Sankatnashan Ganesh Stotram: शास्त्रों में गजानन गणपति को विध्नहर्ता भी कहा गया है। उनकी आराधना से भक्तों के जीवन में आ रही सभी बाधाएं इस तरह दूर हो जाती हैं जैसे कि तेज हवा चलने के बाद बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। यही कारण है कि किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य में गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम की जाती है। समस्त प्रकार के वैदिक, तंत्रोक्त तथा अन्य प्रकार के कर्मकांडों में भी उमासुत को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है।
ग्रंथों में गणेशजी के बहुत से उपाय भी बताए गए हैं। इन उपायों को करके भक्त अपनी सभी समस्याओं से बहुत ही सरलता से मुक्ति पा सकते हैं। ऐसे ही उपायों में एक उपाय है ‘संकटनाशनगणेशस्तोत्रम्’ का पाठ करना। जब कभी जीवन में ऐसा संकट आ जाए जिसका समाधान न दिखाई दें तो इसे अवश्य आजमाना चाहिए।
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कैसे करें ‘संकटनाशनगणेशस्तोत्रम्’ का अनुष्ठान
इस उपाय को किसी शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में आरंभ करें। स्नान आदि कर स्वच्छ, धुले हुए वस्त्र पहन कर गणपति की पूजा करें। भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान कार्तिकेय एवं नंदीश्वर की पूजा करें। गणेशजी को फल, फूल, पुष्प, मौली, सुपारी, जनेऊ, पान, लड्डू तथा नैवेद्य चढ़ाएं। इसके बाद संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् का कम से कम 108 बार पाठ करें। इसके बाद अगले 100 दिनों तक लगातार इस प्रयोग को करते रहें। ऐसा करने से बड़ा से बड़ा कर्जा भी चुक जाता है। इसके अलावा यदि उस पर कोई बड़ा संकट आया होता है तो वह भी टल जाता है। संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् निम्न प्रकार है-
संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् (Sankatnashan Ganesh Stotram)
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्, भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु:कामार्थसिद्धये ।।१ ।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्, तृतीयं कृष्णपिङ्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।२ ।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च, सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।३ ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्, एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।४ ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:, न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।५ ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्, पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।६ ।।
जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्, संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।७ ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्, तस्य विद्या भवेत्सर्वा ग
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हिंदी अर्थ: नारद जी बोले – पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवास का नित्यप्रति स्मरण करें। पहला वक्रतुण्ड (टेढे मुखवाले), दुसरा एकदन्त (एक दांतवाले), तीसरा कृष्ण पिंगाक्ष (काली और भूरी आंख वाले), चौथा गजवक्र (हाथी के से मुख वाले), पांचवा लम्बोदरं (बड़े पेट वाला), छठा विकट (विकराल), सांतवा विघ्नराजेन्द्र (विध्नों का शासन करने वाला राजाधिराज) तथा आठवां धूम्रवर्ण (धूसर वर्ण वाले), नवां भालचन्द्र (जिसके ललाट पर चन्द्र सुशोभित है), दसवां विनायक, ग्यारवां गणपति और बारहवां गजानन, इन बारह नामों का जो मनुष्य तीनों सन्धायों (प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल) में पाठ करता है, हे प्रभु ! उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ देनेवाला है।
इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है। इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छहः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है – इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। जो मनुष्य इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।