Mohini Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली मोहिनी एकादशी को अत्यंत पवित्र माना जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन दिन 8 मई को मनाया जाएगा। यह तिथि भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार को समर्पित है, जिन्होंने समुद्र मंथन के दौरान अपनी माया से असुरों को मोहित कर देवताओं को अमृत प्रदान किया था।
इस दिन मोहिनी एकादशी की कथा को पढ़ने का विशेष महत्व माना गया है। वैशाख माह को माघ और कार्तिक की तरह पवित्र माना जाता है, इसलिए इस माह की एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है। शास्त्रों में इसे हजार गायों के दान और अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यदायी बताया गया है।
मोहिनी एकादशी आत्मशुद्धि, संयम और भक्ति के लिए जानी जाती है। यह व्यक्ति को सांसारिक मोह और बंधनों से मुक्त कर परम सत्य की ओर ले जाती है। यह दिन उन लोगों के लिए खास है जो अपने जीवन में कॉन्फिडेंस और इमोशनल बैलेंस चाहते हैं, क्योंकि यह तिथि मन को शांत और दृढ़ बनाती है।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की नगरी थी, जिसमें द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। यहां धनपाल नाम का एक धनी वैश्य रहता था। वह धार्मिक, दयालु और भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हमेशा गरीबों की मदद करता और धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेता। धनपाल के पांच पुत्र थे, जिनका नाम सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि था। जिनमें सबसे छोटा धृष्टबुद्धि था। धृष्टबुद्धि का स्वभाव अपने पिता से बिल्कुल उलट था। वह बुरी संगत में पड़ गया था। वह जुआ, शराब, और अनैतिक कार्यों में लिप्त हो गया था।
पिता ने घर से निकाला
धृष्टबुद्धि ने अपने पिता का धन बेकार के कामों में उड़ा दिया। वह रात-दिन व्यसनों में डूबा रहता और परिवार की इज्जत को ठेस पहुंचाता था। उसकी हरकतों से तंग आकर धनपाल ने उसे कई बार समझाया, लेकिन धृष्टबुद्धि पर कोई असर न हुआ। आखिरकार, परिवार और समाज की मर्यादा को बचाने के लिए धनपाल ने धृष्टबुद्धि को घर से निकाल दिया। अब धृष्टबुद्धि के पास न धन बचा था, न सम्मान बाकी था। वह गांव-गांव भटकने लगा, लेकिन उसकी बुरी आदतों के कारण कोई उसे आश्रय नहीं देता था।
चोरी करने लगा वैश्य पुत्र
इसके बाद उसने चोरी करना शुरू कर दिया, जिसमें वह जब पहली बार पकड़ा गया तो वैश्य पुत्र जानकर उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। जब वह दूसरी बार पकड़ा गया तब उसे राजा के सामने पेश किया गया, जिसके बाद उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में अत्यंत दुख सहने के बाद उसको देश निकाला दे दिया गया।
बन गया बहेलिया
देश से निकाले जाने के बाद वह भूख, प्यास और अपमान से त्रस्त होकर एक जंगल में पहुंच गया। यहां कुछ समय बाद वह बहेलिया बन गया और पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। एक बार वह शिकार की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था तभी जंगल में उसे कौण्डिन्य ऋषि का आश्रम दिखा। उस समय वैशाख माह चल रहा था, और आश्रम में मोहिनी एकादशी की तैयारियां हो रही थीं। ऋषि के शिष्य भगवान विष्णु की पूजा की व्यवस्था कर रहे थे।
धृष्टबुद्धि ने थककर आश्रम में शरण मांगी और कौण्डिन्य ऋषि को अपनी दुखभरी कहानी सुनाई। उसने पापों से मुक्ति और जीवन सुधारने का उपाय पूछा। कौण्डिन्य ऋषि को उसकी हालत देखकर दया आ गई और उन्होंने कहा कि मोहिनी एकादशी का व्रत तुम्हारे सारे पाप नष्ट कर देगा। यह तिथि इतनी शक्तिशाली है कि यह सबसे बड़े पापी को भी मोक्ष का मार्ग दिखा सकती है।
मोहिनी एकादशी का रखा व्रत
धृष्टबुद्धि ने ऋषि की बात मानी और पूरे मन से मोहिनी एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लिया। उसने सुबह स्नान किया, आश्रम में भगवान विष्णु की पूजा में हिस्सा लिया। उसने पूरे दिन फलाहार किया और पूरी श्रद्धा से व्रत पूरा किया। व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप धुल गए। उसका मन शुद्ध हुआ, और उसे अपनी गलतियों का गहरा पश्चाताप हुआ। भगवान विष्णु की कृपा से धृष्टबुद्धि का जीवन पूरी तरह बदल गया। वह एक धर्मी, ईमानदार और सम्मानित व्यक्ति बन गया। समाज में उसकी खोई हुई इज्जत उसे वापस मिल गई, और वह अपने परिवार के साथ सुखी जीवन जीने लगा। अंत में, उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार जो भी व्यक्ति मोहिनी एकादशी के व्रत को करता है और इस दिन धृष्टबुद्धि की कथा को सुनता या पढ़ता है वह जीवन में सुख, सम्मान और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त करता है।
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