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Rath Yatra 2025: रत्न सिंहासन पर आज लौटेंगे महाप्रभु जगन्नाथ, ओडिशा में मनाया जाएगा रसगुल्ला दिवस, निलाद्री बिजे कब?

Rath Yatra 2025: पुरी में रथयात्रा पर्व का आज अंतिम दिन। महाप्रभु जगन्नाथ,  बड़े ठाकुर बलभद्र और देवी सुभद्रा आज निलाद्री बिजे के बाद अपने रत्न सिंहासन पर विराजमान होंगे। वहीं, आज के दिन ओडिशा में रसगुल्ला दिवस भी मनाया जाएगा। चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

Author Written By: Namrata Mohanty Author Edited By : Namrata Mohanty Updated: Jul 8, 2025 08:18

Rath Yatra 2025: रथयात्रा 2025 के उत्सव का आज अंतिम दिन है। 8 जुलाई रात 10 बजे तक तीनों दारु मूर्तियों को श्रीमंदिर में उनके रतन सिंहासन पर फिर से स्थापित किया जाएगा। बता दें कि भगवान जगन्नाथ हर साल आषाढ़ मास की द्वादशी तिथि पर रथयात्रा के पावन पर्व के लिए अपने घर यानी श्रीमंदिर से बाहर आते हैं। इसके पीछे कई कथाएं शामिल होती हैं, जैसे कि उन्हें अपने भक्तों को दर्शन देने होते हैं, क्योंकि पिछले 15 दिनों से वह बीमार होते हैं और किसी से मिलते नहीं है। एक अन्य कथा के मुताबिक, वे इस तिथि पर अपनी मौसी के घर जाते हैं क्योंकि वे उन्हें ये वादा करते हैं कि माता का प्रेम पाने के लिए वे हर वर्ष उनके मंदिर आएंगे। इस साल रथयात्रा 27 जून को मनाई गई थी, जो अगले दिन भी जारी रही थी। इसके बाद बाहुड़ा रथयात्रा 5 जुलाई को मनाई गई थी।

बाहुड़ा यात्रा में भगवान जगन्नाथ मौसी मंदिर से प्रस्थान कर अपने घर आते हैं। हालांकि, फिलहाल वे मंदिर के मुख्य द्वार सिंह द्वार पर है क्योंकि माता लक्ष्मी अभी उन्हें घर के अंदर आने नहीं देती है। ये पति-पत्नी के बीच होने वाले प्रेम भरे कलह की एक छटा है। कल पूरी में अधर पना नीति हुई थी। इसमें प्रभु जगन्नाथ और दोनों भाई-बहन के रथ पर मिट्टी की हांडियों में दूध, छेना, फलों और मसालों से एक शरबत बनाया जाता है और फिर उन्हें तोड़कर इसे भूत-प्रेत और आत्माओं को समर्पित किया जाता है। आज निलाद्री बिजे और रसगुल्ला दिवस के साथ उत्सव का समापन होगा।

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निलाद्री बिजे क्या है?

रथयात्रा के अंतिम दिन मनाई जाने वाली इस रस्म में भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा 12 दिनों की यात्रा के बाद अपने निवास स्थान पुरी श्रीमंदिर में जाते हैं। इस रस्म में पहांडी जुलूस निकलता है। पहांडी में ओडिशा के प्रमुख और पौराणिक गीत और ध्वनि के साथ उन्हें मंदिर के अंदर ले जाया जाता है। उससे पहले रस्गुल्ला दिवस और कई अन्य रस्में होती है। इनमें रथों पर देवताओं की अंतिम मंगल आलती होगी और शाम की संध्या आलती होगी। चरमाला बंध और श्रृंगार आदि होगा।

आज निलाद्री बिजे में क्या-क्या होगा?

पुरी में आज मूर्तियों को मंदिर में ले जाने से पहले सेवकों द्वारा सिंहासन की सफाई की जाएगी। इसके बाद भगवान को पुष्पांजलि (फूलों की माला) चढ़ाई जाएगी। नीलाद्रि बीज अनुष्ठानों में कई प्रमुख रस्में शामिल होती हैं- महास्नान (भव्य स्नान), रोशा होम (अग्नि अनुष्ठान), मैलामा ( पिछले श्रृंगार को हटाना ), चंदन लगी (चंदन लगाना), सूर्य पूजा, द्वारपाल पूजा, बड़ा सिंह बेशा (भव्य श्रृंगार) और रात्रि पाहुआड़ा (रात्रि विश्राम)।

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 रसगुल्ला दिवस किस समय मनाया जाएगा?

रसगुल्ला दिवस ओडिशा का पर्व है लेकिन इसका संबंध रथयात्रा से है। दरअसल, माता लक्ष्मी और भगवान जगन्नाथ के बीच एक अनोखी परंपरा होती है, जिसमें मां लक्ष्मी जो श्रीमंदिर की मालकिन है, वे प्रभु से नाराज होती है। इसका कारण यह होता है कि प्रभु उन्हें बिना कहे और बिना बोले मौसी के घर इतने दिनों के लिए चले जाते हैं। जब वे बीमार होते हैं, तो भी उनसे भेंट नहीं करते हैं और हेरा पंचमी पर भी मां लक्ष्मी को गुंडिचा मंदिर में प्रवेश नहीं करने देते हैं। बाहुड़ा यात्रा के दिन से ही माता लक्ष्मी सिंहद्वार पर उनसे भेंट करती है लेकिन उन्हें घर के अंदर नहीं आने देती है। बाहुड़ा यात्रा में दोनों के मिलन के समय भगवान जगन्नाथ उन्हें गहने और ओडिशा की मशहूर साड़ी ‘पाटो’ भी भेंट करते हैं लेकिन वे उन्हें फिर भी अंदर नहीं आने देती है।

इसलिए, आज के दिन यानी निलाद्री बिजे के दिन महाप्रभु अंत में माता लक्ष्मी को मनाने के लिए उन्हें रसगुल्ला भेंट करते हैं, जिससे वह प्रसन्न हो जाती है। इस वजह से आज पूरे ओडिशा राज्य में सभी मंदिरों में और मां लक्ष्मी को लोग घरों में भी रसगुल्ला प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। लोग भी एक-दूसरे को रसगुल्ला खिलाते हैं और इस दिन का जश्न मनाते हैं।

कब-कब होंगी ये रस्में?

रसगुल्ला भेंट सुबह 10 बजे होगी। इसके बाद शाम के समय पुष्पांजलि, संध्या आरती के बाद एक-एक कर तीनों मूर्तियों को पहांडी बिजे की धुन पर मंदिर के अंदर ले जाया जाएगा। तीनों मूर्तियों को उनके सिंहासन पर विराजमान कर रात्रि विश्राम होगा। इन सभी रस्मों को रात 11 बजे से पहले संपन्न किया जाएगा। इसके साथ रथयात्रा का पर्व समाप्त होगा। आज के दिन भी लाखों श्रद्धालु भगवान के घर वापसी के साक्षी होंगे।

ये भी पढ़ें- Rath Yatra 2025: क्या है ‘अधर पना’ रस्म? क्यों प्रसाद में नहीं मिलता पुरी में भगवान जगन्नाथ को लगने वाला यह विशेष भोग

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jul 08, 2025 08:08 AM

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