मानस श्रीवास्तव, यूपी: गठबंधन के कड़वे अनुभवों से गुजर रही समाजवादी पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ा फैसला लिया है। पार्टी ने तय किया है कि गठबंधन में आने वाले सहयोगी दलों को वह तभी सीट देगी, जब सहयोगी दल अपने उम्मीदवार का नाम समाजवादी पार्टी को सौंपेंगे।
अपने से कम हैसियत वाले दल को पार्टी सीट नहीं देगी
समाजवादी पार्टी की कोर कमेटी ने ये फैसला किया है कि अब लोकसभा चुनाव को लेकर अपने सहयोगी दलों के साथ सियासी तौर पर कोई भी नरमी न दिखाई जाए चाहे , कांग्रेस हो या राष्ट्रीय लोकदल या फिर इंडिया गठबंधन के दूसरे घटक दल समाजवादी पार्टी सभी से उम्मीदवारों की सूची मांगेगी और सिर्फ वही सीट छोड़ेगी, जिस सीट पर सहयोगी दल के उम्मीदवार की हैसियत कम से कम अपने बूते पर डेढ़ से 2 लाख वोट पाने की होगी, अगर कोई सहयोगी दल उम्मीदवार के नाम नहीं बताता है या उसके उम्मीदवार की हैसियत समाजवादी पार्टी के आकलन में बेहतर नहीं पाई जाती है तो, ऐसे हालातों में पार्टी अपने सहयोगी दल को वह सीट नहीं देगी।
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पिछले चुनावों में हुआ नुकसान
दरअसल, पार्टी नेताओं का मानना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और 2019 लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली समाजवादी पार्टी ने सहयोगी दलों को हैसियत से ज्यादा सीट देकर अपना नुकसान कर लिया, जिसकी वजह से सहयोगी दल को तो फायदा हुआ लेकिन, समाजवादी पार्टी नुकसान में गई।
वहीं, मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच अनबन देखने को मिली थी, जहां एक ओर चुनाव में कांग्रेस ने अपना पूरा जोर लगाया तथा अति आत्मविश्वास के कारण पार्टी ने विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए का भी ख्याल नहीं रखा। वहीं, दूसरी ओर सपा मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती थी, किंतु पार्टी ने यहां साइकिल को भाव नहीं दिया था।