नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीते दिन तलाक के एक मामले में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने एक व्यक्ति के तलाक को इसलिए मंजूरी दे दी कि वह पिछले 18 साल से पत्नी की बजाय किसी और महिला के साथ रह रहा है। इसी के साथ कोर्ट ने टिप्पणी की कि शादी के रिश्तों में शारीरिक संबंध एक महत्वपूर्ण आधार है। अगर पत्नी के साथ नहीं रहने के चलते आदमी के किसी गैर औरत के साथ ताल्लुक बन जाते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है। इसे क्रूरता नहीं कहा जाना चाहिए।
2005 से पति से अलग रह रही पत्नी
बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस सुरेश कुमार कैत एवं जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच के सामने तलाक का एक मामला सुनवाई के लिए आया था। इसमें निचली अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी बीवी से मांगे गए तलाक को मंजूर कर लिया था। दरअसल, 2005 से पति से अलग रह रही एक महिला ने पति के द्वारा किसी और महिला से शादी कर लेने की दलील दी थी। उसने पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पति के खिलाफ क्रूरता के आरोपों को गलत कहा गया था।
बेंच ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा
इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की जस्टिस सुरेश कुमार कैत एवं जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए इस दंपति के फिर से साथ आ जाने की संभावना को निकार दिया। कोर्ट ने पति का तलाक मंजूर करते हुए फैसले में टिप्पणी की है कि परिवार में बार-बार होने वाले झगड़ों के परिणामस्वरूप मानसिक पीड़ा होती है। लंबे समय के मतभेदों और आपराधिक शिकायतों की वजह से इस शख्स की मानसिक शांति छिन गई। दांपत्य सुख से वंचित होना पड़ा, जो किसी भी वैवाहिक रिश्ते का आधार माना जाता है। शारीरिक संबंध एक जिंदगी का एक महत्वपूर्ण भाग है। अब जबकि वह पिछले करीब दो दशक से पत्नी से अलग रह रहा है तो किसी अन्य महिला से संबंध बनाने को क्रूरता कहना उचित नहीं है।