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मुंबई

क्या एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र मजाक हैं? कुणाल कामरा मामले में BJP-फडणवीस की भूमिका पर उठे सवाल

कुणाल कामरा की कविता, उसके पॉडकास्ट स्टूडियो पर हमला, मामले में मुख्यमंत्री फडणवीस की प्रतिक्रिया और छिड़ी सियासत देखकर लग रहा है कि एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र मजाक बन गए हैं। शिवसेना के मुखपत्र सामना में इस मुद्दे पर आज एक संपादकीय लिखा गया, आइए पढ़ते हैं...

Author Reported By : Rahul Pandey Edited By : Khushbu Goyal Updated: Mar 26, 2025 10:39
Maharashtra Politics
Kunal Kamra, Eknath Shinde, Devendra Fadnavis

आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है। आलोचना का हमेशा स्वागत किया जाना चाहिए, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने 8 दिन पहले कहा था। प्रधानमंत्री मोदी के शब्द प्रसारित होने से पहले ही विडंबना और आलोचना करने के निमित्त मोदी समर्थक एकनाथ शिंदे गुट ने एक ‘पॉडकास्ट स्टूडियो’ पर हमला कर दिया। स्टूडियो और अभिव्यक्ति की आजादी के मंच को नष्ट कर दिया। ‘पॉडकास्ट’ कलाकार कुणाल कामरा को जान से मारने की धमकी दी। जब मुंबई शहर में यह अराजकता चल रही थी, महाराष्ट्र के गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस क्या कर रहे थे और उनकी पुलिस क्या कर रही थी?

जब तोड़-फोड़ हो रही थी तो पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी या तोड़फोड़ करने वालों की मदद करने की भूमिका में थी। प्रधानमंत्री मोदी समर्थक शिंदे गुट द्वारा कुणाल कामरा के स्टूडियो में तोड़-फोड़ करते ही मुंबई महानगरपालिका जागी और सुस्त पड़े बुलडोजर के साथ स्टूडियो पहुंच गई। स्टूडियो में कई निर्माण कार्यों को अवैध बताकर महानगरपालिका ने उसे तोड़ दिया। स्टूडियो में गलत काम किया गया है। यह पालिका को शिंदे की आलोचना के बाद समझ में आया, इसे भी मजाक ही कहा जाना चाहिए। महाराष्ट्र के लिए यह तस्वीर भयावह है और इस तस्वीर पर कुणाल कामरा द्वारा व्यंग्यात्मक कविता प्रस्तुत की गई।

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इसमें कुणाल कहते हैं,

ठाणे की रिक्शा
चेहरे पे दाढ़ी
आंखों में चश्मा
हाय…
एक झलक दिखलाए,
कभी गुवाहाटी में छुप जाए…
मेरी नजर से तुम देखो
तो गद्दार नजर वो आए…
मंत्री नहीं वो दलबदलू है
और कहा क्या जाए
जिस थाली में खाए
उसमें ही छेद ये कर जाए
मंत्रालय से ज्यादा
फडणवीस के गोदी में मिल जाए…

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क्या अभिव्यक्ति का आजादी का कोई मतलब नहीं?

कुणाल कामरा की इस व्यंग्यात्मक कविता से भला कोई क्यों जले-भुने और उसके लिए मुंबई में दहशत फैलाकर कर कानून का मुद्दा बनाए? प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है। यहां लोकतंत्र और आत्मा दोनों को पैरों तले रौंदकर मोदी समर्थकों ने ही नंगानाच किया है। देवेंद्र फडणवीस एक हतबल गृहमंत्री और कमजोर मुख्यमंत्री हैं, यह फिर एक बार साबित हो गया है। पॉडकास्ट स्टूडियो पर हमला करने वाले गुंडों पर कार्रवाई करने की बजाय गृहमंत्री कुणाल कामरा से कहते हैं कि वह एकनाथ शिंदे से माफी मांगें और मामला सुलझाएं।

अभिव्यक्ति की आजादी क्या अब कुछ नहीं है? फडणवीस के बाप-दादा ने आपातकाल के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने के खिलाफ संघर्ष किया। वे लोग आपातकाल के खिलाफ जेल गए थे और इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़े थे, लेकिन अब यह बात सच नहीं लगती। भाजपा की ढोंगी मंडली 26 जून को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाती है, क्योंकि इसी दिन इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। इसी दिन आजादी का गला दबाने का फरमान जारी हुआ था, ऐसा इन लोगों का मानना है।

व्यंग्य और साहित्य लेख की लंबी परंपरा रही

कुणाल कामरा के मामले को देखने के बाद भाजपा को 26 जून को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने का ढोंग बंद कर देना चाहिए, बल्कि इस दिन को ‘ढोंग दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए। ‘माफी मांगो और छूट जाओ’ यह मौजूदा मुख्यमंत्री की नीति प्रतीत होती है। यदि पॉडकास्ट रिकॉर्ड करने वाले ने झूठी और बदनामी भरी आलोचना की है तो उस पर कानूनन कार्रवाई हो सकती है, लेकिन अपराध साबित होने से पहले ही धमकियां, मारपीट, तोड़-फोड़ करना गुंडाराज है। इस गुंडाराज को गृहमंत्री फडणवीस खुलेआम समर्थन दे रहे हैं। मराठी भाषा और हिंदी साहित्य में व्यंग्य लेखन और साहित्य की एक लंबी परंपरा रही है।

