विजय शंकर: अगस्त का ये महीना पाकिस्तान के लिए बहुत अहम है। इसी महीने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में कई ऐसी बड़ी राजनीतिक घटनाएं दिख सकती हैं, जो भविष्य में इस मुल्क की राह तय करेंगी। पहली घटना तोशखाना केस में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की आनन-फानन में गिरफ्तारी के तौर पर सामने आई। अपील के बाद भी इस बार उनके समर्थक सड़कों पर नहीं उतरे और पाकिस्तान की पुलिस इमरान खान को पूरी रात इस जेल से उस जेल तक घुमाती रही।
दूसरी घटना, किसी भी वक्त पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पाकिस्तान में वापसी तय मानी जा रही है। तीसरी, इसी अगस्त में पाकिस्तान में चुनाव से पहले कार्यवाहक सरकार का गठन होना है। माना जा रहा है कि जिसके नाम पर शरीफ मुहर लगाएंगे, वही कार्यवाहक सरकार का मुखिया बनेगा। अगले तीन महीने के भीतर पाकिस्तान में आम चुनाव भी होने हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि इस बार पीएमएल(एन) किसके चेहरे को आगे कर चुनावी अखाड़े में उतरेगी? पाकिस्तान में होने वाली हलचल का भारत पर भविष्य में किस तरह से असर पड़ सकते हैं।
इमरान खान को जेल भेजने के पीछे का खेल?
जिस तरह से पाकिस्तान की एक ट्रायल कोर्ट ने इमरान खान को तीन साल जेल की सजा सुनाई। उन्हें पांच साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। ऐसे में एक बात साफ है कि इमरान खान को नवंबर में होने वाले पाकिस्तान के आम चुनाव से दूर रखने की स्क्रिप्ट कहीं और से तैयार की जा रही है। पिछले कुछ वर्षों से इमरान खान ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए जिस तरह से सेना को निशाना बनाना शुरू किया, उससे वो सेना की आंखों में खटक रहे थे।
पाकिस्तानी आर्मी ने उन्हें एक तरह से थाली में सजाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपी थी, उसी आर्मी जनरलों के इशारे पर इमरान खान को प्रधानमंत्री की कुर्सी से बेदखल करने की स्क्रिप्ट तैयार हुई। पाकिस्तान में इमरान खान खुद को कट्टर ईमानदार, लोगों के हक के लिए लड़ने वाले फाइटर के तौर पर पेश करने लगे। सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को जोड़ने की मुहिम में लग गए। कई बार उनके समर्थक पुलिस और पैरा-मिलिट्री जवानों से भी टक्कर लेते दिखे, लेकिन इस बार इमरान की गिरफ्तारी के बाद सड़कों पर न तो उत्पात करते उनके समर्थक दिखे, न ही कोई बड़ा विरोध-प्रदर्शन हुआ?
क्या इसका मतलब निकाला जाए कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई पर इमरान की पकड़ कमजोर हुई है? भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विरोधियों पर प्रचंड प्रहार इमरान खान की राजनीति की यूएसपी हुआ करती थी, लेकिन अब खुद भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए हैं। ऐसे में चुनाव से पहले ही इमरान खान को पवेलियन भेजकर पाकिस्तान में एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी को आउट कर दिया गया है ।
शहबाज में पाकिस्तानी आर्मी को नहीं दिख रही संभावना?
पाकिस्तान के चुनावी अखाड़े में बड़े खिलाड़ी नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) और आसिफ जरदारी की पीपीपी बची है। फिलहाल दोनों पार्टियों की पाकिस्तान में गठबंधन सरकार है, जिसके मुखिया हैं- शहबाज शरीफ। माना जाता है कि इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए सेना ने ही परदे के पीछे से पीएमएल (एन) और पीपीपी के बीच गठबंधन करवाया था, लेकिन वजीर-ए-आजम की कुर्सी पर रहते हुए शहबाज शरीफ कोई खास पहचान नहीं बना पाए। मुल्क की समस्याएं भी कम होने की जगह बढ़ी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पाकिस्तानी आर्मी अब नवाज शरीफ पर दांव खेलना चाहती है। पाकिस्तानी मीडिया में ये भी खबर जोर-शोर से चल रही है कि किसी भी वक्त नवाज शरीफ वापस पाकिस्तान लौट सकते हैं।
पाकिस्तान में कौन बनेगा कार्यवाहक सरकार का मुखिया?
