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देश का ऐसा इलाका, जहां 107 दिन मनेगा दशहरा, इसके पीछे 600 साल पुराना राज है गहरा

Bastar Dussehra: 75 दिन तक मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार 107 दिनों तक मनाया जाएगा। इस वर्ष 17 जुलाई को पाठ जात्रा रस्म से शुरुआत हुई और 27 सितंबर को डेरी गड़ाई रस्म के साथ रथ निर्माण शुरु हुआ है।

Edited By : Shailendra Pandey | Updated: Oct 22, 2023 18:19
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Bastar Dussehra: छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा विश्व में सबसे लंबे समय तक मनाया जाने वाला पर्व है। 75 दिन तक मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार 107 दिनों तक मनाया जाएगा। इस वर्ष 17 जुलाई को पाठ जात्रा रस्म से शुरुआत हुई और 27 सितंबर को डेरी गड़ाई रस्म के साथ रथ निर्माण शुरु हुआ है। वहीं, मां भारती की सेवा में बेटा शस्त्र उठाकर सीमा पर तैनात है, तो उसकी सुरक्षा की कामना लिए एक पिता विगत आठ वर्षों से मां दंतेश्वरी की सेवा में अस्त्र लिए रथ निर्माण करते आ रहे हैं।

150 लोग होते हैं शामिल

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत से ही रथ निर्माण का कार्य बेड़ाउमरगांव व झारउमरगांव के ग्रामीण करते आ रहे हैं। इसमें लगभग 150 लोग शामिल होते हैं। झारउमरगांव के बलदेव बघेल भी इस प्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं, पर इसमें परिवार की परंपरा निर्वहन के साथ पुत्र के लिए स्नेह का भाव भी है। पिता बिस्सु के बाद रथ निर्माण में सेवा देने वाले बलदेव बताते हैं कि बड़ा बेटा गजेंद्र आठ वर्ष पहले सीमा सुरक्षा बल में भर्ती हुआ है। वह जम्मू-कश्मीर में तैनात है, जहां आंतकवादियों से देश की रक्षा में डटा है। तब से वे प्रतिवर्ष मां दंतेश्वरी की सेवा करते आ रहे हैं। इस दौरान वे यहां करीब 25 दिन तक रहेंगे और परंपरागत अस्त्र से रथ का निर्माण करेंगे।

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इस उत्सव को लेकर बलदेव ने बताया कि करीब 600 वर्ष से अधिक समय से उनके गांव व परिवार के लोग बस्तर दशहरे में रथ का निर्माण और मां दंतेश्वरी की सेवा की भावना से यह कार्य करते आ रहे हैं। अब नई पीढ़ी के लोग भी इसमें जुड़कर पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। यह रथ निर्माण परंपरागत अस्त्र से किया जाता है, जिसमें अधिक समय लगता है। करीब एक माह तक सब काम छोड़कर यहां सेवा देनी पड़ती है।

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गांव के लोग करते आ रहे हैं रथ का निर्माण

बस्तर दशहरे का शुभारंभ 14 अक्टूबर को काछनगादी रस्म के साथ काछनगुड़ी देवी से आशीर्वाद लेकर हुआ। दशहरे तक प्रतिदिन चार चक्के वाला फूल रथ चलाया जाएगा। दशहरे पर भीतर रैनी के दिन दंतेश्वरी मंदिर से कुम्हड़ाकोट तक विजय रथ परिक्रमा होगी। इसके अगले दिन बाहर रैनी पर कुम्हड़ाकोट से दंतेश्वरी मंदिर तक रथ परिक्रमा होगी और 31 अक्टूबर को बस्तर की देवी मावली माता की विदाई के साथ दशहरा पर्व का समापन होगा।

भारत में इकलौती जगह, जहां दशहरे में चलाया जाता है रथ

बस्तर दशहरे को लेकर शिक्षाविद बीएल झा ने बताया कि इसका संबंध महाकाव्य रामायण के रावण वध से नहीं, अपितु महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है। बस्तर दशहरे में रथ परिचालन की शुरुआत चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरूषोत्तम देव ने की थी और जगन्नाथ पुरी के राजा ने 16 चक्कों का रथ बस्तर राजा को देने के साथ ‘लहुरी रथपति’ की उपाधि से सम्मानित किया। राजा पुरूषोत्तमदेव बस्तर लौटे पर यहां की सड़कें इतने बड़े रथ को चलाने योग्य नहीं थी तो, रथ का विभाजन कर इसके चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया। इसके बाद 12 पहियों का एक विशाल रथ मां दंतेश्वरी को अर्पित कर दिया था, जिसे बाद में आठ पहियों का विजय रथ व चार पहियों का फूल रथ बनवाया गया, जिसे आज भी चलाया जाता है।

 

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Written By

Shailendra Pandey

First published on: Oct 22, 2023 06:19 PM

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