अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आने के बाद से ही दुनिया के कई देशों पर टैरिफ लगा रहे हैं। उनके इस ऐलान को लेकर इसे ट्रेड वॉर (व्यापार युद्ध) माना जा रहा है। वह ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का नारा दे रहे हैं। भारत पर भी वह टैरिफ लगाने की बात कर रहे हैं। उनके इस टैरिफ की वजह से दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है। क्या आपको पता है कि अमेरिका द्वारा एक बार पहले भी टैरिफ लगाए गए थे और तब अमेरिका को इस टैरिफ ने काफी हद तक बड़ा नुकसान पहुंचाया था?
साल 1929 में अमेरिका ने एक ऐसा फैसला लिया था, जिसने अमेरिका की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया था। न सिर्फ अमेरिकी अर्थव्यवस्था, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी गंभीर संकट में डाल दिया था। यह फैसला था टैरिफ को लेकर कानून बनाना। कानून का नाम था Smoot-Hawley Tariff Act, जिसे राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर के प्रशासन के दौरान लागू किया गया।
क्यों लागू किया गया था ये कानून?
औपचारिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका टैरिफ अधिनियम 1930 कहे जाने वाले इस कानून को स्मूट-हॉली टैरिफ या हॉली-स्मूट टैरिफ कहा जाता है। स्मूट-हॉली टैरिफ अधिनियम ने अमेरिकी किसानों और व्यवसायों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के उद्देश्य से अमेरिकी आयात शुल्क बढ़ा दिए थे।
स्मूट-हॉली अधिनियम की वजह से अमेरिका में विदेशी आयातों पर शुल्क लगभग 20% बढ़ गया। इसका असर यह हुआ कि जवाब में 25 से अधिक देशों ने अमेरिकी वस्तुओं पर अपने शुल्क बढ़ा दिए। परिणामस्वरूप वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई, जिससे महामंदी की स्थिति आ गई। 1000 से अधिक अर्थशास्त्रियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति हूवर से इसे वापस लेने के लिए कहा था।
25 से अधिक देशों ने जब अमेरिका के इस कानून के खिलाफ अपने टैरिफ बढ़ा दिए तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारी गिरावट आ गई, जिसके बाद 1929 से 1934 के बीच दुनिया भर के व्यापार में 66% की गिरावट आई। अमेरिका के निर्यात और आयात दोनों में भारी गिरावट दर्ज हुई। यह कानून वैश्विक महामंदी का कारण नहीं था लेकिन इसने महामंदी के दौरान स्थिति को और बिगाड़ने का काम किया।
क्या हुआ टैरिफ बढ़ाने के बाद?
- अमेरिका के इस फैसले से नाराज होकर बाकी देशों ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए। इससे अमेरिकी सामान की विदेशों में बिक्री घट गई।
- 1929 से 1934 के बीच वैश्विक व्यापार में 65% की गिरावट आई। इससे दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ गईं और व्यापार बंद होने लगे। खुद अमेरिका को इससे बड़ा नुकसान हुआ।
- GDP लगभग 30% गिर गया।
- बेरोजगारी 1933 तक 25% तक पहुंच गई।
- लाखों लोग बेरोजगार हो गए, कंपनियां बंद हो गईं।
- किसानों की आय गिर गई, निर्यात बंद हो गया।
ये क्यों हुआ?
जब एक देश टैरिफ बढ़ाता है, तो दूसरे देश भी बदले में वैसा ही करते हैं। इससे ‘ट्रेड वॉर’ की स्थिति बन जाती है। वैश्विक व्यापार बाधित होता है और सभी देशों को नुकसान होता है, खासकर उस देश को जो इसकी शुरुआत करता है।
सबक क्या मिला?
इस ऐतिहासिक गलती से दुनिया ने सबक सीखा कि अत्यधिक टैरिफ लंबे समय में अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके बाद अमेरिका ने 1934 में Reciprocal Trade Agreements Act लाकर टैरिफ में कटौती करनी शुरू की और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को दोबारा बढ़ावा दिया।
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आज के लिए क्या सीख है?
डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं ने फिर से टैरिफ बढ़ाकर ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ जैसी नीतियों को दोहराने की कोशिश की, लेकिन इतिहास बताता है कि संरक्षणवाद से तात्कालिक राहत तो मिल सकती है, लेकिन दीर्घकाल में यह देश और दुनिया—दोनों के लिए खतरनाक होता है।