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तालिबान से दोस्ती का हाथ क्यों बढ़ा रहा भारत? पाकिस्तान से तनाव के बीच जियो पॉलिटिक्स में बड़ा बदलाव

भारत ने पाकिस्तान से तनाव के बीच तालिबान से बातचीत की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तालिबान शासन के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी से बात की। इस दौरान मुत्ताकी ने पहलगाम हमले की निंदा की। वहीं भारत ने अफगानिस्तान के साथ पारंपरिक मित्रता की मिसाल दी।

Author Edited By : Rakesh Choudhary Updated: May 16, 2025 10:11
India Afghanistan relations 2025
S. Jaishankar And Amit Khan Muttaqi

भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय तनाव चरम पर है। सीजफायर के ऐलान के बाद से ही पाकिस्तान सिंधु जल समझौता बहाल करने के लिए गिड़गिड़ा रहा है। भारत ने अब तक दो टुक शब्दों में साफ कर दिया है कि पाकिस्तान से बातचीत का मुद्दा अब सिर्फ पीओके और आतंकवाद है। यानी भारत इन दो मुद्दों के अलावा पाकिस्तान से और किसी मुद्दे पर बातचीत नहीं करेगा। इस बीच दक्षिण एशिया की जियो पॉलिटिक्स में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। भारत ने अफगानिस्तान के तालिबान शासन के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी से पहली बार आधिकारिक बातचीत की है। इससे पहले भारत और तालिबान के बीच कभी बातचीत का कोई उदाहरण नहीं है।

जियोपॉलिटिक्स की बड़ी घटना

ऐतिहासिक बातचीत में तालिबान शासन के विदेश मंत्री ने पहलगाम हमले की निंदा की। वहीं विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगान जनता के साथ भारत की पारंपरिक मित्रता को रेखांकित करते हुए उनके विकास की जरूरतों के लिए निरंतर समर्थन की प्रतिबद्धता जताई है। बता दें कि भारत ने अभी तक तालिबान शासन को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। बातचीत की जानकारी स्वयं विदेश मंत्री जयशंकर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी। ऐसे में आइये जानते हैं जियोपॉलिटिक्स में यह महत्वपूर्ण बदलाव क्यों हुआ है?

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पाकिस्तान-तालिबान में रिश्ते अच्छे नहीं

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का अफगान तालिबानी शासन संवाद करना कई देशों की नींद उड़ाने वाला कदम है। कम से कम पाकिस्तान तो यह कभी नहीं चाहेगा उसके दुश्मन की भारत से नजदीकियां बढ़े। गौरतलब है कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच कभी भी रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं। दोनों देश एक-दूसरे के सीमा से लेकर आतंकवाद जैसे मुद्दों पर टकराते रहे हैं। ऐसे में भारत की ओर से तालिबान के संवाद स्थापित करना पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

अफगानिस्तान में भारत का बड़ा निवेश

अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान का शासन एक बार फिर से स्थापित हुआ था। इससे पहले भारत अफगानिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण, स्कॉलरशिप्स और नए संसद भवन के निर्माण जैसी मुख्य परियोजनाओं में निवेश किया था। रिपोर्ट्स की मानें तो भारत ने अफगानिस्तान में 500 से अधिक परियोजनाओं में 3 अरब डॉलर से अधिका का निवेश कर रखा है, इसमें सड़कें, बिजली, बांध, हॉस्पिटल और क्लीनिक शामिल हैं। भारत ने अफगानिस्तान के कई अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया है। हजारों छात्रों को छात्रवृत्ति दी है ताकि वे आगे की पढ़ाई कर सके और नया संसद भवन भी बनाया है।

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चीन-पाकिस्तान को काउंटर करने में मिलेगी मदद

भारत का तालिबान से बातचीत का मकसद व्यापार को बढ़ावा देना और वहां के खनिज भंडारों का बेहतर इस्तेमाल करना है। चीन यहां पर पहले ही तालिबान से बातचीत कर रहा है। भारत तालिबान से मजबूत संपर्क स्थापित कर मध्य एशिया तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है। मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए भारत को पाकिस्तान से ट्रांजिट अधिकार चाहिए, जोकि पाकिस्तान भारत को नहीं देता है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि इस लक्ष्य को हासिल करने में तालिबान बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का काम भी भारत कर रहा है ताकि चीन को जवाब दिया जा सके। इसके साथ ही चीन के ग्वादर पोर्ट के विकसित करने के काम को काउंटर किया जा सके। भारत अफगानिस्तान के साथ व्यापारिक रिश्ते बहाल पाकिस्तान की कमी को भी पूरा करना चाहता है।

ईवी पॉलिसी के लिए अफगानिस्तान जरूरी

अफगानिस्तान में लिथियम के भंडार बहुतायत में है। भारत को अपने ईवी पॉलिसी का विस्तार करने के लिए लिथियम की जरूरत है ताकि चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके। ऐसे में आने वाले समय में भारत अफगानिस्तान में लिथियम का दोहन करते हुए देखा जा सकता है। जोकि चीन के लिए बड़ा झटका साबित होगा।

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First published on: May 16, 2025 10:11 AM

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