26/11 Mumbai Attack Youngest Witness Story: बेशक मैंने मुंबई में आतंकी हमला करने वाले 10 आतंकियों में से जिंदा बचे अजमल कसाब की पहचान करके उसे फांसी के फंदे तक पहुंचाया, लेकिन उस काली रात ने मेरी जिंदगी में काफी उथल पुथल मचा दी। मुझे कसाब की बेटी कहा जाने लगा था। मां को कैंसर ने छीन लिया। मुंबई में रहने वाले बड़े भाई ने, रिश्तेदारों-पड़ोसियों ने भी मुंह मोड़ लिया था। स्कूल में दोस्त भी बात नहीं करते थे। पिता का कारोबार ठप हो गया। एक भाई को पीठ में एक बीमारी हो गई, जिस वजह से वह काम नहीं कर सकता। इतनी मुश्किलें सहने के बावजूद मैंने हिम्मत नहीं हारी। पूरे हौसले के साथ कहती हूं कि अपना सपना पूरा करुंगी। पुलिस की वर्दी पहनना, अपराधियों और आतंकवादियों का खात्मा करना ही मेरा लक्ष्य है। यह कहानी है उस देविका रोतावन की, जिसके पैर में अजमल कसाब की बंदूक से निकली गोली लगी और जिसकी गवाही ने उसे फांसी के फंदे तक पहुंचाया।
#FPExplained: It’s been 15 years since the horrific terror attacks rocked the city of dreams, Mumbai.
For Devika Rotawan, who was barely nine years and 11 months old when she was shot in her right leg, justice remains a quest.
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— Firstpost (@firstpost) November 26, 2023
देविका और उसके परिवार को मिलती थी धमकियां
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आज 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले की 15वीं बरसी है। इस मौके पर हमले की इकलौती गवाह देविका की बात करनी तो बनती ही है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सरकारी मदद मिलने के बावजूद देविका और इसका परिवार आज भी उसी मुफलिसी में जी रहा है। एक ओर कैंसर ने मां का आंचल छीन लिया, वहीं गोली से मिले दर्द के बाद दूसरा दर्द स्कूल में साथ पढ़ने वालों ने दिया। सहपाठी उससे दूर भागने लगे। वे उसे कसाब की बेटी कहते थे। लड़कियां परेशान करती थीं। स्कूल छोड़ना पड़ा। स्कूल में उससे सब डरने लगे थे। आतंकियों के डर से पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने भी दूरी बना ली थी। ट्रायल चलने तक उसे और परिवार को धमकियां दी जाती रहीं। पूना में रह रहे बड़े भाई ने भी दूरी बना ली है। उसने अपनी शादी में भी नहीं बुलाया। 14 साल पहले काम बंद होने के बाद उसके पिता काम को आज तक नहीं मिल रहा। पीठ की गंभीर बीमारी के चलते भाई जयेश काम नहीं कर सकता।
15 साल बाद भी देविका झेल रही दर्द
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देविका आजकल मुंबई में हैं और बांद्रा के चेतना कॉलेज में बैचलर ऑफ आर्ट्स कर रही है। वह 26 नवंबर 2008 को अपने पिता और भाई के साथ ट्रेन में चढ़ने के लिए मुंबई के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रही थी कि उसके दाहिने पैर में गोली लग गई। वह उस भयानक दिन के हर पल को याद कर आज भी सिहर उठती है। उस दिन लोगों को गोलियां लग रही थीं और वे खून से लथपथ होकर गिर रहे थे। लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे। देविका उस चेहरे को कभी नहीं भूल सकती। अभी ठीक ने चल भी नहीं पाती थी कि बैसाखियों के सहारे कोर्ट में पहुंची और होटल ताज से पकड़े गए मौत के सौदागर अजमल कसाब के खिलाफ गवाही दी। आतंकी की गोली से जख्मी होने वाली और फिर आतंकियों के सरगना अजमल कसाब को उसके अंजाम तक पहुंचाने वाली देविका आज 15 साल का लंबा अंतराल बीत जाने के बाद भी नहीं सहने वाला दर्द झेल रही है।