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ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को इलाज में मिलेगा फायदा, IIT कानपुर के छात्रों ने तैयार की ये गजब की डिवाइस

World First Robotic Hand Exoskeleton: आईआईटी कानपुर ने स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन के लिए ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस के साथ दुनिया का पहला रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन विकसित किया है। इससे स्ट्रोक के मरीजों को फायदा मिलेगा।

Edited By : Parmod chaudhary | Updated: Jan 11, 2025 19:49
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Uttar Pradesh news
रिसर्च को लेकर जानकारी देते शोधकर्ता। Photo-IIT Kanpur/X

IIT Kanpur News: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर ने स्ट्रोक के बाद की चिकित्सा को फिर से परिभाषित (defined) करने के लिए अपनी तरह का पहला ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) बेस्ड रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन विकसित किया है। इससे स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन में मदद करने, मरीज की रिकवरी में तेजी लाने और परिणामों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। यह इनोवेशन आईआईटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आशीष दत्ता के 15 वर्षों के कठोर शोध का परिणाम है, जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), यूके इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव (UKIERI) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) का समर्थन मिला है।

BCI बेस्ड रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन एक अद्वितीय क्लोज्ड लूप कंट्रोल सिस्टम का उपयोग करता है, जो उपचार के दौरान रोगी के मस्तिष्क को सक्रिय रूप से संलग्न करता है। यह तीन आवश्यक घटकों (Components) को एकीकृत करता है। पहला है ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस, जो रोगी के हिलने-डुलने के प्रयास का आकलन करने के लिए मस्तिष्क के मोटर कॉर्टेक्स से ईईजी संकेतों को कैप्चर करता है। दूसरा है रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन, जो थेरप्यूटिक हैंड की तरह काम करता है। तीसरा घटक सॉफ्टवेयर है, जो वास्तविक समय में आवश्यकता के अनुसार बल प्रतिक्रिया के लिए एक्सोस्केलेटन के साथ मस्तिष्क के संकेतों को सिंक्रनाइज करता है। यह सिंक्रनाइज दृष्टिकोण मस्तिष्क की निरंतर भागीदारी सुनिश्चित करता है, जिससे तेज और अधिक प्रभावी रिकवरी को बढ़ावा मिलता है।

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प्रो. आशीष दत्ता ने बताया कि स्ट्रोक से रिकवरी एक लंबी और अक्सर अनिश्चित प्रक्रिया है। हमारा उपकरण फिजिकल थैरेपी, मस्तिष्क की सक्रियता और विजुअल फीडबक तीनों को एकीकृत करता है, जिससे एक बंद लूप कंट्रोल सिस्टम बनता है, जो मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी को सक्रिय करती है। इससे उत्तेजनाओं के जवाब में अपनी संरचना और कार्यप्रणाली को बदलने की मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ावा मिलता है। यह उन रोगियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिनकी रिकवरी रुक गई है, क्योंकि यह आगे के सुधार और गतिशीलता को पुनः प्राप्त करने की नई उम्मीद देता है। भारत और यूके में आशाजनक परिणाम मिले हैं। हम आशावादी हैं कि यह उपकरण न्यूरोरिहैबिलिटेशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

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स्ट्रोक से प्रेरित मोटर विकलांगता (Motor disability) अक्सर मोटर कॉर्टेक्स को क्षति पहुंचने के कारण होती है तथा पारंपरिक फिजियोथैरेपी पद्धतियों (traditional physiotherapy methods) में मस्तिष्क की अपर्याप्त भागीदारी के कारण उसकी अपनी सीमाएं होती हैं। यह उपकरण मस्तिष्क की गतिविधियों को शारीरिक गति से जोड़कर इसका समाधान प्रदान करता है। चिकित्सा के दौरान रोगियों को स्क्रीन पर हाथ से हरकतें करने के लिए निर्देशित किया जाता है, जैसे कि अपनी बाईं या दाईं मुट्ठी खोलना या बंद करना, जबकि उनके चलने का सही इरादा मस्तिष्क में ईईजी सिग्नल और मांसपेशियों में ईएमजी सिग्नल उत्पन्न करता है।

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इन दो संकेतों को फिर रोबोटिक एक्सोस्केलेटन को आवश्यकतानुसार सहायता मोड में सक्रिय करने के लिए जोड़ा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि मस्तिष्क, मांसपेशियां और कंप्यूटर स्क्रीन के विजुअल जुड़ाव रिकवरी परिणामों को बेहतर बनाने के लिए सामंजस्य में काम करते हैं। रीजेंसी हॉस्पिटल (भारत) और यूनिवर्सिटी ऑफ अल्स्टर (यूके) के सहयोग से किए गए पायलट क्लीनिकल परीक्षणों ने असाधारण परिणाम दिए हैं, जो ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) आधारित रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। उल्लेखनीय रूप से आठ मरीजों पर टेस्टिंग की गई थी।

8 मरीजों पर की गई टेस्टिंग

भारत और यूके के 4-4 मरीज लिए गए, जो स्ट्रोक के एक या दो साल बाद अपनी रिकवरी में स्थिर हो गए थे। इस अभिनव थैरेपी के माध्यम से वे पूरी तरह से ठीक हो गए। यह उपकरण थैरेपी के दौरान मस्तिष्क को सक्रिय रूप से शामिल करके रिहैबिलिटेशन की प्रभावशीलता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है, जिससे पारंपरिक फिजियोथैरेपी की तुलना में तेज और अधिक व्यापक रिकवरी होती है।

स्ट्रोक से उबरने का सबसे कारगर समय पहले 6 से 12 महीनों के भीतर का होता है, लेकिन इस डिवाइस ने उस महत्वपूर्ण समय सीमा से परे भी रिकवरी को सुविधाजनक बनाने की क्षमता प्रदर्शित की है। भारत में अपोलो हॉस्पिटल्स के साथ बड़े पैमाने पर चल रहे क्लीनिकल परीक्षणों के साथ उनको उम्मीद है कि यह डिवाइस तीन से पांच साल के भीतर व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो जाएगी, जो स्ट्रोक के रोगियों के लिए नई उम्मीद की किरण होगी।

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Edited By

Parmod chaudhary

First published on: Jan 11, 2025 07:45 PM

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