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Explanier: इजरायली मंत्री के मस्जिद में प्रार्थना पर क्यों छिड़ा विवाद, क्या हैं अल-अक्सा के नियम?

अल-अक्सा मस्जिद परिसर इस्लाम ही नहीं यहूदियों का भी पवित्र स्थल माना जाता है। वैसे तो यह इस्लाम को तीसरा सबसे पवित्र स्थल है। वहीं, यहूदियों का मानना है कि इस स्थान पर उनके प्रमुख धार्मिक स्थल हुआ करते थे। इस कारण यह जगह विवादों में रही है। अब इजरायल के सुरक्षा मंत्री ने यहां पर दौरा करके प्रार्थना की है। ऐसे में उन्होंने एक विवाद की आग में घी डालने काम किया है।

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Mohit Tiwari Updated: Aug 5, 2025 14:57
Al-Aqsa Mosque
credit- pexels

यरुशलम के पुराने शहर में स्थित अल-अक्सा मस्जिद परिसर इस्लाम और यहूदी धर्म दोनों के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल है। यह इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है और यहूदियों के लिए इसे टेम्पल माउंट के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि यहां प्राचीन यहूदी धार्मिक स्थल हुआ करते थे। हाल ही में इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमर बेन-ग्विर के इस परिसर में दौरे और वहां प्रार्थना करने की खबर ने एक बार फिर विवाद को हवा दी है। दरअसल बीते 3 अगस्त 2025 को बेन-ग्विर ने तिशा बी’अव के दिन इस स्थल का दौरा किया। यह दिन यहूदियों के लिए दो प्राचीन मंदिरों के विनाश की याद में एक उपवास दिवस है।

क्या है इस जगह का महत्व?

अल-अक्सा मस्जिद परिसर यरुशलम के पुराने शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है। इस्लाम में इसे हरम अल-शरीफ (पवित्र अभयारण्य) कहा जाता है, जहां मस्जिद-ए-अक्सा और डोम ऑफ द रॉक जैसे महत्वपूर्ण ढांचे हैं। यहूदियों के लिए यह स्थल टेम्पल माउंट के रूप में पवित्र है, क्योंकि यहां कभी दो प्राचीन यहूदी मंदिर थे, जिनका विनाश रोमन काल में हुआ।

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इस स्थल का प्रबंधन जॉर्डन की धार्मिक संस्था वक्फ द्वारा किया जाता है। कई दशकों से लागू ‘स्थिति यथास्थिति’ (Status Quo) समझौते के तहत यह नियम है कि गैर-मुस्लिम, विशेष रूप से यहूदी, इस परिसर में जा तो सकते हैं, लेकिन वहां प्रार्थना नहीं कर सकते है। यह नियम क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए बनाया गया था, क्योंकि इस स्थल से जुड़े किसी भी बदलाव ने अतीत में हिंसा को जन्म दिया है।

3 अगस्त 2025 को इजरायली मंत्री ने किया दौरा

इजरायल के दक्षिणपंथी नेता और राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमर बेन-ग्विर ने 3 अगस्त 2025 को अल-अक्सा मस्जिद परिसर का दौरा किया। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने न केवल इस स्थल पर प्रवेश किया, बल्कि वहां प्रार्थना करने का भी दावा किया, जो स्थिति यथास्थिति समझौते का उल्लंघन है। टेम्पल माउंट प्रशासन नामक एक छोटे यहूदी संगठन द्वारा जारी वीडियो में बेन-ग्विर को परिसर में एक समूह के साथ घूमते हुए देखा गया। कुछ अन्य वीडियो में उन्हें प्रार्थना करते हुए दिखाया गया, हालांकि इनकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है।

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वक्फ के अनुसार, बेन-ग्विर सहित लगभग 1,250 लोग उस दिन परिसर में गए, जिनमें से कई ने प्रार्थना की, नारे लगाए और नृत्य किया। बेन-ग्विर ने अपने बयान में कहा कि उन्होंने गाजा में हमास के खिलाफ इजरायल की जीत और बंधकों की रिहाई के लिए प्रार्थना की। उन्होंने यह भी दोहराया कि इजरायल को पूरे गाजा पर नियंत्रण करना चाहिए।

समझौते के खिलाफ माना जा रहा है यह कदम

बेन-ग्विर का यह कदम ‘स्थिति यथास्थिति’ समझौते के खिलाफ माना जा रहा है। इजरायल की आधिकारिक नीति इस समझौते का समर्थन करती है और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बेन-ग्विर के दौरे के बाद बयान जारी कर कहा कि अल-अक्सा परिसर में स्थिति यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है और न ही होगा।

हालांकि, इस घटना ने क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया है। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता नबील अबू रुदैना ने इस दौरे की निंदा की और इसे टसभी लाल रेखाओं को पार करने वाला’ कदम बताया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका से तत्काल हस्तक्षेप करने और इस तरह की ‘उकसावे वाली’ कार्रवाइयों को रोकने की मांग की। उन्होंने गाजा में युद्ध रोकने और मानवीय सहायता पहुंचाने की भी अपील की।

पहले भी हुए हैं विवाद और हिंसा

अल-अक्सा मस्जिद परिसर से जुड़े नियमों में किसी भी तरह के बदलाव की कोशिश ने अतीत में बड़े पैमाने पर विवाद और हिंसा को जन्म दिया है। साल 2000 में इजरायली नेता एरियल शेरोन के इस स्थल पर दौरे ने दूसरे इंतिफादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बेन-ग्विर पहले भी इस स्थल पर जाकर यहूदी प्रार्थना की अनुमति की मांग कर चुके हैं, जिसे मुस्लिम समुदाय उकसावे की कार्रवाई मानता है।

बढ़ गया है क्षेत्र में तनाव

हालांकि 3 अगस्त 2025 को इस दौरे के बाद तत्काल हिंसा की कोई खबर नहीं आई, लेकिन इस घटना ने क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया है। अल-अक्सा मस्जिद परिसर मध्य पूर्व के सबसे संवेदनशील स्थानों में से एक है और यहां होने वाली किसी भी घटना का प्रभाव पूरे क्षेत्र में महसूस किया जा सकता है। मुस्लिम देशों में इस तरह की कार्रवाइयों को लेकर पहले भी भारी विरोध देखा गया है।

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First published on: Aug 03, 2025 06:50 PM

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