Nag Panchami Katha: नाग पंचमी का त्योहार प्रकृति और जीवों के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस त्योहार के माध्यम से नागों और सर्पों को देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी रक्षा करने का संदेश दिया जाता है। नाग पंचमी पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। इसका एक उद्देश्य उद्देश्य सांपों के प्रति लोगों में व्याप्त भय को दूर करना भी है। यही कारण है कि हर साल भगवान शिव को प्रिय सावन मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह त्योहार मनाया जाता है। आइए जानते हैं, इस त्योहार से जुड़ी एक प्राचीन लेकिन बहुत ही रोचक कथा।
नाग पंचमी की कथा
प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की, बुद्धिमान और सुशील थी, परंतु उसके कोई भाई नहीं था।
एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा। इस पर सभी उसके साथ हो ली और सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक नाग निकल आया, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- “मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।”
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा। तब नाग एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने नाग से कहा, “मैं अभी लौट कर आती हूं, तुम यहां से जाना मत।” यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर नाग से जो वादा किया था, उसे भूल गई।
नागदेव को बनाया भाई
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो वह वहां पहुंची और नाग को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली, “नाग भैया, नमस्कार! मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं।” इस पर नाग ने कहा, “तुम भैया कह चुकी हो, इसलिए तुम्हें छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुम्हें अभी डस लेता।” नाग फिर बोला, “अच्छा, तुम आज से मेरी बहन हुई और मैं तुम्हारा भाई हुआ। तुम्हें जो मांगना हो, मांग लो। वह बोली, “भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तुम मेरे भाई बन गए। मुझे कुछ नहीं चाहिए।”
मानव-रूप में भाई बनकर आए नागदेव
कुछ दिन बीते जाने पर वह नागदेव मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आए और बोले कि “मेरी बहन को मेरे साथ भेज दो।” इस पर सबने कहा, “इसके तो कोई भाई नहीं था?” तो वह बोला, “मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था।”
उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने रास्ते में बताया कि “मैं वहीं नाग हूं, इसलिए तुम डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना।” छोटी बहू ने उसके कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह नागदेव के घर पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
नाग भाई को पिला दिया गर्म दूध
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- “मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तुम अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना।” लेकिन उसे यह बात ध्यान न रही और उसने अपने मुंहबोले भाई को गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर नागदेव की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु नागदेव के समझाने पर चुप हो गई।
तब नागदेव ने कहा, “बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए।” तब नागदेव और उसके माता-पिता ने उसे बहुत-सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-आभूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया।
धन देखकर जल उठीं बहुएं
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने इर्ष्या से कहा, “भाई तो बड़ा धनवान है, तुम्हें तो उससे और भी धन और सोना लाना चाहिए।” नागदेव ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा, “इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए।” तब नागदेव ने झाड़ू भी सोने की लाकर दे दी।
बहन को दिया अद्भुत हार
नागदेव ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली, “सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए।’
राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा, ‘महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो’। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।
बहू के गले में हार, दूसरे के गले में सर्प
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने अपने नाग भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की, “भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए।”
नागदेव ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी। यह देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए।
राजा ने छोटी बहू से पूछा, “तुमने क्या जादू किया है, सच-सच बताओ, अन्यथा मैं तुम्हें दंड दूंगा! छोटी बहू बोली- हे राजन! धृष्टता के लिए क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है।
राजा ने खुश होकर दिया ढेरों उपहार
यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा, “अभी पहनकर दिखाओ और प्रमाण दो।” छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही वह हार हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया। उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत-सी मुद्राएं पुरस्कार में दीं।
छोटी बहू अपने हार और उपहारों सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने इर्ष्या के कारण उसके पति का कान भर दिया कि छोटी बहू को किसी और ने धन दिया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पुछा, ठीक-ठीक बताओ कि यह धन तुम्हें कौन देता है? तब छोटी बहू नागदेव को याद करने लगी।
तब उसी समय नागदेव ने प्रकट होकर कहा, “जो भी मेरी धर्म बहन के आचरण और चरित्र पर संदेह प्रकट करेगा, मैं उसे खा जाउंगा।” यह सुनकर छोटी बहू के पति बहुत प्रसन्न हुए और उसने नाग देवता का बड़ा सत्कार किया। मान्यता है कि उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
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