Savitri Satyavan Katha: सावित्री मद्रदेश की राजकुमारी थी। राजा अश्वपति उनके पिता थे। विवाह योग्य होने पर राजा ने सावित्री के लिए एक योग्य वर की बहुत तलाश की, लेकिन कोई उसे सावित्री के लिए योग्य न लगा। तब उन्होंने सावित्री से खुद उसे अपना वर चुनने को कहा। एक दिन गौतम ऋषि के आश्रम में सावित्री ने सत्यवान को देखा, जो जंगल से लकड़ियां लेकर आ रहे थे। सावित्री सत्यवान पर मोहित हो गई और मन ही मन उसे पति मान लिया। सावित्री ने अपनी पसंद राजा अश्वपति को बताई। राजा ने नारद जी से इस विवाह का भविष्य जानना चाहा, तो नारद जी ने बताया कि सत्यवान की आयु केवल एक साल की बची है, फिर उसकी मृत्यु हो जाएगी। राजा ने सावित्री को समझाया कि वह सत्यवान से विवाह का विचार त्याग दे।
सावित्री के उत्तर से निरुत्तर हुए राजा
अपने पिता राजा अश्वपति के आग्रह पर सावित्री ने जो उत्तर दिया, वह सावित्री के चरित्र की श्रेष्ठता और विचार की शुभता को भलीभांति उजागर करता है। सावित्री ने अपने पिता से कहा कि जिस व्यक्ति को उसने अपना पति मान लिया है, अब उसकी आयु चाहे जितनी हो, इससे उसके निर्णय पर फर्क नहीं पड़ता है, वह उन्हीं से विवाह करेगी। इस उत्तर के आगे राजा अश्वपति निरुत्तर हो गए। सावित्री के इस निर्णय ने ही सावित्री और सत्यवान की अनोखी पौराणिक कथा को जन्म दिया।
सावित्री ने इसलिए चुना सत्यवान को पति
सावित्री को पता था कि सत्यवान का जीवन अल्पायु है। शायद कोई और स्त्री होती तो वह अपने निर्णय पर एक बार जरूर पुनर्विचार करती। लेकिन सावित्री ने खुद को सत्यवान की पत्नी और उन्हें अपना पति मान लिया था। इसकी घोषणा उन्होंने अपने पिता के सामने भी कर दिया था। अब विवाह तो केवल कहने भर को एक रस्म मात्र थी। इसलिए सावित्री ने एक पत्नी के कर्तव्य को निभाने के लिए अपना सब कुछ त्याग कर वनवासी सत्यवान से विवाह किया। इसके बाद की निष्ठा और समर्पण की अनोखी कथा तो सभी जानते हैं कि किस प्रकार सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस करवाए।
प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा है सावित्री-सत्यवान कथा
सत्यवान को देखते ही सावित्री को सत्यवान के प्रति आकर्षण और गहरा प्रेम हो गया था। वे सत्यवान की सरलता, ईमानदारी और सदाचार से प्रभावित थीं। उनके पिता द्युमत्सेन भी एक राज्य के राजा थे। लेकिन एक युद्ध में राजा और उनकी पत्नी अंधे हो गए थे और राजपाट हार गए थे। इसके बाद से वे गौतम ऋषि के आश्रम में रहते थे। यहां सत्यवान जंगल से लकड़ियां काटकर अपना गुजारा करते थे और अपने माता-पिता की सेवा करते थे। सत्यवान नीतिमान और कर्मठ व्यक्ति थे। सत्यवान के इन गुणों से सावित्री बहुत प्रभावित हुई थीं और उसने सत्यवान को अपना पति मान लिया।
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