मुस्लिम समुदाय में दाढ़ी रखने और मूंछें छोटी करने या हटाने की प्रथा को अक्सर देखा जाता है, जिसके पीछे धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं। इस्लाम में दाढ़ी और मूंछों के संबंध में मार्गदर्शन मुख्य रूप से हदीस (पैगंबर मोहम्मद साहब के कथन और कार्य) से लिया जाता है। हालांकि कुरान में दाढ़ी या मूंछों के बारे में कोई स्पष्ट आयत नहीं है, लेकिन हदीसों में इस विषय पर कुछ निर्देश मिलते हैं।
मुस्लिम समुदाय में मूंछें छोटी करने या न रखने की प्रथा मुख्य रूप से पैगंबर मोहम्मद की सुन्नत और हदीसों पर आधारित है, जो दाढ़ी बढ़ाने और मूंछें छोटी करने की सलाह देती हैं। इसके पीछे ऐतिहासिक रूप से गैर-मुस्लिम समुदायों से अलग पहचान स्थापित करना और स्वच्छता बनाए रखना था। हालांकि, यह प्रथा सभी मुस्लिमों पर लागू नहीं होती और क्षेत्रीय, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत भिन्नताओं के कारण विविधता देखी जाती है।
हदीस में दाढ़ी और मूंछों का है उल्लेख
सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम जैसी विश्वसनीय हदीस संग्रहों में पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कई कथन दर्ज हैं, जो दाढ़ी रखने और मूंछों को छोटा करने की सलाह देते हैं। सहीह बुखारी, किताब-उल-लिबास, हदीस नंबर 5892 के अनुसार ‘मूंछों को छोटा करो और दाढ़ी को बढ़ने दो।’
एक अन्य हदीस में पैगंबर साहब ने गैर-मुस्लिम समुदायों से भिन्न दिखने की सलाह दी है। सहीह मुस्लिम, किताब-उल-तहारत, हदीस नंबर 260 में जिक्र है कि ‘मजूसियों (आग की पूजा करने वालों) के विपरीत करो, मूंछों को छोटा करो और दाढ़ी को बढ़ने दो।’
इन हदीसों से यह समझा जाता है कि दाढ़ी रखना सुन्नत (पैगंबर की परंपरा) है, जबकि मूंछों को छोटा करना या साफ करना पसंदीदा है। हालांकि कई मुस्लिम समुदााय के विद्वानों का मत है कि इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को अन्य समुदायों से अलग पहचान देना था।
सफाई रखना भी है कारण
इस्लाम में स्वच्छता (तहारत) को बहुत महत्व दिया गया है। मूंछों को छोटा रखने की सलाह के पीछे एक कारण यह भी है कि लंबी मूंछें खाने-पीने के दौरान अशुद्ध हो सकती हैं। मौलानाओं के अनुसार, मूंछों के बाल अगर भोजन या पेय को छूते हैं, तो यह ‘मकरूह’ (अनुचित) माना जा सकता है।
क्या कहते हैं जानकार?
इस्लामिक एक्सपर्ट मोहम्मद इरफ़ान ने बताया कि मिश्कात अल-मसाबीह, अध्याय दो, पृष्ठ 381 में ज़ैद इब्न अरक़म से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया है कि ‘जो शख्स मूंछें नहीं तराशा, वो हममें से नहीं है।’ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा कि जो अपनी मूंछें नहीं कटवाता, वह हम में से नहीं है।
ऊपरी होंठ पर दोनों कोनों तक, जहां से निचले जबड़े की सीमा शुरू होती है, वही मूंछों की सीमा है। ‘मूंछों को बहुत ज़्यादा छोटा करना, यानि कैंची ट्रिमर वगैरह से इतना बारीक काटना कि वह शेविंग के करीब लगे और कुछ कथनों से यह साबित होता है कि उन्हें बिल्कुल बारीक न काटा जाए बल्कि इस तरह काटा जाए कि होंठों के ऊपर की लाली दिखाई देने लगे। इसलिए, दोनों तरीकों पर अमल किया जा सकता है। बाकी, उस्तरे और ब्लेड से साफ करना भी जायज है, लेकिन ‘खिलाफ-ए-औला’ (बेहतर के खिलाफ) है।’
इस्लाम से पहले अरब की परंपराएं
इस्लाम के उदय से पहले, अरब में मूर्तिपूजक (पेगन) समुदायों में बड़ी मूंछें रखने और दाढ़ी साफ करने का रिवाज था। पैगंबर मोहम्मद ने मुस्लिम समुदाय को इन समुदायों से अलग पहचान देने के लिए दाढ़ी बढ़ाने और मूंछें छोटी करने की सलाह दी। यह एक तरह से धार्मिक और सांस्कृतिक भेद स्थापित करने का प्रयास था।
