Uttarakhand Avalanche 2025 : उत्तराखंड के माणा गांव में प्राकृतिक आपदा आई। इस आपदा में BRO के 55 मजदूर बर्फ में दब गए थे, जिनमें से 47 को बचा लिया गया है और 8 की तलाश अभी भी जारी है। हालांकि, जिस जगह हिमस्खलन हुआ, उस इलाके में करीब 2 हजार लोग रहते हैं, लेकिन ये सभी बच गए। आखिर कैसे इन ग्रामीणों और स्थानीय लोगों की जान बची?
शुक्रवार की सुबह हिमस्खलन ने माणा-घस्तोली मार्ग को तबाह कर दिया। इलाका सूनसान हो गया, हर तरफ सिर्फ तबाही के मंजर थे। हालांकि, इस आपदा में एक भी ग्रामीण को कुछ नहीं हुआ क्योंकि सभी पहले से ही पलायन कर चुके थे। यह पलायन कोई पहली बार नहीं था बल्कि यह ग्रामीणों की सदियों से चली आ रही एक परंपरा है। यह उनके जीवन का एक हिस्सा है।
हिमालय को भी चाहिए सम्मान
कहते हैं कि हिमालय सम्मान की मांग करता है, और माणा के लोग बहुत पहले से जानते हैं कि कब पीछे हटना है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, माणा गांव के मुखिया पीतांबर मोल्फा ने कहा, “हम भाग्यशाली हैं कि हम निचले स्थानों पर चले गए थे, वरना कई लोग फंस जाते।”
VIDEO | Uttarakhand Avalanche: The rescue operation is underway in Mana area of Chamoli. Injured were airlifted to Army Hospital. Here’s what DM Chamoli Sandeep Tiwari said.
---विज्ञापन---“… Today, we have shifted the injured to Joshimath Army Hospital. They are stable. NDRF team is present… pic.twitter.com/dV022Z4D15
— Press Trust of India (@PTI_News) March 1, 2025
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होते ही पलायन
माणा गांव के लोग हर साल नवंबर में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद ठंड से बचने के लिए पलायन कर जाते हैं। वे चमोली जिले के गोपेश्वर, ज्योतिर्मठ और झिंकवान में रहकर जीवन यापन करते हैं। बद्रीनाथ यात्रा शुरू होने के साथ या इससे पहले ही वे अपने गांव लौटते हैं। मोल्फा का कहना है कि फरवरी और मार्च में यहां हिमस्खलन होना आम बात होती है।
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माणा में संदीप असवाल एक चाय की दुकान चलाते हैं। उनकी दुकान पहले ‘देश की आखिरी चाय की दुकान’ मानी जाती थी, लेकिन अब ‘पहली चाय की दुकान’ के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने बताया कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। गांव खाली है, इसलिए हमारे पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि हिमस्खलन से उनके क्षेत्र में तबाही मची है या नहीं। हालांकि, ये लोग खुश हैं क्योंकि इस आपदा से पहले ही सभी परिवारों ने पलायन कर लिया था। यहां करीब 400 परिवार रहते हैं।