के जे श्रीवत्सन, जयपुर: राजस्थान विश्वविद्यालय के महारानी कॉलेज में ट्रांसजेंडर नूर शेखावत को एडमिशन मिल गया है। लंबे समय बाद पहले तो उन्हें जन्म प्रमाण पत्र मिला और उसके बाद हायर एजुकेशन के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ा। कॉलेज में एडमिशन के बाद नूर अब अपने नाम के आगे डॉक्टर लगवाने के लिए कड़ी मेहनत में जुट गई हैं। हालांकि, नूर ने खुद के जैसे ट्रांसजेंडर बच्चों की तरफ से एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया है कि किन्नरों से आशीर्वाद तो सबको चाहिए, लेकिन ऐसे बच्चे पैदा होने पर उन्हें अपने ही घर में नहीं रखा जाता है, कोसा जाता है, ऐसा क्यों!
एडमिशन के लिए करना पड़ा संघर्ष
दरअसल, 12वीं पास करने के बाद नूर कॉलेज में प्रवेश लेने गईं तो, उनके आवेदन को स्वीकार तो कर लिया गया, लेकिन थर्ड जेंडर के लिए कोई प्रावधान नहीं होने के चलते उन्हें काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा। नूर के लगातार संघर्ष के चलते अब कॉलेज की सेंटर फॉर एडमिशन कमेटी ने स्पेशल केस मानते हुए ट्रांसजेंडर श्रेणी में उन्हें दाखिला दिया है। नूर शेखावत उस वक्त सुर्खियों में आई थीं, जब उन्हें इस साल 19 जुलाई को प्रदेश का पहला ट्रांसजेंडर का बर्थ सर्टिफिकेट जयपुर नगर निगम की ओर से मिला था।
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विधानसभा चुनाव में बनाया गया ब्रांड एंबेसडर
नूर ने 2013 में 12वीं की परीक्षा पास की थी, लेकिन जन्म और शुरुआती शिक्षा के प्रमाण पत्र में नाम और जेंडर की वर्तमान पहचान से अलग होने के चलते उन्हें कहीं भी प्रवेश नहीं मिला, क्योंकि वह ट्रांसजेंडर के रूप में ही अपने आगे की शिक्षा पूरी करना चाहती थीं, जिसके लिए उसने लंबी लड़ाई भी लड़ी। वैसे, नूर के संघर्ष से प्रभावित होकर राजस्थान सरकार ने उन्हें विधानसभा चुनाव में ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है। हालांकि, खुद नूर अपनी पिछली जिंदगी के बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहती है, लेकिन सूत्रों के अनुसार ट्रांसजेंडर नूर का जन्म का नाम आदित्य प्रताप सिंह था। पैदाइशी किन्नर होने के बावजूद भी घर वालों ने उसे लड़के की तरह ही पाला, लेकिन नूर अपने आप को महिला के रूप में सहज मानने लगी थीं।
नई पीढ़ी के लिए राह हुई आसान
अपने भविष्य के लिए खासतौर पर पढ़ाई में बाधा बन रही है जेंडर को दूर करने वाली नूरशेखावत का दावा है कि उनके संघर्ष ने ट्रांसजेंडर की नई पीढ़ी के लिए राह आसान कर दी है। अब उन्हें अपने जेंडर के साथ शिक्षा पाने से कोई नहीं रोक पाएगा। नूर का कहना है कि बचपन से ही उनके साथ भेदभाव किया जाता था। लैंगिक प्रताड़ना भी हर जगह मिली, जिसके चलते वह ठीक से स्कूल भी नहीं जा पाती थी। यहां तक की उसके माता-पिता भी उन्हें कोसते थे। हालांकि, नूर को उम्मीद है कि उनके माता-पिता उन्हें स्वीकार कर लेंगे। उन्होंने बताया कि कहा कि वर्ष 2017 में जब उसके पड़ोस में किन्नर आए तो, उनसे बातचीत के बाद ही उसके जीवन मे बड़ा बदलाव आया था। वे उनके साथ रहने उदयपुर भी चली गई थीं। बधाइयां मांगकर जीवन भी चलाया और अब आगे की पढ़ाई भी कर रही हूं।