Bihar Politics: महाराष्ट्र में रविवार दोपहर बाद अचानक राजनीतिक भूचाल आ गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजित पवार ने अचानक विधायकों की बैठक बुलाई। बैठक खत्म होने के बाद वे राजभवन पहुंचे और फिर डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। उनके साथ पार्टी के 8 अन्य विधायकों ने भी मंत्रिपद की शपथ ली। अजित का ये कदम निश्चित रूप से उनके चाचा शरद पवार के उस कोशिश को कमजोर करता दिख रहा है जिसमें वे विपक्ष को 2024 आम चुनाव के लिए जोड़ने में जुटे हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार को जो कुछ अचानक हुआ, उसके बाद ये अटकलें लगने लगीं कि क्या बिहार में भी महाराष्ट्र की तरह राजनीतिक संकट आने वाला है, या फिर ऐसा कभी भी हो सकता है। क्या जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में लौटने की तैयारी कर रहे हैं?
दरअलस, बिहार में पिछले तीन-चार दिनों की घटनाओं को देखा जाए तो राजनीतिक रूप से कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जो बता रही हैं कि कुछ तो ‘संकट’ है। इसके बाद से अटकलें लगाई जा रही हैं कि नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए में वापसी कर सकते हैं। ऐसी अटकलों का कारण क्या है? आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं।
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अमित शाह ने नीतीश कुमार पर रुख नरम किया
जब से नीतीश कुमार बीजेपी से अलग (पिछले साल अगस्त में जेडीयू ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था और महागठबंधन से हाथ मिला लिया था) हुए हैं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले 10 महीने में 5 बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। हर बार अमित शाह ने जनसभा को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार की आलोचना की और कहा कि नीतीश बाबू के लिए भाजपा के दरवाजे स्थायी रूप से बंद हो चुके हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 29 जून को जब अमित शाह ने बिहार के लखीसराय का दौरा किया और एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया, तो उन्होंने नीतीश कुमार के संबंध में एक भी टिप्पणी नहीं की या अपनी पिछली टिप्पणी को एक बार भी नहीं दोहराया कि भाजपा के दरवाजे नीतीश बाबू के लिए बंद हैं।
इसके विपरीत, अमित शाह ने भ्रष्टाचार को उजागर करके नीतीश कुमार की अंतरात्मा को जगाने का प्रयास किया और 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक के घोटालों के आरोपों का सामना करने वाले व्यक्तियों के साथ उनके गठबंधन पर सवाल उठाए।
अमित शाह के नरम रूख के बाद लगने लगी अटकलें
अमित शाह के नरम रुख के बाद बिहार के राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगने लगी हैं कि भाजपा एक बार फिर नीतीश कुमार को अपने खेमे में करने के लिए भ्रष्टाचार को केंद्र बिंदु के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि 2017 में भाजपा ने तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जिसके बाद नीतीश कुमार ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और राजद से नाता तोड़कर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्यों का नाम नौकरी के बदले जमीन घोटाले और IRCTC घोटाले में सामने आया है और दोनों मामलों में जांच एजेंसियों ने तेजी से कार्रवाई की है। इससे भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि अगर तेजस्वी यादव को आने वाले दिनों में गिरफ्तार किया जाता है, तो यह नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन से अलग होने के लिए एक मजबूरी बन सकता है। बता दें कि जमीन के बदले नौकरी घोटाले में तेजस्वी यादव केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के सामने पेश हो चुके हैं।
नीतीश कुमार ने की वन-टू-वन मीटिंग
नीतीश कुमार की अपनी पार्टी के विधायकों के साथ आमने-सामने की बैठक ने भी सबका ध्यान खींचा है, जिससे उनके अगले कदम पर सस्पेंस बराकरार है। बता दें कि जब अमित शाह ने लखीसराय का दौरा किया, तो नीतीश कुमार ने शाह के दौरे से दो दिन पहले अपने सभी विधायकों के साथ वन-टू-वन बैठक करना शुरू कर दिया। इन बैठकों के दौरान नीतीश कुमार ने अपने विधायकों से उनके संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के मुद्दों और चुनौतियों के बारे में जानकारी हासिल की और उनसे उनके सामने आने वाली समस्याओं को साझा करने का भी आग्रह किया।
सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार अपने विधायकों के बीच एकजुटता की जरूरत पर भी जोर दे रहे हैं और उन्हें आश्वासन दे रहे हैं कि वह उनके साथ हैं और उनका समर्थन करना जारी रखेंगे। अपने विधायकों के साथ व्यक्तिगत बैठकों से यह अटकलें भी लगने लगी हैं कि नीतीश कुमार को जाहिर तौर पर अपनी पार्टी के भीतर विभाजन का डर है। सूत्रों की मानें तो वे अपने विधायकों की भावनाओं को भांपने की कोशिश कर रहे हैं और उनसे एकजुट रहने का आग्रह कर रहे हैं।
ऐसी भी अटकलें हैं कि नीतीश कुमार निकट भविष्य में अपने राजनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव पर विचार कर रहे हैं, यही कारण है कि वह अपने विधायकों से एकजुट रहने का आग्रह कर रहे हैं।
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पटना बैठक के बाद राजद संतुष्ट नहीं
23 जून को विपक्षी दलों की बैठक के बाद से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव विदेश दौरे पर हैं और अभी तक वापस नहीं लौटे हैं। इस मामले को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी अटकलें चल रही हैं। 23 जून की बैठक के दौरान सभी विपक्षी दलों की ओर से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने के सर्वसम्मत निर्णय ने लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को असंतुष्ट कर दिया।
नीतीश कुमार पर राजद की ओर से विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने और बिहार में तेजस्वी यादव को सत्ता सौंपने का लगातार दबाव है। हालांकि, पटना में विपक्षी दलों की बैठक में जहां सर्वसम्मति से राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने पर सहमति बनी, उसके बाद लालू और तेजस्वी नाखुश दिखे।
जाहिर तौर पर इससे राजद नाराज है क्योंकि अगर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया गया तो वह सीएम बने रहेंगे। इसका मतलब है कि तेजस्वी यादव को कड़वी गोली पीनी होगी और डिप्टी सीएम के पद पर बने रहना होगा।
क्या है बीजेपी की प्रतिक्रिया?
महाराष्ट्र में बड़े सियासी ड्रामे के बाद बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने ट्वीट कर दावा किया कि बिहार में भी ऐसी ही स्थिति हो सकती है। सुशील मोदी ने दावा किया कि जल्द ही जेडीयू में भी टूट हो सकती है और इसी टूट के डर से नीतीश कुमार अपने विधायकों से अलग-अलग चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जेडीयू के विधायक और सांसद न तो राहुल गांधी को स्वीकार करेंगे और न ही तेजस्वी यादव को, जिससे पार्टी के भीतर बड़ा विद्रोह हो सकता है।
सुशील मोदी का दावा है कि राजद और जदयू के बीच गठबंधन के बाद जदयू के कई सांसदों पर 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना टिकट खोने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे पार्टी के भीतर बड़ा विद्रोह हो सकता है।
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