष्ण पक्ष में क्रमशः घटता जाता है और शुक्ल पक्ष में इनका सौन्दर्य देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चंद्र देव के साथ ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से ये कृष्ण पक्ष में इनका तेज क्रमशः कम होता चला जाता है। आइए जानते हैं चंद्रमा और रोहिणी नक्षत्र से जुड़ी दिलचस्प कथा।
चंद्रमा और रोहिणी की पौराणिक कथा
धर्म ग्रंथों के मुताबिक, राजा दक्ष की 27 पुत्रियां थीं। जिनमें से एक का नाम रोहिणी था, जिसे नक्षत्र के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं कि राजा दक्ष की 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था। एक दिन चंद्रमा जब विचरण करने के लिए निकले तब उनकी नजर राजा दक्ष की पुत्री रोहिणी पर पड़ी। इस क्रम में चंद्रमा का मन रोहिणी पर आसक्त हो गया। जबकि दूसरी ओर चंद देव की सुंदरता और तेज को देखकर राजा दक्ष की अन्य पुत्रियों का का दिल भी उन पर आ गया।
चंद्रमा को जब इस बात की जानकारी हुई कि रोहिणी और उनकी अन्य पुत्रियां चंद्र देव के प्रेम में आसक्त हो गई हैं तो वे अविलंब राजा दक्ष के पास पहुंचे। जिसके बाद उन्होंने राजा दक्ष के समक्ष उनकी 27 पुत्रियों से विवाह का प्रस्ताव रखा। राजा दक्ष को इस बारे में जानकर आश्चर्य तो हुआ, लेकिन जब उन्हें पुत्रियों की इच्छा का पता चला तो उन्होंने उन्हें बहुत हद तक समझाने का प्रयास किया। मगर दक्ष प्रजापति के लाख समझाने के बाद भी जब उनकी पुत्रियां ना मानीं तो वे अपनी पुत्रियों का विवाह अपनी 27 पुत्रियों के साथ करने के लिए राजी हो गए। इसके बाद विधि-विधान से राज दक्ष की 27 पुत्रियों से चंद्र देव का विवाह संपन्न हो गया। विवाहोपरांत, राजा दक्ष की सभी पुत्रियां चंद देव के साथ चंद्र लोग के लिए प्रस्थान कर गईं।
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चंद्रमा का रोहिणी के प्रति था सबसे अधिक प्रेम
पौराणिक कथा के मुताबिक, चंद्र देव राजा दक्ष की 27 पुत्रियों में से सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे। जिसकी वजह से उनकी बाकी पत्नियां खुद को अपेक्षित महसूस करने लगीं। कहते हैं कि चंद्र देव की उपेक्षा से नाराज होकर राजा दक्ष की बाकी पुत्रियां उनके पास इसका उचित समाधान जानने के लिए पहुंचीं।
राजा दक्ष की पुत्रियों ने की पिता से शिकायत
जब राजा दक्ष की पुत्रियां उनके पास अचानक पहुंची तो वे चौंक गए और इसका कारण पूछा। जिसके बाद सभी ने अपने पिता के समक्ष सारा वृतांत रख दिया और इसका निराकरण करने के लिए कहा। जिसके बाद राजा दक्ष चंद्रमा से मिलने हेतु चंद्र लोक पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने चंद्र देव के ऐसा ना करने को कहा।
जब राजा दक्ष ने दिया था चंद्रमा को श्राप
चंद्र देव ने राजा दक्ष की बातों को ध्यान से सुना और आगे से ऐसा ना करने का आश्वासन दिया। हालांकि चंद्र देव ने रोहिणी के प्रति अपने अगाध प्रेम को नहीं त्याग पाए। एक दिन जब राजा दक्ष को चंद्रमा द्वारा अपनी बात की अवहेलना का पता चला तो वे क्रोध से आग बबूला हो गए। कहते हैं कि इसी क्रम में क्रोध में आकर चंद्रमा को श्राप दिया, “हे चंद्रमा! तुम्हें जिस जिस सुंदरता और तेज पर इतना अहंकार है, वह आगे नहीं रहेगा।” इसके साथ ही राजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया।
जिसकी वजह से चंद्रमा का तेज कम हो गया। राजा दक्ष के श्राप के परिणामस्वरूप चंद्रमा के पास न तो सुंदरता बची और ना ही पहले जैसा तेज। हालांकि कालांतर में चंद्र देव को इस श्राप से मुक्ति तो न मिली, परंतु शिव जी की कृपा से श्राप का प्रभाव जरूर कम हो गया। शिवजी ने चंद्रमा को आशीर्वाद दिया कि उनका तेज कृष्ण पक्ष में क्रमशः घटेगा और शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तक उनका तेज बढ़ता जाएगा। यही वजह है कि कृष्ण पक्ष में चंद्र देव निष्तेज हो जाते हैं और शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तिथि को सौंदर्य के शिखर पर होते हैं।
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