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आध्यात्म से लेकर राजनीति तक पहुंचा अयोध्या का नाम, ‘दीपोत्सव’ के सहारे वैश्विक स्तर पर बनाई पहचान

Ayodhya global identity with help of Deepotsav:धार्मिक मान्यताओं में अपनी अलग छवि रखने वाली अयोध्या का देश की राजनीति में एक अलग स्थान बना और अब दीपोत्सव के आयोजन के बाद से देखते ही देखते अयोध्या विश्व पटल पर अपनी पहचान बना रही है।

Edited By : Hemendra Tripathi | Updated: Oct 22, 2023 15:46
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Ayodhya global identity with help of Deepotsav: ध्यात्म की नगरी के साथ प्रभु श्री राम की जन्मभूमि कही जाने वाले अयोध्या अब देश से लेकर विदेश तक अपनी अलग पहचान बना चुकी है। उत्तर प्रदेश में सीएम योगी की सरकार आने से पहले अयोध्या सिर्फ हिंदुओं का एक आध्यात्मिक स्थल हुआ करता था लेकिन केंद्र में मोदी सरकार आने के साथ ही यूपी में हिंदूवादी छवि वाले योगी आदित्यनाथ के प्रदेश संभालते ही मानों अयोध्या की अलग पहचान बनना शुरू हो गई। तेजी से बढ़ रहे विकास कार्यों के बीच अयोध्या के राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ और अब विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में अयोध्या सजाई जा रही है। लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था। आध्यात्म और अपने इतिहास से शुरू हुई अयोध्या ने उत्तर प्रदेश के साथ साथ केंद्र की राजनीति पर भी बड़ा प्रभाव डाला। नतीजन, केंद्र में दूसरी बार मोदी सरकार वापसी और प्रदेश में भी दूसरी बार योगी सरकार की वापसी हुई। धार्मिक मान्यताओं में अपनी अलग छवि रखने वाली अयोध्या का देश की राजनीति में एक अलग स्थान बना और अब देखते ही देखते अयोध्या विश्व पटल पर अपनी पहचान बना रही है।

मुलायम सरकार में कारसेवकों की हत्या के बाद अयोध्या की राजनीति में हुई एंट्री

साधु संतों, मंदिरों से बंध कर सरयू के तट पर बसी अयोध्या ने देश की राजनीति में एंट्री यूं ही नहीं मारी बल्कि इसके पीछे वो कहानी है, जिसने खुद अयोध्या को राजनीति की तरफ मोड़ने का काम किया। आपको बता दें कि 90 के दशक में यूपी की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में थी और उसी दौरान अयोध्या आंदोलन अपने चरम पर था। मुख्यमंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने बयान दिया कि उनके सीएम रहते बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा पर भी नहीं मार सकता। उनके इस बयान के बाद मानो प्रदेश से लेकर देश भर के सनातनियों के मन में युद्ध की लौ सी जल गई हो। 1990 में अक्टूबर माह में हिंदू साधु-संत कारसेवा के लिए अयोध्या में कूच कर रहे थे, उसी बीच 30 अक्टूबर 1990 को देखते ही देखते कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हुई और बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ते लगी। परिस्थितियों के हाथ से निकलता देख मुलायम सिंह यादव ने सख्ती के साथ प्रशासन को गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें पुलिस की गोली से 5 कार सेवकों की मौत हो गई। बस यही वो दिन था, जब अयोध्या की राजनीति में एंट्री हुई और इसी घटना ने देश व प्रदेश की राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल दी।

