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बिहार

बिहार चुनाव में PK फैक्टर और मुसलमान, किसे नुकसान पहुंचाएंगे प्रशांत किशोर?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की एंट्री ने चुनावी मुकाबले को एक नई दिशा दे दी है। जहां पहले लड़ाई RJD और NDA के बीच मानी जा रही थी, अब PK की जनसभाओं में उमड़ती भीड़ ने समीकरण बदल दिए हैं। ब्राह्मण-भूमिहार, मुस्लिम और युवा वोटर उनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। सवाल ये है कि इस तीसरे मोर्चे की मौजूदगी से सबसे ज्यादा नुकसान किसे होगा? पढ़ें कुमार गौरव की रिपोर्ट।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Avinash Tiwari Updated: Jul 7, 2025 18:58
Prashant Kishor
जनसुराज के अध्यक्ष प्रशांत किशोर

एक बार फिर बिहार का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर है। पिछली बार चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा ने चुनाव को बहुकोणीय बना दिया था। इस बार राजनीतिक समीकरणों को उलझाने वाले शख्स हैं प्रशांत किशोर। उनके आने से चुनावी तस्वीर में नया मोड़ आ गया है और मुकाबला अब सीधा नहीं, त्रिकोणीय होता दिख रहा है।

बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर एक नई सनसनी बनकर उभरे हैं। उनके आक्रामक जनसंपर्क अभियान ने न सिर्फ राजनीतिक दलों को उलझन में डाल दिया है, बल्कि चुनावी विश्लेषकों को भी संशय में डाल दिया है। पीके की सभाओं में उमड़ती भीड़ ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर यह जनसैलाब किसके वोट बैंक में सेंध लगाएगा? उनके कार्यक्रमों में हर जाति, हर समुदाय के लोग शामिल हो रहे हैं, चाहे यादव बहुल क्षेत्र हो, ब्राह्मण हों या मुस्लिम आबादी वाले इलाके।

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क्या पीके इस पैटर्न में सेंध लगा पाएंगे?

आंकड़ों की बात करें तो 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार में मुस्लिम वोटिंग प्रतिशत करीब 75% था, जिसमें से करीब 80% वोट RJD और कांग्रेस गठबंधन को मिला था। 2020 में यह आंकड़ा थोड़ा घटा, लेकिन RJD को मुस्लिमों का भरोसा मिलता रहा। अब सवाल यह है कि क्या पीके इस पैटर्न में सेंध लगा पाएंगे या फिर चुनावी माहौल एक बार फिर जातीय ध्रुवीकरण में उलझ कर रह जाएगा? प्रशांत किशोर मुसलमानों की दुर्दशा का मुद्दा भी लगातार उठा रहे हैं।

अगड़ा-पिछड़ा-दलित समीकरण एनडीए का आधार

ऐसे में यह तय करना मुश्किल हो गया है कि पीके की मौजूदगी से सबसे ज्यादा नुकसान किसे होने वाला है। हालांकि, एनडीए को भरोसा है कि पीके की भीड़ वोट में नहीं बदलेगी। बिहार की राजनीति अब तक दो मुख्य ध्रुवों पर घूमती रही है, मुस्लिम-यादव गठजोड़ जो लालू परिवार के साथ रहता है, और अगड़ा-पिछड़ा-दलित समीकरण जो एनडीए का आधार है। लेकिन पीके इस ध्रुवीकरण को चुनौती देते दिख रहे हैं।

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पीके के इर्द-गिर्द इकट्ठा हो रहे हैं तीन तरह के वोटर

तीस साल बाद पहली बार ब्राह्मण-भूमिहार समाज में यह भावना बन रही है कि कोई उनके समाज से भी मुख्यमंत्री की रेस में है। यह वर्ग बीजेपी का कोर वोटर रहा है। अगर यहां सेंध लगी तो इसका सीधा नुकसान बीजेपी और एनडीए को होगा। पीके के इर्द-गिर्द तीन तरह के वोटर इकट्ठा हो रहे हैं, पहला, वे जो अपनी जाति या समुदाय से मुख्यमंत्री बनता देखना चाहते हैं; दूसरा, मुस्लिम वोटर जिन्हें अब तक सीमित विकल्प ही मिलते थे; तीसरा, युवा वोटर जो पीके के भाषणों और बदलाव के वादों से प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि, वक्फ विवाद और वोटर लिस्ट पर तेजस्वी यादव की आक्रामकता के चलते मुस्लिम वोट बैंक का टूटना फिलहाल टलता दिख रहा है।

यह भी पढ़ें : मनीष कश्यप जन सुराज में हुए शामिल, प्रशांत किशोर की मौजूदगी में थामा नई पार्टी का दामन

ऐसे में अगर मुस्लिम वोट जहां का तहां रहा और युवा वोटरों में सेंध लगी, तो सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी और नीतीश कुमार को हो सकता है। बीजेपी को पता है कि उनके पास राज्य में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो अपने नाम पर भीड़ खींच सके। ऐसे में पार्टी पूरी तरह से पीएम मोदी की रैलियों पर दांव लगा रही है। इस बार की लड़ाई का दिलचस्प पहलू यही है कि कौन किसका वोट काटेगा और कौन इस भीड़ को वोट में बदल पाएगा? बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेने जा रही है।

First published on: Jul 07, 2025 06:58 PM

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