राजस्थान के बारां जिले के अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। साथ ही दो हफ्ते के भीतर सरेंडर करने के लिए कहा है। इससे जनप्रतिनिधि कानून के तहत उनकी विधायकी जाना तय माना जाना रहा है, क्योंकि उन्हें एक एसडीएम पर तमंचा तानने और सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने के आरोप में 3 साल की सजा मिली थी।
कल यानी कि 6 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी होने तक उनके सरेंडर करने पर रोक लगाई थी और आज 24 घंटे बाद ही इस मामले पर अपना फैसला देते हुए उन्हें दो हफ्ते के भीतर सरेंडर करने को कहा है। इसे देखते हुए अब ये कहा जा रहा है कि ऐसे में जनप्रतिनिधि कानून के तहत उनकी सदस्यता जाना तय है।
2005 का क्या है ये आपराधिक मामला?
2005 में, कंवरलाल मीणा ने अकलेरा (झालावाड़) के तत्कालीन उपखंड अधिकारी (SDM) रामनिवास मेहता पर रिवाल्वर तान कर धमकी दी थी और सरकारी कार्य में बाधा डाली थी। यह घटना कथित तौर पर एक मतदान केंद्र पर हुई, जहाँ मीणा ने चुनाव प्रक्रिया को बाधित किया। इस घटना के लिए उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353 (लोक सेवक को कर्तव्य से रोकने के लिए हमला), 332 (लोक सेवक को चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया। साथ ही, आर्म्स एक्ट के तहत भी कार्रवाई हुई।
क्या था निचली अदालत का फैसला?
14 दिसंबर 2020 को, झालावाड़ की एडीजे अकलेरा कोर्ट ने कंवरलाल मीणा को दोषी ठहराया और 3 साल की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया गया था। इस सजा के खिलाफ मीणा ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की थी।
राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला
2 मई 2025 को, राजस्थान हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और मीणा की 3 साल की सजा को कायम रखा गया। हाईकोर्ट ने मीणा को तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया, जिससे उनकी विधानसभा सदस्यता पर खतरा मंडराने लगा। कहा ये जा रहा है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (3) के तहत, 2 साल से ज्यादा की सजा पाने वाले जनप्रतिनिधि की सदस्यता समाप्त हो सकती है। वहीं इस आधार पर, कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी से उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
6 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कंवरलाल मीणा को अंतरिम राहत प्रदान की। कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के सरेंडर आदेश पर रोक लगा दी, जिससे मीणा को तत्काल सरेंडर करने से छूट मिली। सुप्रीम कोर्ट में उनकी अपील अभी लंबित है और इस मामले में अंतिम फैसला आना बाकी है। इस राहत के कारण, मीणा की विधानसभा सदस्यता फिलहाल बरकरार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय उनकी स्थिति को निर्धारित करेगा।
क्या खतरे में हैं विधायकी?
कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष टीका राम जुली ने इस मामले को गंभीर बताते हुए मीणा की विधानसभा सदस्यता तुरंत रद्द करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मीणा कई अदालतों में केस हार चुके हैं। भाजपा ने इस मामले पर अभी तक कोई स्पष्ट सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम राहत से मीणा को कुछ समय के लिए राहत मिली है।
क्या है विधायकी जाने का नियम?
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता पर संकट मंडरा रहा है, क्योंकि राजस्थान उच्च न्यायालय ने उन्हें एक 2005 के मामले में तीन साल की सजा सुनाई है। यह मामला एक सरकारी अधिकारी को बंदूक दिखाकर धमकाने से संबंधित है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) अनुसार, यदि किसी विधायक या सांसद को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो वह स्वत ही अयोग्य हो जाता है और उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है। हालांकि, इस प्रक्रिया को औपचारिक रूप से लागू करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को अदालत के आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त करनी होती है।