Lord Ganesha Temple: भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में मंदिरों का विशेष स्थान है। हर मंदिर की अपनी एक कहानी, इतिहास और आस्था से जुड़ा महत्व होता है। इन्हीं में से एक है तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले में स्थित आदि विनायक मंदिर भी है, जो अपनी अनूठी विशेषता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां भगवान गणेश की पूजा उनके परिचित गजमुख स्वरूप में नहीं, बल्कि मानव मुख के रूप में की जाती है। यह मंदिर न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक महत्व का एक जीवंत प्रतीक भी है।
आदि विनायक मंदिर, तमिलनाडु के थिलाथर्पनपुरी के समीप स्थित, 7वीं शताब्दी का एक प्राचीन मंदिर है। इसे तमिलनाडु के सबसे पुराने और पवित्र मंदिरों में गिना जाता है। मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की 5 फुट ऊंची मूर्ति ग्रेनाइट पत्थर से बनी है, जो अपनी शिल्पकला और आध्यात्मिक आभा के लिए जानी जाती है। इस मूर्ति में भगवान गणेश जी को ‘नर मुख विनायक’ के रूप में पूजा जाता है, जिसका अर्थ ‘मानव मुख वाले गणपति’ है।
अधिकतर मंदिरों में होते हैं गजमुख वाले गणेश
इस मंदिर में स्थापित मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत ही यह है कि इसमें गणेश जी का चेहरा मानव जैसा है, जो उनके परंपरागत हाथी जैसे मुख से पूरी तरह अलग है। मूर्ति में गणेश जी की कमर पर नागभरणम (सर्प का आभूषण) शोभायमान है, जो उनकी दिव्य शक्ति और संरक्षण का प्रतीक है। उनके एक हाथ में कुल्हाड़ी या फरसा है, जो जीवन की बाधाओं और अनावश्यक इच्छाओं को नष्ट करने का प्रतीक है।
दूसरे हाथ में मोदक, भक्तों के लिए सुख और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा, मूर्ति में एक रस्सी कठिनाइयों से मुक्ति का प्रतीक है। एक कमल आत्म-ज्ञान, शुद्धता और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है। मंदिर का शांत और सौम्य वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक सुकून प्रदान करता है। मंदिर के आसपास की प्राकृतिक सुंदरता और नदी का किनारा इसे और भी आकर्षक बनाता है।
भगवान शिव ने काटा था गणेश जी का मुख
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म देवी पार्वती ने अपने असीम स्नेह और ममता से किया था। एक बार जब माता पार्वती स्नान करने की तैयारी कर रही थीं, उन्होंने अपने शरीर पर लगे हल्दी के उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उस समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान में लीन थे। माता पार्वती ने गणेश जी को द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया ताकि कोई भी अंदर प्रवेश न कर सके।
जब भगवान शिव वहां पहुंचे, तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि वे अपने पिता को पहचान नहीं पाए। क्रोधित होकर भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काट दिया। माता पार्वती को जब यह बात पता चली, तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हुईं। वे अपने क्रोध से सृष्टि को भस्म करने चल दीं। इसको देखते हुए भगवान शिव को अपनी भूल का एहसास हुआ।
उन्होंने तुरंत देवताओं से कहा कि उत्तर दिशा में मिलने वाले पहले प्राणी का सिर लाया जाए। इस पर भगवान विष्णु स्वयं एक प्राणी का सिर लेने के लिए धरती पर चले गए। उनको सबसे पहले एक हाथी दिखा। वे उसके सिर को ले आए, जिसे भगवान शिव ने गणेश जी के धड़ से जोड़ा और उन्हें इससे भगवान गणेश फिर से जीवित हो गए।
इस घटना के बाद गणेश जी को गजानन या गजमुख के रूप में पूजा जाने लगा, लेकिन आदि विनायक मंदिर में उनकी मानव मुख वाली मूर्ति इस विश्वास को दर्शाती है कि गजमुख मिलने से पहले उनका स्वरूप मानव जैसा था। यही कारण है कि इस मंदिर में उनकी पूजा इस दुर्लभ और अनोखे रूप में की जाती है।
यहां है भगवान गणेश का कटा हुआ सिर!
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काटा, तो वह उत्तराखंड के एक स्थान पर गिरा। यह स्थान आज पाताल भुवनेश्वर गुफा के नाम से जाना जाता है। इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी। यहां गणेश जी को ‘आदि गणेश’ के रूप में पूजा जाता है। भक्तों का मानना है कि भगवान शिव इस गुफा में अपने एक रूप में उपस्थित रहकर अपने पुत्र के कटे सिर की रक्षा करते हैं।
पाताल भुवनेश्वर गुफा अपने रहस्यमयी स्वरूप और प्राकृतिक संरचनाओं के लिए भी प्रसिद्ध है। यह गुफा भक्तों और पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां गणेश जी की प्राचीन मूर्ति और अन्य देवताओं की आकृतियां देखी जा सकती हैं।
पितरों को मिलती है शांति
आदि विनायक मंदिर का एक अन्य महत्व यह है कि यह पितरों की शांति के लिए पूजा का एक प्रमुख केंद्र है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। उस दिन से इसे तिलतर्पणपुरी के नाम से भी जाना जाता है। ‘तिलतर्पण’ शब्द का अर्थ है पितरों को समर्पित और ‘पुरी’ का अर्थ शहर है।
यहां भक्त नदी के किनारे पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं, जबकि धार्मिक अनुष्ठान मंदिर के भीतर संपन्न किए जाते हैं। मंदिर का साधारण स्वरूप इसके आध्यात्मिक महत्व को और भी गहरा करता है। देश-विदेश से भक्त यहां अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के लिए आते हैं।
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