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Religion

दिन में विवाह करना क्यों है शुभ, जानिए रात में क्यों नहीं लेने चाहिए फेरे? क्या कहते हैं शास्त्र

आजकल हम अक्सर देखते हैं कि सनातन धर्म को मानने वाले विवाह रात के समय करते हैं। वहीं, फेरे भी रात में लेते हैं, लेकिन शास्त्रों में ऐसा करना बिल्कुल ही वर्जित माना गया है। शास्त्रों में शुरू से ही दिन के समय विवाह करना का प्रावधान है। सिर्फ हिंदू ही नहीं कई और धर्मों में भी विवाह को दिन के समय करने का प्रावधान है।

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Mohit Tiwari Updated: Jul 23, 2025 15:33
Hindu Marriage
Credit- all pics (pexels)

हिंदू धर्म में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि एक पवित्र संस्कार है जो जीवन के नए अध्याय की शुरुआत करता है। इस संस्कार के लिए समय का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और शास्त्रों में इसके लिए कई नियम बताए गए हैं। परंपरागत रूप से, हिंदू धर्म में दिन के समय विवाह को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। दक्षिण भारत में आज भी विवाह दिन के समय ही होते हैं। वहीं, उत्तर भारत में अब रात के समय शादी का ट्रेंड बन गया है। जबकि शास्त्रों के अनुसार रात के समय फेरे नहीं लेने चाहिए।

क्या कहते हैं शास्त्र?

हिंदू धर्म में विवाह का समय निर्धारित करने के लिए ज्योतिषीय गणनाएं और शास्त्रीय नियम आधार बनते हैं। शास्त्रों में दिन के कुछ खास मुहूर्तों को विवाह के लिए अत्यंत शुभ बताया गया है, क्योंकि ये समय सकारात्मक ऊर्जा और ग्रहों की अनुकूल स्थिति से युक्त होते हैं।

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रामदैवज्ञ द्वारा लिखे गए ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि में विवाह के लिए शुभ समय का वर्णन है। इस ग्रंथ के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त (मध्याह्न के समय, लगभग 11:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक) सभी संस्कारों के लिए अत्यंत शुभ होता है। इस समय सूर्य अपनी उच्च स्थिति में होते हैं, जो सकारात्मकता और पवित्रता के प्रतीक हैं और सभी ग्रहों के राजा है। ग्रंथ में कुछ नक्षत्र जैसे रोहिणी, मृगशिरा, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, और स्वाति को विवाह के लिए अनुकूल बताया गया है। ये नक्षत्र दिन में हों या रात में, उनकी शुभता लग्न की शुद्धता पर निर्भर करती है। दिन में सूर्य की उपस्थिति इन मुहूर्तों को और प्रभावशाली बनाती है।

नारद मुनि से प्राचीन ग्रंथ नारद संहिता में भी विवाह के समय के लिए कुछ खास मुहूर्त, जैसे सूर्योदय के बाद का प्रभात काल और अभिजीत मुहूर्त, को विशेष रूप से शुभ माना गया है। सूर्य की उपस्थिति को सात्विक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, जो विवाह जैसे पवित्र संस्कार को और पवित्र बनाता है। इस ग्रंथ के अनुसार कि गुरु और शुक्र जैसे ग्रहों की शुभ स्थिति विवाह के लिए आवश्यक है।

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आश्वलायन, आपस्तंब, और पारस्कर जैसे गृह्यसूत्र वैदिक ग्रंथ हैं, जो गृहस्थ जीवन के संस्कारों के नियम बताते हैं। आश्वलायन गृह्यसूत्र में विवाह के लिए शुभ समय के चयन की बात कही गई है, जिसमें दिन के मुहूर्तों को प्राथमिकता दी गई है। पारस्कर गृह्यसूत्र में सूर्य के प्रकाश में किए गए संस्कारों को सात्विक और शुभ माना गया है। सूर्य को जीवन और ऊर्जा का स्रोत मानते हुए, ये ग्रंथ दिन में विवाह को वर-वधू के लिए सुख और समृद्धि का प्रतीक बताते हैं।

मनु द्वारा रचित इस धर्मशास्त्र मनुस्मृति में भी विवाह के सामाजिक और धार्मिक नियमों का वर्णन है। मनुस्मृति के तीसरे अध्याय में कहा गया है कि उत्तरायण (जब सूर्य उत्तर दिशा में होते हैं) और शुक्ल पक्ष विवाह के लिए शुभ हैं। ये समय अक्सर दिन के मुहूर्तों के साथ मेल खाते हैं। सूर्य की उपस्थिति को शुभता का प्रतीक माना गया है, जो दिन में विवाह को और शुभ बनाता है।

निर्णयसिंधु और कालमाधव जैसे मध्यकालीन ग्रंथ विवाह के लिए विस्तृत नियम दिए गए हैं। निर्णयसिंधु में गोधूलि लग्न (सूर्यास्त से ठीक पहले का समय) को विवाह के लिए शुभ बताया गया है, क्योंकि यह सूर्य और चंद्रमा के संतुलन का प्रतीक है। कालमाधव में भी दिन के समय के मुहूर्तों को प्राथमिकता दी गई है, खासकर जब गुरु और शुक्र अनुकूल हों।

दिन में विवाह को शुभ मानने के पीछे सूर्य की सात्विक ऊर्जा, शुभ मुहूर्तों की उपलब्धता, और सामाजिक सुविधा जैसे कारण हैं।

क्या कहते हैं विद्वान?

