Lok Sabha Election 2024: देश में 18वें लोकसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। प्रधानमंत्री पद की रेस में कई उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं। मगर क्या आप जानते हैं भारतीय राजनीति का वो किस्सा, जब कांग्रेस के एक कद्दावर नेता ने पीएम बनने का सपना संजोया और अपनी ही सीट पर एक अखबार बेचने वाले से हार गया। जी हां, हम बात कर रहे हैं कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी की।
राजीव गांधी का निधन
बात 1991 की है। देश में आम चुनावों का आगाज हुआ था। मगर इसी बीच प्रधानमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार राजीव गांधी की एक बॉम्ब ब्लास्ट में हत्या कर दी गई। राजीव की मौत के बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य पार्टी में एक्टिव नहीं था। सोनिया गांधी तब कांग्रेस का हिस्सा नहीं बनी थी और राहुल-प्रियंका काफी छोटे थे। ऐसे में सवाल यह था कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
पीएम की सीट पर टिकी नारायण दत्त की नजर
राजीव गांधी की मौत से देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी और जनता से मिली सहानुभूति की आंधी में सभी पार्टियां पीछे छूट गईं। लिहाजा इन चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। मगर कांग्रेस नेता नारायण दत्त को इन आम चुनावों में करारा झटका लगा, जिसकी शायद उन्होंने कभी उम्मीद भी नही की होगी।
अखबार बेचने वाले ने हराया
राजीव गांधी के बाद एनडी तिवारी कांग्रेस का बड़ा चेहरा थे। कई लोगों को लगता था कि आम चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद एनडी तिवारी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। मगर उन्हें दिल्ली की बजाए खुद उनके संसदीय क्षेत्र से ही निराशा झेलनी पड़ी। एनडी तिवारी उत्तराखंड के नैनीताल-उधम सिंह नगर से चुनावी मैदान में थे, जिन्हें टक्कर देने के लिए भाजपा ने बलराज पासी को अपना उम्मीदवार बना दिया। बलराज पासी भाजपा का नया चेहरा थे, जो आम चुनावों में खड़े होने से पहले अखबार बेचा करते थे। मगर इन चुनावों में एनडी तिवारी बलरास पासी से हार गए। बलरास पासी ने 5 हजार वोटों से एनडी तिवारी को मात दे दी, जिसके साथ नारायण दत्त तिवारी का प्रधानमंत्री बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया। वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने भी अपनी किताब में नारायण दत्त तिवारी की इस हार का जिक्र किया है।
दोबारा मिली शिकस्त
1991 में हार का दर्द झेल चुके एनडी तिवारी 1998 के लोकसभा चुनावों में फिर से हार गए। बीजेपी नेता केसी पंत की पत्नी इला पंत ने एनडी तिवारी को दोबारा नैनीताल-उधम सिंह नगर से ही शिकस्त दे दी। हालांकि बाद में एनडी तिवारी ने इसी सीट से जीत का परचम लहराया। 2002 में एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। इसी के साथ दो राज्यों का मुख्यमंत्री पद संभालने वाले वो देश के पहले राजनेता थे। मगर उनका प्रधानमंत्री बनकर देश के सर्वोच्च पद पर बैठने का सपना हमेशा के लिए अधूरा ही रह गया।