कल्याण सिंह की सरकार से राम मंदिर मुद्दे को मिली हवा

30 अक्टूबर को मारे गए कारसेवकों के चलते हिंदू समाज के लोग गुस्से में थे। इसी बीच 2 नवंबर 1990 को एकबार फिर हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए और एक बार फिर पुलिस की फायरिंग में एक दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई। ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने अपनी सख्ती से उस समय बाबरी मस्जिद भले ही बचा ली, लेकिन इसी के बाद से उत्तर प्रदेश से लेकर देश की सियासत हमेशा के लिए बदल गई। हिंदू समाज पर पहुंची चोट का खामियाजा मुलायम सिंह यादव को चुनाव हार कर भुगतना पड़ा। कल्याण सिंह की सरकार आई और इस बार छह दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने आखिरकार अपने शौर्य का प्रमाण देते हुए बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। जिसकी कल्याण सिंह ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर, 1992 को ही अपने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और इसी के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने यूपी की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया। कल्याण सिंह ने उस वक्त कहा कि ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी, अब उसका मकसद पूरा हुआ, ऐसे में ये सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान है। भाजपा के इस जुड़ाव का ही फल है कि 2014 से लगातार केंद्र में भाजपा सत्ता पर काबिज हो गई।

राम मंदिर के नाम पर सत्ता में आई भाजपा, भूमि पूजन के बाद शुरू हुआ निर्माण कार्य

राम मंदिर के नाम पर यूपी से लेकर केंद्र तक सियासत शुरू हो गई। मामला कोर्ट पहुंचा और तारीखे बढ़ती गईं, जिसके बाद तकरीबन 27 साल बाद राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। आपको बता दें कि राम मंदिर के नाम पर भाजपा ने केंद्र में मोदी सरकार बनाई। भाजपा जानती थी कि भारत के एक बड़े हिस्से की भावनाएं राम मंदिर से जुड़ी हैं, लिहाजा केंद्र के चुनाव का केंद्र अयोध्या हो गई। देश के उसी बड़े हिस्से ने भरोसा जताया और केंद्र में मोदी सरकार को बैठा दिया। कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आने के बाद तेजी से विपक्ष की ओर से राम मंदिर को लेकर को लेकर सवाल होने लगे, इन्हीं सवालों के बीच 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम संपन्न हुआ। तब से लगातार राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है और बताया जा रहा है कि 2024 तक राम मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा। राम मंदिर निर्माण से जुड़ी तस्वीरें अक्सर मंदिर समिति की ओर से सोशल मीडिया पर जारी होती हैं, जिसकी भव्यता को लेकर राममंदिर से जुड़ी भावनाओं वाले देश के एक बड़े हिस्से ने मान लिया कि भाजपा को सत्ता में बैठाने का फैसला गलत नहीं था।

दीपोत्सव का हुआ आगाज, राम मंदिर को वैश्विक स्तर पर मिलने लगी पहचान

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने बाद अयोध्या के विकास के साथ-साथ दिपोत्सव जैसे कार्यक्रमों की शुरूआत हुई और इसी शुरूआत के सहारे अयोध्या और अयोध्या का राम मंदिर देश की राजनीति से निकलकर विदेश में अपनी पहचान बनाने लगा। वर्ष 2017 में हुए दीपोत्सव की शुरुआत के बाद से हर साल दीपोत्सव अपनी नई ऊर्जा के साथ नया कीर्तिमान बना रहा है। अयोध्या में बीते 2 वर्षो की बात करें तो साल 2021 में अयोध्या में दीपोत्सव के मौके पर 12 लाख दीयों को जलाए जाने का रिकॉर्ड बनाया गया था। इसके बाद 2022 में राम की पैड़ी पर 15 लाख 76 हजार दीयों को जलाकर नया रिकार्ड बनाया गया और उसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। हर बार की तरह इस बार भी दीपोत्सव की तैयारियों को लेकर अयोध्या के 51 घाटों के चिह्नित स्थलों 14 गुणा 14 के 12,500 ब्लॉक बनाए जाएंगे, इन ब्लॉक्स में 24 लाख दीये बिछाए जाएंगे। इसके लिए महाविद्यालयों, इंटर कॉलेजों, स्वयंसेवी संस्थाओं के तकरीबन 25हजार वालंटियर्स सातवीं बार के दीपोत्सव में छठवीं बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अयोध्या का नाम दर्ज करेंगे।

First published on: Oct 22, 2023 03:46 PM
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