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76 साल बाद पाकिस्तान गए रिटायर्ड फौजी सुरजीत सिंह; याद आया वो वक्त-जब दोस्तों को बिलखता छोड़कर 10 दिन चले थे पैदल

कलानौर (गुरदासपुर): आदमी कितना भी कोशिश करे कि बीता वक्त उसे भूल जाए, लेकिन दिल के किसी न किसी कोने में दबी पड़ी यादों से जब धूल हटती है तो अच्छे-बुरे अनुभव दे ही डालती हैं ये। हाल ही में गुरदासपुर के एक रिटायर्ड फौजी के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ है, जब वह […]

Edited By : Balraj Singh | Updated: Sep 5, 2023 16:26
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कलानौर (गुरदासपुर): आदमी कितना भी कोशिश करे कि बीता वक्त उसे भूल जाए, लेकिन दिल के किसी न किसी कोने में दबी पड़ी यादों से जब धूल हटती है तो अच्छे-बुरे अनुभव दे ही डालती हैं ये। हाल ही में गुरदासपुर के एक रिटायर्ड फौजी के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ है, जब वह 76 साल साल के बाद सरहद के उस पार रह गई अपनी जड़ों से जुड़ने पहुंचे। वहां एक ओर बचनन के दोस्तों के साथ मिलकर उनकी बाछें खिल गई, वहीं बंटवारे का वह दर्द भी टीस दे गया, जिसकी वजह से अपने इन्हीं दोस्तों से बिछड़ने के बाद वह 10 दिन पैदल चलकर परेशानियों के इस पार सुख के स्वर्ग में आए थे।

  • 5 मई 1932 को नारोवाल तहसील (अब पाकिस्तान में है) के गांव वजीरपुर में गुरदासपुर के कलानौर में रह रहे सुरजीत सिंह काहलों

साढ़े सात दशक से भी ज्यादा वक्त के बाद पाकिस्तान स्थित अपने पुश्तैनी घर पहुंचे कलानौर के समाजसेवी जगदीप सिंह गब्बर के सेवानिवृत सूबेदार दादा सुरजीत सिंह काहलों ने बताया बंटवारे की पूरी घटना उनकी आंखों के सामने ही घटी थी। उनके दिल और दिमाग आज भी पाकिस्तान में बिताए हर पल की पूरी तस्वीर बनी हुई है।

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पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था उनका जन्म

सुरजीत सिंह काहलों ने बताया कि उनका जन्म 5 मई 1932 को नारोवाल तहसील (अब पाकिस्तान में है) के गांव वजीरपुर में हुआ था। काहलों ने बताया कि भारत-पाकिस्तान के बीच जब सरहद की लकीर खींची गई तो उस वक्त वह 8वीं क्लास में पढ़ रहे थे। मां बसंत कौर और पिता बलवंत सिंह के साथ वह इस तरफ आए तो उस वक्त जहां हिन्दू-मुसलमान,और सिख एक दूसरे को मारने में लगे हुए थे, वहीं उनके गांव के मुसलमानों ने उनके परिवार वालों के साथ काफी अच्छे से बर्ताव किया।

ऐसे पहुंचे थे पंजाब

आगे उन्होंने बताया कि पार्टीशन के दौरान उनके बचपन के दोस्त बशीर समेत मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते तमाम दोस्तों ने एक-दूसरे को रोते हुए छोड़ा था। इसके बाद वह और उनका परिवार करीब 10 दिनों तक पैदल चलते रहे। 10 दिनों बाद वह अमृतसर के खालसा कॉलेज में पहुंचे थे जिसके बाद वह कुछ दिनों तक खालसा कॉलेज में ही रहे थे। उन्होंने बताया कि उस दौरान उनके परिवार के पास कुछ खाने को भी नहीं था पैदल चलने के दौरान रास्ते में पढ़ने वाले मुधल गाँव में ग्रामीणों द्वारा लगाए गए लंगर से उनके परिवार ने अपना पेट भरा था।

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घर की तलाश में कहां-कहां भटके

सूबेदार सुरजीत सिंह काहलों ने बताया की पंजाब में आने के कुछ वक्त उनके पास घर भी नहीं था। उनका परिवार को घर की तलाश में काफी भटकना पड़ा, लेकिन फिर उनकी चाचा के मित्र ब्रिटिश पुलिस में कार्यरत थे जिनकी मु गांव में अच्छी पहचान होने के कारण वह हमे अपने साथ अपने घर ले गए थे।  जिसके बाद वह अगस्त और सितंबर तक अपने पड़ोस में खाली पड़े मुस्लिम घर में रहे।

कच्ची नौकरी के बाद CISF में मिली नौकरी

सुरजीत सिंह कोहाला ने बताया की इंद्रजीत सिंह के दोस्त के द्वारा उनकी पहले कच्ची नौकरी लगी थी फिर कुछ समय नौकरी करने के बाद उनकी नौकरी पक्की हो गई थी। उसके बाद वह विभाजन के बाद सेना में शानदार सूबेदार बनने के बाद उनको CISF में नौकरी मिल गई थी।

वीजा बनवाकर पहुंचे पाकिस्तान

सुरिंदर सिंह का कहना है कि उनको अपने दोस्तों की याद आती है इसलिए वह वीजा बनवाकर पाकिस्तान पहुँच गए। पाकिस्तान में पहुंचकर बशीर और अन्य दोस्तों से भी मिलेंगे पाकिस्तान में चले गए। वही, पाकिस्तान में उनका पुश्तैनी घर भी है जिसकों देखकर और अपने दोस्तों से मिलकर उनकी यादें ताजा हो गई।

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Edited By

Balraj Singh

First published on: Sep 05, 2023 04:25 PM

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