पाकिस्तान में अभी सबसे बड़ा सवाल यही है कि कार्यवाहक सरकार का मुखिया कौन बनेगा? माना जा रहा है कि शहबाज शरीफ उसी का नाम आगे बढ़ाएंगे, जिस पर उनके भाई नवाज शरीफ मुहर लगाएंगे। फिलहाल, इस रेस में पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी, बलूचिस्तान से निर्दलीय सांसद असलम भूटानी, पूर्व वित्त मंत्री हाफीज शेख जैसे कई नाम हैं। ऐसे में अटकले लगाई जा रही हैं कि इस हफ्ते नवाज शरीफ पाकिस्तान में लैंड कर सकते हैं और आम चुनाव में उनके चेहरे को आगे करने की स्क्रिप्ट तैयार है।
पाकिस्तानी आर्मी को नवाज शरीफ में क्या दिखता है?
पाकिस्तानी आर्मी के जनरलों की समझ में अच्छी तरह आ चुका है कि उनके मुल्क को किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई नहीं पूछ रहा है। इस्लामिक वर्ल्ड में भी पाकिस्तान की साख मिट्टी में मिल चुकी है। इस स्थिति में मुल्क को बाहर निकालने के लिए पाकिस्तानी आर्मी को एक ऐसे चेहरे की जरूरत है जो दिखे लोकतांत्रिक और काम करे रावलपिंडी के इशारे पर। इस खांचे में संभवत: नवाज शरीफ बिल्कुल फिट दिख रहे हैं।
पाकिस्तानी आर्मी के भीतर भी एक सोच होगी कि मुल्क में स्थायित्व के लिए एक बाहर से मजबूत दिखने वाली लोकतांत्रिक सरकार की जरूरत है। ऐसे में नवाज शरीफ के चेहरे को आगे तक आम चुनाव में उन्हें प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाने की स्क्रिप्ट तैयार कर ली गई हो, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।
मान लीजिए कि अगर नवाज शरीफ वापस पाकिस्तान लौट आते हैं और अगर चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में पाकिस्तान नवाज शरीफ के चेहरे को आगे कर मुल्क को दोबारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्थापित करने की कोशिश कर सकता है।
लोकतंत्रिक सरकार के नाम पर पाकिस्तान दोबारा अमेरिका समेत दूसरे देशों से आर्थिक मदद के लिए गुहार लगा सकता है। इस्लामिक वर्ल्ड में भी पाकिस्तान की साख मिट्टी में मिल चुकी है। नवाज शरीफ की निजी कैमेस्ट्री अरब वर्ल्ड के कई देशों के हुक्मरानों के साथ बेहतर है। ऐसे में माना जा रहा है कि पाकिस्तान की डांवाडोल स्थिति को घरेलू से लेकर बाहरी मोर्चे तक संभालने में नवाज शरीफ की शख्सियत भी बड़ी भूमिका निभा सकती है ।
नवाज शरीफ भारत के दोस्त या दुश्मन?
नवाज शरीफ एक बहुत ही चतुर राजनेता हैं। उनकी जुबान पर क्या है और मन के भीतर क्या चल रहा है, ये समझना आसान नहीं है। अगर इतिहास को पन्नों को पलटा जाए तो 1990 के दशक में नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहते ही बातचीत के लिए अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती का पैगाम लेकर बस से लाहौर गए थे। कुछ समय बाद ही दोस्ती की इस पहल के बदले कारगिल में घुसपैठ मिली।
12 अक्टूबर 1999 को जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्तापलट कर दिया और खुद पाकिस्तान के सर्वेसर्वा बन गए। उसी साल दिसंबर यानी नवाज शरीफ के सत्ता से बेदखल होने के करीब तीन महीने बाद कंधार कांड हुआ। इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा कर काठमांडू से कंधार ले जाया गया। यात्रियों के जान बचाने के लिए भारत को तीन खूंखार आतंकियों को छोड़ना पड़ा था। इतनी बड़ी साजिश एक दो दिन में तो रची नहीं गई होगी।
किस्मत ने 2013 में फिर नवाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। साल 2014 में नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आए। भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की रिपेयरिंग की कोशिशें तेज हुईं। बदले में पठानकोट और उरी जैसे जख्म मिले। उरी हमले के बाद भारतीय फौज ने पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया।
नवाज शरीफ के दौर में भारत को मिले धोखे
नवाज शरीफ एक मुंह से बातचीत के लिए कूटनीति की टेबल पर बैठने में माहिर हैं तो दूसरे मुंह से पाकिस्तानी सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी भारत के खिलाफ साजिश की छूट देते रहे हैं। भले ही बाद में पल्ला डालते हुए कह देते हैं कि मुझे परदे में रखकर साजिश रची गई। ऐसे में अगर नवाज शरीफ की किस्मत उन्हें फिर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ले जाती है, तो वैसी स्थिति में भारत को और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत रहेगी क्योंकि इतिहास गवाह रहा है कि भारत को नवाज शरीफ के दौर में धोखे बहुत मिले हैं।
नोट: ये लेखक के निजी विचार हैं।