दाढ़ी और मूंछों की प्रथा सभी मुस्लिम समुदायों में एकसमान नहीं है। भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में मूंछें छोटी करने या साफ करने का चलन अधिक देखा जाता है, जबकि कई अन्य मुस्लिम-बहुल देशों (जैसे तुर्की, मलेशिया, या इंडोनेशिया) में लोग दाढ़ी और मूंछें दोनों रखते हैं। हालांकि यहां पर भी यह सभी मुस्लिमों पर लागू नहीं होता है। यह क्षेत्रीय और सांस्कृतिक प्रभावों को दर्शाता है।
आजकल के युवा रखते हैं मूंछें
आजकल, विशेष रूप से भारत में युवा मुस्लिमों में मूंछें रखने का चलन बढ़ रहा है। कुछ लोग मूंछें रखना पसंद करते हैं ताकि उनकी शैली अधिक सामान्य दिखे।
दाढ़ी की है अनिवार्यता
अधिकांश इस्लामी विद्वानों का मानना है कि दाढ़ी रखना सुन्नत-ए-मुक्कदा (जोरदार सुन्नत) है, जिसे हर मुस्लिम पुरुष को अपनाना चाहिए। कुछ विद्वान इसे वाजिब (अनिवार्य) भी मानते हैं, खासकर हनफी और सलफी विचारधाराओं में इसकी अधिक मान्यता है। हालांकि सभी विद्वान इसे वाजिब नहीं मानते हैं।
मूंछों को लेकर क्या हैं नियम?
मूंछों को लेकर कोई स्पष्ट निषेध (हराम) नहीं है। हदीसों में मूंछों को छोटा करने की सलाह दी गई है, लेकिन इसे पूरी तरह साफ करना अनिवार्य नहीं है। कुछ विद्वानों का कहना है कि मूंछें इतनी छोटी होनी चाहिए कि होंठ दिखाई दें, ताकि खाने-पीने में स्वच्छता बनी रहे।
यह धारणा गलत है कि इस्लाम में मूंछें रखना हराम है। हदीसों में केवल मूंछों को छोटा करने की सलाह दी गई है, न कि उन्हें पूरी तरह निषिद्ध किया गया है।
कश्मीर में ‘मोई-ए-मुकद्दस’
कुछ स्रोतों में दावा किया जाता है कि कश्मीर की हजरतबल मस्जिद में पैगंबर मोहम्मद की कोई पवित्र चीज (‘मोई-ए-मुकद्दस’) रखे गए हैं, और इसीलिए मुस्लिम मूंछें नहीं रखते हैं। हालांकि, इस दावे का कोई ऐतिहासिक या धार्मिक प्रमाण नहीं है, और इसे अधिकांश विद्वान अस्वीकार करते हैं।
विविधता और व्यक्तिगत पसंद
कुछ विद्वानों का कहना है कि मूंछें रखना या न रखना व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है, बशर्ते यह इस्लामी स्वच्छता के मानदंडों के खिलाफ न हो। मिस्र में सलफी समुदाय के लोग अक्सर मूंछें नहीं रखते, जबकि मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य मूंछें और दाढ़ी दोनों रखते हैं।
विद्वानों की राय और मतभेद
इस्लामी विद्वानों में कुछ मतभेद हैं कि मूंछें पूरी तरह से साफ की जाएं या केवल ट्रिम की जाएं। हनफी और हंबली स्कूल ऑफ थॉट मूंछें पूरी तरह से साफ करने की सलाह देते हैं, जबकि शाफई और मालिकी स्कूल ट्रिम करने की सलाह देते हैं। हालांकि, सभी सहमत हैं कि मूंछें लंबी नहीं होनी चाहिए।
दाढ़ी के संबंध में, अधिकांश विद्वान इसे सुन्नत मानते हैं, लेकिन हनफी और सलफी विचारधाराओं में इसे वाजिब (अनिवार्य) माना जाता है। शाफई और मालिकी विचारधाराओं में इसे सुन्नत माना जाता है, जो विद्वानों के बीच मतभेद को दर्शाता है।
क्या सभी मुस्लिम मूंछें नहीं रखते हैं?
कई मुस्लिम पुरुष, विशेष रूप से आधुनिक युवा मूंछें रखते हैं। यह प्रथा क्षेत्र, संस्कृति और व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करती है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी इस्लामिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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