---विज्ञापन---

रायपुर: ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाने से किसानों के आए अच्छे दिन, बढ़ी आमदनी

रायपुर: बीजापुर जिले के ग्राम कुएंनार के निवासी बनस गंगबेर पिछले कई साल से अपने खेतों में सब्जियों की खेती कर रहे है। लेकिन पुराने तरीकों से खेती करने के कारण उन्हें ज्यादा लाभ नहीं हो पाता था। सब्जियों की खेती में जितना रुपया वे खर्च करते थे, लगभग उतनी ही आमदनी हो पाती थी। […]

Edited By : Gyanendra Sharma | Jul 12, 2023 13:45
Share :
Raipur

रायपुर: बीजापुर जिले के ग्राम कुएंनार के निवासी बनस गंगबेर पिछले कई साल से अपने खेतों में सब्जियों की खेती कर रहे है। लेकिन पुराने तरीकों से खेती करने के कारण उन्हें ज्यादा लाभ नहीं हो पाता था। सब्जियों की खेती में जितना रुपया वे खर्च करते थे, लगभग उतनी ही आमदनी हो पाती थी। लेकिन अब गंगबेर के दिन बदल गये हैं और उसके अच्छे दिन आ गये है। यह सब ड्रिप सिंचाई प्रणाली के दम पर हुआ है।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाने से मिला लाभ

जिले के उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने गंगबेर को सलाह दी थी कि वे अपने खेत में ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगा लें। इससे उन्हें बहुत लाभ होगा। बहुत दिनों के इंतजार के बाद उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत अपने खेत में ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाई। किसान बनस गंगबेर ने बताया कि पूर्व में लिफ्ट सिंचाई के माध्यम से 2 हेक्टेयर में साग-सब्जी की खेती करता था। पानी की ज्यादा खपत होती थी, मेहनत भी अधिक लगती थी। वर्तमान में किसान 4 एकड़ में टमाटर, लाल भाजी, बरबट्टी सहित साग-सब्जी का उत्पादन ड्रीप पद्धति के माध्यम से कर रहे है। किसान ने बताया कि पहले की तुलना में अब कम मेहनत में अधिक उत्पादन होने से आमदनी में वृद्धि हो रही है।

पौधों को मिलता है संतुलित आहार

ड्रिप सिंचाई प्रणाली से सिंचाई करने का फायदा गंगबेर को अब समझ आने लगा है। इस नई सिंचाई प्रणाली से उनके खेत में इस बार साग-सब्जी का बंपर उत्पादन हुआ है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली से पौधों की सिंचाई होने पर पौधों को संतुलित मात्रा में पानी मिल रहा है। पहले सिंचाई के लिए अधिक पानी लगता था और जमीन के अधिक गीली होने से पौधों के साथ ही उसमें लगे टमाटर को भी नुकसान होता था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। अब पौधों के पानी से खराब होने का खतरा नहीं रहता है। इस प्रणाली से उर्वरक व दवा आदि डालने के लिए अधिक मेहनत नहीं करना पड़ता है। सीधे पानी के पाईप में उर्वरक का घोल मिला देने से प्रत्येक पौधे की जड़ तक वह पहुंच जाता है। वे स्वयं गांव तथा पास के अन्य स्थानों पर लगने वाले साप्ताहिक हाट बाजार में साग-सब्जी बेच देते है।

बाजार में मिल रहे अच्छे दाम से पारिवारिक-आर्थिक दायित्वों का निर्वहन भी बड़ी सरलता से कर पा रहे हैं। बच्चों की शिक्षा, उनकी आवश्यकताओं को पूरा कर खेती-बाड़ी के माध्यम से किसान सक्षम हो रहे हैं। किसान  बनस गंगबेर ने बताया पहले 20 क्विंटल का उत्पादन होता था वहीं आज 90 क्विंटल का उत्पादन हो रहा है। जिससे सालाना 1 से 1.5 लाख रूपए की आमदनी हो रही है।

HISTORY

Written By

Gyanendra Sharma

First published on: Jul 12, 2023 01:45 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें