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Religion

Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत पर क्यों पूजते हैं वट वृक्ष? जानें इस महापर्व का गहरा धार्मिक रहस्य

Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत इस साल 26 मई को रखा जाएगा। हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक सुहागन महिला की प्रेम, श्रद्धा और तप की शक्ति का प्रतीक भी है। आइए जानते हैं, इस पावन पर्व के अवसर पर वट वृक्ष की पूजा की जाती है, इसका धार्मिक महत्व क्या है और इसकी पूजा से क्या फल यानी लाभ प्राप्त होते हैं?

Author Edited By : Shyamnandan Updated: May 24, 2025 14:06
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Vat Savitri Vrat 2025: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस वर्ष 2025 में वट सावित्री व्रत 26 मई, सोमवार को रखा जाएगा, क्योंकि अमावस्या तिथि का प्रारंभ इसी दिन दोपहर 12:12 बजे से हो रहा है और समाप्ति 27 मई सुबह 8:32 बजे पर होगी। इस पावन व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए करती हैं। साथ ही, संतान प्राप्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भी यह पर्व अत्यंत फलदायी माना गया है।

वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा

राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया था, जिन्हें कम आयु का श्राप प्राप्त था। जब मृत्यु का दिन आया, तो यमराज उनके प्राण लेने आए। लेकिन सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प, बुद्धिमत्ता और धर्म से यमराज को संतुष्ट कर लिया और अपने पति को जीवनदान दिलवा दिया। यही कारण है कि आज भी महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं, वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और कच्चे धागे से पेड़ को बांधती हैं, ताकि पति का जीवन लंबा, स्वस्थ और सफल रहे।

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क्यों की जाती है वट वृक्ष की पूजा?

वट यानी बरगद का वृक्ष सनातन संस्कृति में अत्यंत पवित्र माना गया है। मान्यता है कि इसके जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव यानी ‘त्रिदेव’ का वास होता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसकी शाखाएं जो नीचे की ओर झुकती हैं, उन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, देवी सावित्री ने वट वृक्ष की छांव में बैठकर अपने तपबल से मृत पति सत्यवान को पुनर्जीवित किया था। उसी स्मृति में वट वृक्ष की पूजा की जाती है।

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व्रत करने की विधि

  • सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
  • वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की थाली में जल, अक्षत, फल, फूल, कच्चा सूत, पान-सुपारी आदि रखें।
  • वट वृक्ष की पूजा करें और परिक्रमा करें और कच्चा सूत पेड़ पर लपेटें।
  • देवी सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें।
  • अंत में व्रत समाप्ति पर ब्राह्मण को भोजन कराएं और सुहाग सामग्री दान करें।

इस व्रत से मिलते हैं ये लाभ

वट सावित्री व्रत को करने से अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं। यह व्रत पति की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

  • इस व्रत के प्रभाव से वैवाहिक जीवन में प्रेम, समर्पण और स्थायित्व बना रहता है।
  • जिन दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति की कामना होती है, उनके लिए यह व्रत विशेष फलदायी होता है, साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि और सौहार्द का वातावरण बना रहता है।
  • मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विधि-विधान से करने वाली महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: May 24, 2025 02:06 PM

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