Chandrayaan-3 Rover Module Roll Down: चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान अब विक्रम लैंडर से बाहर निकलकर चंद्रमा की सतह पर वॉक कर रहा है। इसरो ने रोवर प्रज्ञान का एक ताजा वीडियो जारी किया है। जिसमें उन मैकेनिज्म को बताया है, जिन्होंने 23 अगस्त को चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के बाद विक्रम के पेट से रोवर को बाहर निकलने में मदद की थी। रोवर के चंद्रमा की सतह पर लुढ़कने के पीछे 26 मैकेनिज्म ने मदद की। यह सभी मैकेनिज्म बेंगलुरु में इसरो मुख्यालय में तैयार किए गए हैं। उनमें से सबसे खास एक सोलर पैनल है, जो रोवर के लिए सूरज की एनर्जी से बिजली पैदा करता है। इसरो ने बताया कि लैंडर में दो खंडों वाला रैंप लगा हुआ है। रोवर के लुढ़कने से पहले सोलर पैनल ने बिजली पैदा की।
A two-segment ramp facilitated the roll-down of the rover. A solar panel enabled the rover to generate power.
---विज्ञापन---Here is how the rapid deployment of the ramp and solar panel took place, prior to the rolldown of the rover.
The deployment mechanisms, totalling 26 in the Ch-3… pic.twitter.com/kB6dOXO9F8
---विज्ञापन---— ISRO (@isro) August 25, 2023
14 दिन लगातार काम करेगा रोवर
सुबह इसरो ने रोवर के चंद्रमा की सतह पर वॉक का वीडियो साझा किया था। जिसमें भारतीय राष्ट्रीय ध्वज दिखाई दे रहा था। रोवर के पास चंद्रमा पर जांच करने के लिए 14 दिन हैं। चंद्रमा पर 1 दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर है। हालांकि इसरो ने उम्मीद जताई है कि चंद्रमा पर दोबारा सूरज उगेगा तो रोवर सोलन पैनल के जरिए फिर से जीवित हो जाएगा।
क्यों दक्षिणी ध्रुव को लैंडिंग के लिए चुना गया?
23 अगस्त की शाम चंद्रयान-3 के लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर लैंड किया। यह लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर हुई है। अब तक कोई देश दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंचा है। इसरो प्रमुख ने बताया कि मिशन के लिए दक्षिणी ध्रुव को इसलिए चुना गया क्योंकि इसके कुछ फायदे हैं। क्योंकि यह सूर्य से कम प्रकाशित होता है। चंद्रमा पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ध्रुव में बहुत रुचि दिखाई क्योंकि अंततः मनुष्य वहां जाकर बसना चाहते हैं और फिर उससे आगे की यात्रा करना चाहते हैं।
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