सीता नवमी पर्व एक हिन्दू धार्मिक उत्सव है माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह तिथि श्रीराम नवमी के एक महीने बाद आती है। मां सीता का एक नाम जानकी है, इसलिए इसे जानकी नवमी भी कहा जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं द्वारा श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस साल यह पर्व मई 2025 में मनाया जाएगा। आइए जानते हैं, मई में कब है सीता नवमी और पूजा का मुहूर्त और मां जानकी के जन्म की कथा क्या है?
सीता नवमी का महत्व
सीता नवमी को जानकी नवमी भी कहा जाता है। यह दिन भगवान राम की अर्धांगिनी माता सीता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। माता सीता को पतिव्रता, त्याग और आदर्श नारीत्व की प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से विवाहित जीवन में प्रेम, सामंजस्य और सौहार्द बढ़ता है। साथ ही, सुख-समृद्धि और सदाचार की प्राप्ति होती है।
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कब है सीता नवमी 2025?
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 5 मई 2025, सोमवार को सुबह 7 बजकर 35 मिनट से होगी। इस तिथि का समापन 6 मई 2025, मंगलवार को सुबह 8 बजकर 38 मिनट पर होगा। चूंकि व्रत, त्योहार और पूजा-पाठ में उदयातिथि यानी सूर्योदय के समय विद्यमान तिथि को प्रधानता दी जाती है, इसलिए सीता नवमी व्रत और पूजन 5 मई 2025, सोमवार को ही मनाया जाएगा।
सीता नवमी का मध्याह्न मुहूर्त
साल 2025 में सीता नवमी 5 मई 2025, सोमवार को पूरे श्रद्धा-भाव से मनाया जाएगा। मान्यता है कि माता पंचांग के अनुसार, नवमी तिथि को पूजा के लिए मध्याह्न मुहूर्त इस प्रकार है:
- मध्याह्न पूजा मुहूर्त: सुबह 10:58 AM बजे से 01:38 PM बजे तक
यह अवधि 2 घण्टे 40 मिनट तक व्याप्त रहेगी और इस शुभ समय में पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
पूजा विधि
- सीता नवमी के दिन श्रद्धालु स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर के पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करके भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर रोली, चंदन, अक्षत, फूल, फल, धूप-दीप और मिठाइयों से माता सीता की पूजा करें।
- इसके बाद सीता नवमी व्रत कथा का पाठ करें।
- इसके बाद माता सीता की आरती करें।
आपको बता दें कि सीता नवमी व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और भगवान का ध्यान करते हैं। शाम को पुनः पूजा कर प्रसाद वितरण किया जाता है।
माता सीता के जन्म की कथा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, त्रेता युग मिथिला में एक बार भयंकर सूखा पड़ा। राजा जनक ने इसे समाप्त करने के लिए यज्ञ करवाया और स्वयं हल चलाने लगे। तभी हल की नोक किसी कठोर वस्तु से टकराई। जब मिट्टी हटाई गई, तो वहां एक सोने की डलिया में लिपटी सुंदर कन्या मिली। राजा जनक ने उस कन्या को उठाया, और उसी समय वर्षा भी शुरू हो गई। उन्होंने उस कन्या को ‘सीता’ नाम देकर अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। यह घटना वैशाख शुक्ल नवमी की ही थी, इसलिए इस दिन को सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।