Bombay HC denied to Transfer RBI Bond of Jain Sadhu: दुनिया की मोहमाया से छुटकारा पाने के लिए एक शख्स ने संन्यास ले लिया। घर में बूढ़ी मां और पत्नी रहती है। शख्स ने अपने नाम पर भारतीय रिजर्व बैंक के बॉन्ड खरीदे थे, जिनकी कीमत 56 लाख रुपए है। शख्स के संन्यासी बनने के बाद मां और पत्नी ने बैंक का रुख किया। बैंक ने बॉन्ड ट्रांसफर करने से साफ इनकार कर दिया। वहीं जब दोनों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट के फैसले ने दोनों को हैरान कर दिया।
कोर्ट ने क्या कहा?
यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट का है। कोर्ट के सामने ऐसा ही एक किस्सा सामने आया है। एक शख्स ने सामान्य जीवन छोड़कर साधु बनने का फैसला लिया और जैन भिक्षु बन गया। जस्टिस रेवतची मोहिते डेरे और नीला गोखले ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत यह मामला अदालत के रिट क्षेत्र में है, लेकिन अदालत दोनों पक्षों के विवादित दावों में हस्तक्षेप नहीं करेगी। संन्यास लेने का मतलब यह कतई नहीं है कि उस व्यक्ति की नागरिकता खत्म हो गई और अब वो इस दुनिया में नहीं है। इसलिए उसकी सारी संपत्ति किसी और को हंस्तांतरित नहीं की जा सकती है।
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RBI बॉन्ड की शर्त क्या?
दरअसल संन्यास लेने से पहले शख्स ने बैंक का रुख करते हुए बॉन्ड को ट्रांसफर करने से मना कर दिया। RBI के ये बॉन्ड ट्रांसफर नहीं किए जा सकते हैं। यह बॉन्ड 18 सितंबर 2026 को मैच्योर होंगे। शख्स के बाद इस बॉन्ड पर उसके बच्चों का हक होता, मगर शख्स के दोनों बच्चे बेटे और बेटी ने भी संन्यास ले लिया है। ऐसे में RBI का नियम है कि शख्स की मृत्यु के बाद ही यह बॉन्ड किसी अन्य परिजन को ट्रांसफर किया जा सकता है।
The #BombayHighCourt recently rejected a petition filed by the mother and wife of a Jain man, who sought the transfer of his Reserve Bank of India (#RBI) bonds to their names after he and his children renounced worldly life to join the Jain Sanyas order.
The petitioners… pic.twitter.com/GztS7gFAdt
— Lawstreet Journal (@LawstreetJ) February 27, 2025
HDFC बैंक के वकील ने दी दलील
कोर्ट का कहना है कि संन्यास लेना और मृत्यु होना, दोनों अलग बात है। कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए HDFC बैंक के वकील ने कहा कि शख्स के घर का मुखिया होने की कोई घोषणा नहीं है। बॉन्ड की मैच्योरिटी तारीख 18 सितंबर 2026 है। RBI के नियमों के अनुसार मृत्यु को छोड़कर बॉन्ड ट्रांसफर नहीं किए जा सकते हैं।
कोर्ट ने सुनाया फैसला
वकील की बात पर सहमति जताते हुए कोर्ट ने कहा कि संन्यास लेने के लिए व्यक्ति को अपना अंतिम संस्कार करना पड़ता है, उसके बिना संन्यास लेने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है। वहीं शख्स ने ऐसा कोई प्रमाण पेश नहीं किया है। अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसला का हवाला देते हुए कहा कि कोई व्यक्ति संन्यास लेने की घोषणा करके संन्यासी नहीं बन जाता है। अगर कोई संन्यासी वाले कपड़े पहनता है तो वो संन्यासी नहीं कहलाता। संन्यासी बनने की एक प्रक्रिया होती है, जिसे पूरा करने के बाद शख्स सही मायने में संन्यासी बनता है।
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