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Bhadra on Raksha Bandhan: रक्षा बंधन का त्योहार हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि पर भद्रा-रहित काल में मनाया जाता है। दरअसल रक्षा बंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार भी रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहने वाला है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर भद्र है कौन? और रक्षाबंधन व होली में इस पर क्यों विचार किया जाता है।
कौन है भद्रा?
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक भद्रा, भगवान सूर्य की पुत्री का नाम है। जो कि शनि देव की बहन भी मानी जाती हैं। जिस तरह शनिदेव न्याय को लेकर कठोर माने जाते हैं, उसी प्रकार भद्रा का भी स्वभाव है। मान्यता है कि पौराणिक काल में भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हें काल गणना के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया। यही वजह है कि भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य निषेध माना जाता है। जिस कारण रक्षाबंधन और होली में इस पर प्रमुखता से विचार किया जाता है।
भद्रा को मिला है ब्रह्मा जी का श्राप
पौराणि कथा के मुताबिक, एक बार ब्रह्मा जी ने भद्रा को श्राप दिया था कि जो कोई भी भद्रा काल में किसी तरह का शुभ कार्य करेगा, उसे उसमें सफलता नहीं मिलेगी। यही वजह है कि भद्राकाल में किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। दरअसल इस दौरान शुभ कार्य करने से उसमें सफलता हासिल नहीं होती। यही वजह है कि भद्रा काल में राखी नहीं बांधी जाती।
भद्रा विचार के लिए मंत्र
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा
श्रावणी नृपति हन्ति ग्रामं हन्ति च फाल्गुनी
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है कि भद्रा काल के दौरान किसी भी हाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्त नहीं होती है। ऐसे में रक्षाबंधन पर आप भी यह बात ध्यान रखें।