Bombay High court verdict child kidnapping from mother: पति-पत्नी में पारिवारिक विवाद होने के बाद अगर पिता बच्चे को अपने साथ जबरन ले जाता है तो उसके खिलाफ किडनैपिंग का मामला दर्ज किया जा सकता है या नहीं। इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपने नाबालिग बेटे को मां की हिरासत से छीन लेता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसने उसका अपहरण कर लिया है। हाईकोर्ट के जस्टिस विनय जोशी और वाल्मिकी मेनेजेस की बेंच ने फैसला सुनाया कि ऐसे मामलों में बायोलॉजिकल पिता पर आईपीसी के तहत अपहरण का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है, अगर अदालत ने नाबालिग की कस्टडी मां को नहीं दी है।
ये भी पढ़ें: मुंबई में बुजुर्ग महिला का मर्डर, पहले रॉड से पीट-पीट कर मारा, शव जलाकर बोरे में भरा और खिड़की से फेंका
बॉम्बे हाईकोर्ट का किडनैपिंग के मामले में फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला की पति के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि नाबालिग का बायोलॉजिकल पिता भी मां के साथ-साथ वैध अभिभावक है। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि उसने धारा 361 के तहत अपराध किया है और उसे धारा 363 के तहत दंडनीय बनाया जा सकता है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पिता का कदम बच्चे को मां की वैध संरक्षकता से पिता की दूसरी वैध संरक्षकता में ले जाने जैसा है। पीठ ने फैसला सुनाया कि जब तक पिता के संरक्षकता के अधिकारों का हनन नहीं होता, तब तक उसे धारा 361 के तहत अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
ये भी पढ़ें: Maratha Protest: आखिर शिंदे सरकार से क्यों नाराज हुआ कुनबी समाज, मराठा आरक्षण आंदोलन से क्या है कनेक्शन?
बायोलॉजिकल पिता बच्चे का अभिभावक
बता दें कि अमरावती पुलिस के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने के बाद पिता ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था। शख्स के खिलाफ उनकी पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई कि वह 29 मार्च को अपने तीन साल के बेटे को जबरन ले गए थे। अब इस मामले में कोर्ट ने हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 का हवाला देते हुए कहा कि एक हिंदू नाबालिग के लिए, पिता एक बायोलॉजिकल अभिभावक है और मां भी। यह मानते हुए कि प्रथम दृष्टया, अपहरण का मामला नहीं बनता है। ऐसी परिस्थितियों में आरोप जारी रखना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। एक हिंदू नाबालिग के लिए बायोलॉजिकल पिता अभिभावक है और मां भी।