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Garud Puran Story: हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद नवजात शिशुओं को जलाया क्यों नहीं जाता?

Garud Puran Story: हिन्दू धर्म में जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके मृत शरीर को जला दिया जाता है। परन्तु गरुड़ पुराण कहता है कि साधु, संन्यासी और नवजात शिशु की अगर मृत्यु हो जाए तो उसके मृत शरीर को जलाना नहीं चाहिए। चलिए जानते हैं गरुड़ पुराण ऐसा क्यों कहता है और इसका रहस्य क्या है?

Edited By : Nishit Mishra | Updated: Sep 29, 2024 17:11
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Why are newborn babies not cremated after death in hinduism
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Garud Puran Story:  हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद अगर किसी का शव जलाया नहीं जाता है तो ऐसा माना जाता है कि मृत आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। लेकिन गरुड़ पुराण कहता है कि अगर किसी नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है तो उसे दफना देने से ही मुक्ति मिल जाती है। चलिए जानते हैं गरुड़ पुराण ऐसा क्यों कहता है?

विष्णु जी और गरुड़ का संवाद

गरुड़ पुराण के मुताबिक एक दिन पक्षीराज गरुड़ के पूछने पर भगवान विष्णु उनसे कहते हैं यदि किसी महिला का गर्भपात हो जाए या दो वर्ष से कम लड़का या लड़की की मृत्यु हो जाए तो उसे जलाने के बजाय जमीन में गड्ढा खोदकर गाड़ देना चाहिए और इससे अधिक उम्र के मनुष्यों की मृत्यु होने पर ही उसके शव जलाना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य जब जन्म लेता है तो वह दो वर्ष तक मोह-माया या दुनियादारी के बारे में कुछ नहीं जानता रहता है। ऐसी स्थिति में  उसके शरीर में विराजमान आत्मा को उस से मोह नहीं होता।

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ऐसे में जब दो वर्ष से कम उम्र का कोई मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो शरीर में मौजूद आत्मा आसानी से उस शरीर का त्याग कर देते हैं। वह आत्मा पुनः उस शरीर में प्रवेश करने की कोशिश भी नहीं करता। हे गरुड़! जैसे-जैसे शरीर बड़ा होने लगता है, वैसे-वैसे शरीर में मौजूद आत्मा को उस शरीर से मोह होने लगता है। शरीर में मौजूद आत्मा मृत्यु के बाद उस शरीर में तब तक प्रवेश करने की कोशिश करती है जब तक मृतक के शव को जला न दिया जाए। इसलिए दो वर्ष से अधिक उम्र के मनुष्यों के शव को जलाना जरूरी है।

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साधु-संतों को भी नहीं जलाया जाता

गरुड़ पुराण में आगे भगवान विष्णु कहते हैं कि मृत्यु के बाद साधु-संतों के मृत शरीर को जलाया नहीं जाता। ऐसा माना जाता है कि साधु-संत तपोबल से दिव्य शक्ति को प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें सम्पूर्ण जगत का ज्ञान हो जाता है। उन्हें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि ये दुनिया एक मिथ्या है और मृत्यु अर्थात इस शरीर का नाश ही परम सत्य है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद वह मोह-माया से मुक्त हो जाते हैं। ऐसे में जब किसी साधु या संत की मृत्यु होती है तो उनके शरीर में मौजूद आत्मा को उस भौतिक शरीर से कोई मोह नहीं रहता और वह तत्काल ही उस शरीर को छोड़ देती है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Nishit Mishra

First published on: Sep 29, 2024 05:11 PM

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