Manikarnika Ghat Kashi: हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होली का पर्व मनाया जाता है। इस बार होली का त्योहार 25 मार्च 2024 को मनाया जाएगा। होली के दिन देश में अलग ही धूम देखने को मिलती है, जहां कई लोग घर में अपने परिवार वालों के साथ होली खेलते हैं, तो वहीं कुछ होली के दिन देश के मंदिरों में दर्शन करने के लिए भी जाते हैं।
अगर इस बार आप भी होली के दिन रंगों के साथ-साथ भक्ति में भी लीन होना चाहते हैं, तो आज हम आपको देश के एक ऐसे घाट के बारे में बताएंगे। जहां रंगों और रंग-बिरंगे फूलों के साथ तो होली खेली ही जाती है। इससे पहले चिता की राख और भस्म से होली खेली जाती है। आइए जानते हैं इस घाट से जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में।
🕉 Aghori Sadhus of Kashi celebrate Masan #Holi
with Chita Bhasma at Manikarnika Ghat! Skand Purana says since Bhagawan Shiva’s ethereal Ganas dont get to play colours on #RangbhariEkadashi Bhagwan himself comes to the cremation ground to play #Holi with them 🚩#HarHarMahadevॐ pic.twitter.com/762WutudLK— 🇮🇳 Sangitha Varier 🚩(Modi Ka Parivar) (@VarierSangitha) March 18, 2022
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भस्म से होली क्यों खेली जाती है?
उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिका घाट और महाश्मशान हरिश्चन्द्र घाट स्थित है। यहां सबसे अलग तरीके से होली खेली जाती है। काशी के इस शहर में चिता की राख और भस्म से होली खेली जाती है। खास बात ये है कि जलती चिताओं के बीच होली सिर्फ यहीं खेली जाती है। इसके अलावा कहीं पर भी किसी राज्य में चिता की राख और भस्म से होली नहीं खेली जाती है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, हर साल रंगभरी एकादशी के दिन हरिश्चंद्र घाट पर महादेव के भक्त चिता की राख और भस्म से होली खेलते हैं। वहीं रंगभरी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर होली खेली जाती है। होली खेलने के लिए हर साल यहां पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, काशी में इस बार होली से चार दिन पहले 21 मार्च 2024 को चिता की राख और भस्म से होली खेली जाएगी।
Mahadev ki holi in kashi
Pictures I got in whatsApp and don’t know the photographer.If someone knows,please mention.
Wonderful,no?
Har har mahadev
Chita bhasm bhari jholi digambar
Khele mashane mein horii pic.twitter.com/qkDBJvp1fa— Dr. Sandipan Ghosh (@SandipanGhosh5) March 6, 2020
क्यों खेली जाती है चिता की भस्म से होली?
आपको बता दें कि काशी में इस तरह होली खेलने की परंपरा बहुत पुरानी है। माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन शिव जी, मां पार्वती से विवाह करने के बाद उन्हें अपने साथ अपने धाम लेकर आए थे। जहां उन्होंने भूत, प्रेत, गण, निशाचर और पिशाच आदि के साथ भस्म की होली खेली थी। तब से लेकर आज तक मणिकर्णिका घाट और महाश्मशान हरिश्चन्द्र घाट पर इस तरह होली खेली जाती है।
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