Rajasthan Assembly Election 2023 : देश की आजादी के 75 साल पूरे हो चुके हैं और आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। राजस्थान सरकार का दावा है कि पिछले से पिछड़े गांवों तक में सड़कों का जाल बिछा दिया गया है। लेकिन आज भी राजस्थान के बाड़मेर में सरहदों से लगे गांवों में लोग ऊंट पर सवार होकर वोट डालने जाते हैं या फिर ट्रैक्टर का सहारा लेते हैं। बाड़मेर जिले में सुंदरा, रोहिड़ी, बिजावल, द्राभा, खबड़ाला, रतरेड़ी कला, बंधड़ा, रोहिड़ाला ग्राम पंचायत ऐसी जगह हैं, जहां पर लोगों को बूथ तक पहुंचने के लिए पैदल, ऊंट या ट्रैक्टर का सहारा लेना पड़ता है। इसके पहले विधानसभा चुनाव 2018 में दो दर्जन से अधिक पोलिंग बूथों पर पोलिंग पार्टियां ऊंटों पर सवार होकर पंहुची थीं। 2023 के चुनाव को लेकर अभी तक पोलिंग बूथों की सूची जारी नहीं हुई है लेकिन प्रशासनिक अमले को भली भांति पता है कि धोरे पार करना बिना ऊंटों के मुश्किल होगा।
कुछ गांव सड़कों से जुड़े
जिले के कुछ गांवों के ग्रेवल सड़कों से जोड़ा गया है, जिससे लोगों के आवागमन में सहजता हुई है। लेकिन कई गांवों में आधी अधूरी ग्रेवल सड़कें हैं, जिनको पूरी होने में वक्त लगेगा।सिरगुवाला के रहने वाले भूरसिंह सोढा जो पाक विस्थापित ग्रामीण हैं, उन्होंने बताया कि नेता वोट लेने के वक्त यहां आते हैं और सड़क बनवाने समेत गांव के विकास का वादा करते हैं। इसलिए गांव के लोगों में विकास महज सपना बना हुआ है। सड़क, पानी, बिजली की सुविधाएं मिलें तो इन गांवों के भी दिन बेहतर हो सकते हैं।
ग्रामीणों ने कही यह बात
गड़स ग्राम पंचायत के बिजावल गांव के रहने वाले गेन सिंह सोढा कहते हैं कि हमारे गांव गड़स तक पहुंचने के लिए आज भी ऊंट, ट्रैक्टर का सहारा लेना पड़ता है। मतदान के दिन पोलिंग बूथ तक पैदल या ऊंटों पर जाना हमारी मजबूरी है, जिसके कारण कई लोग मतदान ही नहीं करते हैं। ग्राम पंचायत झणकली के मांगीदान चारण कहते हैं कि गांव झणकली से ऊनरोड़, झणकली से जानसिंह की बेरी, दूधोड़ा, बालेबा, भाडली, नीमली जाने के लिए अभी भी ऊंटों या टेक्ट्रर का सहारा लेना पड़ता है। कुछ जगह ग्रेवल सडक़ें बनाई गई लेकिन वो भी रेत में दब गई या बरसात में टूट कर बिखर गई है।
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