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अमेरिका के 70 साल पुराने बॉम्बर विमान से घबराया चीन, रिसर्च में किया चौंकाने वाला दावा

चीन की एक नई सैन्य रिसर्च में काफी हैरान कर देने वाले खुलासे हुए हैं। इस रिसर्च में 70 साल पुराने B-52 स्ट्रैटोफोर्ट्रेस बॉम्बर को आज के आधुनिक F-35A फाइटर जेट और B-2 स्पिरिट बॉम्बर से ज्यादा खतरनाक बताया गया है। यह स्टडी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की वुहान में मौजूद एयर फोर्स अर्ली वॉर्निंग अकादमी ने की है।

Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: May 22, 2025 21:23
America Defense System

चीन की एक नई सैन्य रिसर्च ने सबको हैरान कर दिया है। इस रिसर्च में कोल्ड वॉर के समय के 70 साल पुराने अमेरिका के B-52 स्ट्रैटोफोर्ट्रेस बॉम्बर को आधुनिक F-35A फाइटर जेट और B-2 स्पिरिट बॉम्बर से भी ज्यादा खतरनाक बताया गया है। यह स्टडी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की वुहान में मौजूद एयर फोर्स अर्ली वॉर्निंग अकादमी ने की है। इसके नतीजे हाल ही में चीन की टॉप सिक्योरिटी मैगजीन मॉडर्न डिफेंस टेक्नोलॉजी में छपे हैं। भारत के लिए यह खबर इसलिए खास है, क्योंकि यह न सिर्फ ग्लोबल मिलिट्री स्ट्रैटेजी को प्रभावित करती है, बल्कि भारत-चीन बॉर्डर टेंशन और रीजनल सिक्योरिटी के लिए भी बड़ा सवाल खड़ा करती है।

B-52 को क्यों माना गया सबसे बड़ा खतरा?

चीनी रिसर्चर्स ने अमेरिकी वायुसेना की पेनेट्रेटिंग काउंटरएयर (PCA) स्ट्रैटेजी की स्टडी की है। यह एक ऐसी रणनीति है, जिसमें हाई-टेक विमान जैसे F-35A, B-2 और ड्रोन्स एक नेटवर्क सिस्टम के जरिए मिलकर चीनी नेवी के जहाजों या जमीन पर मौजूद टारगेट्स पर छोटा परमाणु हमला कर सकते हैं। स्टडी में पाया गया कि B-52 जैसा विमान एक बार में चार परमाणु बम ले जा सकता है, जो किसी भी अन्य विमान से काफी अधिक है।

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इसके अलावा इसके अपग्रेटेड वर्जन B-52H में अपग्रेडेड रडार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम हैं, जो इसे चीनी एयर डिफेंस को चकमा देने में माहिर बनाते हैं। रिसर्च में बताया गया कि B-52H की ये खूबियां इसे PCA मिशन में ‘सबसे ज्यादा स्ट्रैटेजिक वैल्यू’ देती हैं। यानी, अगर सीमित परमाणु हमले की बात की जाए तो B-52 सबसे बड़ा खतरा है।

परमाणु बम और उनकी ताकत

रिसर्च में अमेरिका के B61-12 वायु-प्रक्षेपित सामरिक थर्मोन्यूक्लियर बम जिक्र है, जो 300 टन TNT जितना पावरफुल है। ये बम न सिर्फ डिटरेंस के लिए हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर चीनी एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (A2/AD) सिस्टम्स जैसे रडार, मिसाइल बेस और कमांड सेंटर्स को तबाह कर सकते हैं। इन बमों की ताकत विस्फोट, रेडिएशन और रेडियोएक्टिव कंटैमिनेशन से आती है, जो आम बमों से कहीं ज्यादा खतरनाक है।

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भारत के लिए क्या है इसका मतलब?

भारत के दृष्टिकोण से यह अध्ययन कई कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला, भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा विवाद चल रहा है और दोनों देशों की सेनाएं हिमालयी क्षेत्र में आमने-सामने हैं। शोध में दिए गए सुझाव के अनुसार चलते हुए अगर चीन अपनी हवाई रक्षा और मिसाइल प्रणालियों को और मजबूत करता है तो यह भारत की सैन्य रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकता है। दूसरा, अमेरिका भारत का एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार है, और B-52 जैसे विमानों की तैनाती इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदल सकती है।

चीन की यह रिसर्च भारत के लिए एक चेतावनी भी हो सकती है, क्योंकि अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता है, तो इसका असर दक्षिण एशिया की सुरक्षा स्थिति पर पड़ सकता है। खासकर, भारत को अपनी हवाई रक्षा प्रणालियों, जैसे S-400 मिसाइल सिस्टम को और मजबूत करने की जरूरत हो सकती है ताकि किसी भी संभावित खतरे का सामना किया जा सके।

F-35 और B-2 क्यों रह गए पीछे?