हिंदी में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, सुरेंद्र शर्मा, संपत सरल व्यंग्य की बहार लाए। मराठी में आचार्य अत्रे, मंगेश पडगावकर, विंदा करंदीकर, अशोक नायगावकर, महेश केलुस्कर ने व्यंग्यात्मक कविताएं लिखीं। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के व्यंग्यचित्रों ने तो कइयों को गुदगुदाया और घायल किया, लेकिन इसे समझ पाने की अक्ल आज के राजनेताओं में नहीं है। संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई में आचार्य अत्रे के व्यंग्यात्मक बाणों ने शंकर देव, मोरारजी देसाई, यशवंतराव चव्हाण को बेजार कर दिया था, लेकिन पाटील ने अत्रे के ‘मराठा’ प्रेस को तोड़ने के लिए गुंडे नहीं भेजे।

महाराष्ट्र सरकार ‘खोक्याभाइयों’ की सरकार

सवाल कुणाल कामरा का नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र में कानून का राज का है। बीड में खुलेआम हत्या हो रही है। औरंग्या के नाम पर नागपुर में दंगा भड़क गया। महाराष्ट्र में तनावपूर्ण स्थिति बन गई। शिवाजी महाराज का अपमान करने वाला प्रशांत कोरटकर पुलिस से बचकर करीब एक महीने तक गायब रहता है। आखिर मंगलवार को तेलंगाना से उसे पकड़ लिया जाता है। यह क्या तरीका है? शिंदे के लोग कुणाल कामरा पर हमला करते हैं, लेकिन शिवराय का अपमान करने वाले कोरटकर के खिलाफ ‘एक शब्द’ बोलने को भी तैयार नहीं हैं तो क्या महाराष्ट्र सरकार ने कोरटकर को शिवराय का अपमान करने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी दे दी है?

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि विधानसभा में कई ‘खोक्याभाई’ बैठे हैं।’’ यह विधान वास्तविकता को दर्शाता है, जिन्होंने 50 खोके लेकर दलबदल किया और उसी खोकों के बल पर निर्वाचित हुए, उन सभी लोगों को राज ठाकरे ने ‘खोक्याभाई’ कहा। सरकार इन्हीं ‘खोक्याभाइयों’ की है। आज ‘खोक्याभाई’ की उपमा देने के कारण क्या शिंदे के लोग राज ठाकरे के घर की ओर कूच करेंगे? पिछले 3 वर्षों में महाराष्ट्र का खुलापन और प्रगतिशील सोच पूरी तरह नष्ट कर दी गई है। सब पर पैनी नजर रखने वाली सरकारी यंत्रणा भाजपा ने खड़ी की है। सभी विरोधियों और आलोचकों पर नजर रखी जा रही है। विरोधियों का फोन टैप किया जा रहा है, यह हमारे लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति है।

फडणवीस की राहत आसान कर रहे मुद्दे

महाराष्ट्र में लोकतंत्र और आजादी की इस तरह से हत्या की जाएगी, ऐसा कभी सोचा नहीं था। कुणाल कामरा के निमित्त यह किया गया। महाराष्ट्र में 40 विधायकों ने गद्दारी की और एक संविधानेत्तर सरकार बना ली। उस साजिश में आज के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी शामिल थे। इसका खूब प्रचार हुआ। सुप्रीम कोर्टबाजी हुई। खोकों को लेकर नारे गूंजे। कुणाल कामरा ने व्यंग्यात्मक गीत में यही बात कही है तो इसमें नया क्या है? नई बोतल में पुरानी ही शराब है। उस पुरानी शराब का नशा शिंदे के लोगों पर ऐसा चढ़ा कि उन्होंने कामरा के स्टूडियो पर हमला कर दिया।

जिनमें आलोचना सहने का साहस नहीं, उनके ही पैर कंपकंपाते हैं, यह इसी बात का संकेत है। वहीं हो रहा है जो फडणवीस चाहते हैं। शिंदे का लड़खड़ाना फडणवीस की राह आसान बना रहा है। कामरा मामले में शिंदे की बहुत किरकिरी हुई। फडणवीस का कहना है कि कामरा को शिंदे से माफी मांगनी चाहिए। फडणवीस और उनके लोग शिंदे को हल्के में ले रहे हैं और पर्दे के पीछे से उन्हें टपली-चिमटी मार रहे हैं। शिंदे महाराष्ट्र में हंसी का पात्र बन गए हैं। भाजपा और फडणवीस मजा ले रहे हैं। इस मजाक में महाराष्ट्र भी हास्यास्पद बन गया है, यह ठीक नहीं है।

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Edited By

Khushbu Goyal

Reported By

Rahul Pandey

First published on: Mar 26, 2025 10:24 AM

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