Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपने एक फैसले में कहा कि किसी महिला के किसी पुरुष के साथ रहने के समझौते का यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि वह उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए सहमत है।
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी सेवक दास के नाम से मशहूर संजय मलिक की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की। संजय पर दुष्कर्म का आरोप है। अदालत ने आरोपी को नियमित जमानत देने से इंकार करते हुए की। आरोपी पर आध्यात्मिक गुरु होने का ढोंग करके एक चेक नागरिक के साथ दुष्कर्म करने का आरोप है। आरोपी ने महिला के पति की मौत के बाद उसकी मदद की थी।
स्थिति की सहमति और यौन संपर्क की सहमति का अंतर समझिए
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की बेंच ने कहा कि पीड़िता की ‘स्थिति के प्रति सहमति’ बनाम ‘यौन संपर्क की सहमति’ के बीच एक अंतर को भी स्पष्ट करने की आवश्यकता है। केवल इसलिए कि पीड़िता किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति देती है, भले ही वह कितने समय के लिए हो, आधार कभी नहीं हो सकता यह अनुमान लगाने के लिए कि उसने पुरुष के साथ यौन संबंध बनाने की सहमति भी दी थी।
पहली बार दिल्ली में किया बलात्कार
दरअसल, संजय मलिक पर 12 अक्टूबर 2019 को दिल्ली के हॉस्टल में एक चेक महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप है। पीड़िता ने बताया था कि उसके साथ 31 जनवरी 2020 को प्रयागराज में और 7 फरवरी 2020 को गया, बिहार के एक होटल में दुष्कर्म किया गया। 6 मार्च 2022 को पीड़िता ने दिल्ली में एफआईआर दर्ज कराई थी।
पति की मौत का उठाया फायदा
दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपी ने आध्यात्मिक गुरु होने का ढोंग किया। 8 अगस्त 2019 को महिला के पति की मौत हो गई।
न्यायमूर्ति भंभानी ने मामले की समीक्षा करने के बाद कहा कि पीड़िता ने प्रयागराज से वाराणसी से गया तक की यात्रा की, जो सभी हिंदू भक्ति और सभा के केंद्र हैं। वह अपने मृत पति के अंतिम संस्कार को पूरा करना चाहती थी। इस संकट की स्थिति में मदद के नाम पर वह ढोंगी गुरु पर निर्भर हो गई। क्योंकि वह विदेशी थी।
चुप्पी को सहमति नहीं समझा जा सकता
पीड़िता के साथ पहली घटना दिल्ली के एक छात्रावास में हुई। आरोपी का दावा है कि वह बलात्कार नहीं था। लेकिन उस कृत्य पर पीड़िता की चुप्पी को सहमति के रूप में नहीं समझा जा सकता है।
अदालत ने कहा कि आरोपी पीड़िता को डरा-धमका भी सकता है। इसके बाद अदालत ने जमानत याचिका को नामंजूर कर दी।
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