F-35A और B-2 स्पिरिट बॉम्बर को दुनिया के सबसे एडवांस्ड मिलिट्री एयरक्राफ्ट माना जाता है। ये विमान रडार से बचने की अपनी स्टील्थ टेक्नोलॉजी के लिए फेमस हैं। चीनी रिसर्चर्स का कहना है कि परमाणु हमले में इनका रोल B-52 जितना खतरनाक नहीं है। B-52 की ज्यादा बम ले जाने की क्षमता और लंबी रेंज इसे और डेंजरस बनाती है। इसके साथ ही, पिछले साल अमेरिकी कांग्रेस ने 30 B-52H बॉम्बर्स को परमाणु हथियारों से लैस करने की मंजूरी दी थी, जिससे यह और भी घातक हो गया है।

रिसर्च में यह भी बताया गया कि F-35 और B-2 जैसे विमानों को रोकने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और साइबर अटैक अच्छी स्ट्रैटेजी हो सकती है। ये विमान अपने नेटवर्क-बेस्ड वारफेयर सिस्टम पर डिपेंड करते हैं। अगर इनके नेविगेशन और कम्युनिकेशन को डिसरप्ट कर दिया जाए, तो इनकी ताकत कम हो सकती है।

चीन की प्लानिंग और भारत पर असर

रिसर्च में सुझाव दिया गया है कि PCA अटैक से बचने के लिए चीन को अपनी सर्विलांस और इंटरसेप्शन पावर बढ़ानी होगी। इसके लिए हाई-टेक एयर डिफेंस सिस्टम और मिसाइल्स की जरूरत होगी। रिसर्चर्स का कहना है कि चीन की हाइपरसोनिक मिसाइल्स, जो 1,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक टारगेट हिट कर सकती हैं, ऐसे हमलों को रोकने में कारगर हो सकती हैं।

भारत के लिए यह एक बड़ा मैसेज है। भारत को भी अपनी एयर डिफेंस को अपग्रेड करना होगा, खासकर जब वह चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से खतरे का सामना कर रहा है। भारत की अपनी मिसाइल डिफेंस सिस्टम्स, जैसे पृथ्वी और आकाश, अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन रीजनल पावर बैलेंस को बनाए रखने के लिए और इनवेस्टमेंट और टेक्नोलॉजी की जरूरत है।

किन विमानों को बनाना है पहले निशाना?

रिसर्च में अलग-अलग विमानों को खतरे के हिसाब से रैंक किया गया। परमाणु हमले में B-52 सबसे ऊपर है, लेकिन गैर-परमाणु हमले में E-3 सेंट्री AWACS (एयरबॉर्न वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) को पहले निशाना बनाने की सलाह दी गई, क्योंकि यह हवा में कमांड सेंटर की तरह काम करता है। दूसरी ओर, C-17 ट्रांसपोर्ट प्लेन और B-1B बॉम्बर को कम खतरा माना गया, क्योंकि उनके रोल सीमित हैं और उनके इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पुराने हैं।

रिसर्च का तरीका

रिसर्च में PLA की ‘डिसीजन-मेकिंग टीमें’ और गेम थ्योरी का इस्तेमाल किया गया है। रिसर्चर्स ने AI मॉडल्स का इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि उन्हें ‘ब्लैक बॉक्स’ की तरह अनप्रेडिक्टेबल माना जाता है। इसके बजाय, ह्यूमन जजमेंट और साइंटिफिक डेटा को मिलाकर रिजल्ट निकाले गए हैं।

क्या हैं तकनीकी दावे?

रिसर्च में कुछ टेक्निकल क्लेम्स भी किए गए हैं, जैसे कि B-2 और F-22 जैसे स्टील्थ विमानों का रडार क्रॉस-सेक्शन 0.1 वर्ग मीटर है। रिसर्चर्स का दावा है कि चीन के रडार 400 किलोमीटर की दूरी से इन विमानों को डिटेक्ट कर सकते हैं। लेकिन इन दावों का सोर्स क्लियर नहीं है। सवाल यह है कि क्या यह जानकारी सही है या यह चीनी मिलिट्री प्रॉपगैंडा का हिस्सा है।

भारत के लिए क्या है सबक?

यह चीनी स्टडी न सिर्फ अमेरिका-चीन की मिलिट्री राइवलरी को हाइलाइट करती है, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी एक वॉर्निंग है। इंडो-पैसिफिक रीजन में बढ़ता टेंशन और परमाणु हथियारों की तैनाती रीजनल स्टेबिलिटी को खतरे में डाल सकती है।

भारत को अपनी डिफेंस स्ट्रैटेजी को और मजबूत करना होगा। इसमें न सिर्फ एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम्स, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और साइबर सिक्योरिटी जैसे फील्ड्स भी शामिल हैं। इसके साथ ही, भारत को अपने स्ट्रैटेजिक पार्टनर्स, खासकर अमेरिका, के साथ कोलैबोरेशन बढ़ाना होगा ताकि रीजन में पावर बैलेंस बना रहे। यह स्टडी यह भी दिखाती है कि पुरानी टेक्नोलॉजी भी मॉडर्न वॉर में बड़ा रोल प्ले कर सकती है। भारत को हर तरह के खतरे के लिए तैयार रहना होगा।

First published on: May 22, 2025 07:26 PM

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