सद्गुरु रितेश्वर महाराज के अनुसार ‘विवाह हमेशा दिन के समय ही करना शुभ होता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार सूर्यास्त के बाद वेद के मंत्र पढ़े नहीं जा सकते हैं। वहीं, लोग अर्द्धरात्रि में विवाह कर रहे हैं। वो काल कुछ और था जब दिन के उजाले में अंग्रेज और मुगल बेटियों का अपहरण कर लेते थे, जिस कारण विवाह रात में होने लगे थे, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है। इस कारण विवाह दिन के समय ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि रात का समय राक्षसों का होता है इस कारण रात के समय फेरे नहीं लेने चाहिए।’

क्यों होने लगे रात में विवाह?

जानकारों की मानें तो भारत में मुगल का राज्य 13वीं से 18वीं शताब्दी तक हुआ। इस दौरान समाज में कई सांस्कृतिक परिवर्तन आए, जिनका प्रभाव विवाह की प्रथाओं पर भी पड़ा। उत्तर भारत, विशेष रूप से राजस्थान, पंजाब, और उत्तर प्रदेश में, रात में विवाह की प्रथा का प्रचलन बढ़ा। इसके पीछे कई कारण थे।

सबसे पहले, सुरक्षा का सवाल था। मुगल काल में आक्रमणों और लूटपाट का खतरा बना रहता था। दिन के समय बड़े समारोह करना जोखिम भरा था, क्योंकि आक्रमणकारी या लुटेरे आसानी से भीड़ को निशाना बना सकते थे। रात में विवाह आयोजित करने से समारोह को गुप्त रखना और सुरक्षा सुनिश्चित करना आसान हो गया।

दूसरा, ज्योतिषीय अनुकूलता ने भी इस प्रथा को बढ़ावा दिया। ज्योतिषियों ने रात के कुछ मुहूर्त, जैसे निशीथ काल (मध्यरात्रि) और प्रदोष काल, को शुभ माना, क्योंकि ये समय ग्रहों और नक्षत्रों की अनुकूल स्थिति के साथ मेल खाते थे। इन मुहूर्तों की उपलब्धता ने रात में विवाह को स्वीकार्य बना दिया। मुगलों का हस्तक्षेत्र दक्षिण भारत पर कम रहा तो दक्षिण में आज भी विवाह दिन के समय ही होता है।

क्या है अन्य धर्मों में विवाह की परंपरा?

मुस्लिम धर्म में विवाह, जिसे निकाह कहा जाता है, एक पवित्र और सादगी भरा अनुष्ठान है। इस्लाम में निकाह के लिए समय का कोई कठोर नियम नहीं है, लेकिन दिन में निकाह करना अधिक प्रचलित है। इसके पीछे धार्मिक और सामाजिक कारण हैं।

हदीस में कहा गया है कि निकाह को सार्वजनिक रूप से और समुदाय की उपस्थिति में करना चाहिए। दिन का समय इस उद्देश्य के लिए सुविधाजनक होता है, क्योंकि लोग आसानी से एकत्र हो सकते हैं।

भारत में मुस्लिम समुदायों में निकाह अक्सर दोपहर या शाम को आयोजित किया जाता है। निकाह के बाद होने वाला वलीमा (भोज) रात में हो सकता है।

ईसाई धर्म में क्या है प्रथा?

ईसाई धर्म में विवाह एक पवित्र संस्कार है, जो अधिकतर चर्च में आयोजित किया जाता है। ईसाई परंपराओं में विवाह समारोह दिन के समय विशेष रूप से सुबह या दोपहर में करना प्रचलित है। इसके पीछे धार्मिक और व्यावहारिक कारण हैं।

बाइबिल में विवाह के समय का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन चर्च की परंपराएं दिन के समय को प्राथमिकता देती हैं। दिन का समय प्रार्थना और सामुदायिक समारोहों के लिए उपयुक्त माना जाता है। लिटर्जिकल कैलेंडर के अनुसार, विवाह अक्सर रविवार की प्रार्थना के बाद या अन्य शुभ दिनों में दिन के समय आयोजित किए जाते हैं। सूर्य के प्रकाश में चर्च में होने वाली प्रार्थनाएं अधिक पवित्र मानी गई हैं।

भारत में, ईसाई विवाह सुबह या दोपहर में चर्च में होते हैं, जिसके बाद रिसेप्शन शाम को हो सकता है। दिन में विवाह करने से मेहमानों के लिए यात्रा और समारोह में शामिल होना सुविधाजनक होता है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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First published on: Jul 23, 2025 03:26 PM

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