करण मिश्रा, ग्वालियर: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने कथित रूप से धर्म परिवर्तन करके धार्मिक संस्थानों से मैरिज सर्टिफिकेट हासिल करने को लेकर बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि किसी भी धार्मिक संस्था को युवक अथवा युवती का धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है। यह विधिवत रूप से कलेक्टर के यहां आवेदन देने के बाद ही हो सकता है।
धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम से हिंदू बनी युवती के मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि नारी निकेतन में रह रही इस लड़की को एक सप्ताह के भीतर वहां से आजाद किया जाए। चूंकि लड़की बालिग है इसलिए वह कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है यदि लड़की अपने माता-पिता के साथ जाने के लिए तैयार नहीं होती है, तो वह अपने प्रेमी के साथ भी जा सकती है ।
ये है पूरा मामला
दरअसल ये मामला शिवपुरी का है जहां पर 2019 में राहुल नामक युवक ने नाबालिग से शादी कर ली थी, जिसके बाद वह फरार हो गए थे। 2 साल बाद जब दोनों मिले तो पुलिस ने लड़की के पिता के आरोप पर युवक को दुष्कर्म के जुर्म में जेल भेज दिया, वहीं लड़की को नारी निकेतन भेज दिया गया।
कुछ समय बाद जब युवक जेल से जमानत पर छूटा तो उसने लड़की को पत्नी बताते हुए नारी निकेतन से मुक्त कराने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की और न्यायालय में कहा कि उसने आर्य समाज मन्दिर में लड़की का धर्म परिवर्तन करवा कर उससे हिन्दू रीति रिवाज से शादी की है। इसी पर सुनवाई करते हुए ग्वालियर कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है।
हाईकोर्ट ने आर्य समाज द्वारा कराई गई शादी को किया शून्य करार
इस मामले पर मंगलवार को जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस एमआर फड़के की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित आर्य समाज मंदिर में किए गए मुस्लिम लड़की के मतांतरण और विवाह को शून्य घोषित कर दिया।
बेंच ने इसके साथ ही पुलिस अधीक्षक गाजियाबाद को आदेश दिया है कि धर्मांतरण कराकर विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के मामले में जांच करें और कानूनी कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है कि धर्मांतरण कराने का किसी संस्था को अधिकार नहीं है जो कानून लागू है उसके तहत ही मतांतरण किया जा सकता है।
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