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Mahakumbh 2025: कभी महाकुंभ की तैयारी में खर्च होते थे 2 पैसे, अब हो रहा है करोड़ों का खर्चा, जानें कुंभ का इतिहास

Mahakumbh 2025: मुगलों से लेकर अंग्रेजों से भी जुदा महाकुंभ का इतिहास है। इसके अलाव कुंभ में होने वाले खर्च भी समय के साथ बदलें हैं, आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

Edited By : Simran Singh | Updated: Dec 27, 2024 16:24
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Mahakumbh 2025 Once upon a time 2 paise was spent in the preparation of Mahakumbh, now crores are being spent know the history of Kumbh
महा कुंभ का इतिहास

दीपक दुबे

प्रयागराज: Mahakumbh 2025: नए साल के अवसर पर 13 जनवरी से महाकुंभ का प्रारंभ हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी महाकुंभ का दौरा कर तैयारियों का जायजा ले चुके है। 144 साल बाद ऐसा शुभ अवसर आया है जब एक साथ छह शाही स्नान एक साथ होने वाले हैं। महाकुंभ का इतिहास पुराना है। इसका महत्व भी उतना ही पौराणिक है जिसका सीधा संबंध देवताओं से है।

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महाकुंभ का इतिहास मुगलों से लेकर अंग्रेजों से भी जुदा है। समय समय पर ऐसी कई कहानियां व्याप्त है जिसे पढ़कर आप भी चौक जाएंगे। ऐसी ही कहानी महाकुंभ उसके इतिहास और कुंभ में होने वाले खर्च से जुड़ी है, आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

कुंभ का इतिहास

एक वक्त था जब अंग्रेजी हुकूमत थी साल 1942 का कुंभ उस समय के तत्कालीन वायसराय और भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ प्रयागराज शहर आए हुए थे। इस दौरान वायसराय कुंभ क्षेत्र में देश के अलग अलग हिस्सों से आए लाखों श्रद्धालुओं  को अलग-अलग वेशभूषा अपने अलग परिधान में संगम में स्नान करते और धार्मिक गतिविधियों में लीन देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे।

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2 पैसा से लेकर करीब 20 हजार का खर्च

वायसराय ने बड़े आश्चर्य से मालवीय जी से पूछा इतने बड़े भव्य आयोजन के प्रचार प्रसार में बड़ा खर्च हुआ होगा तो मालवीय जी ने जवाब दिया कि सिर्फ दो पैसा। गौरतलब है कि 142 साल पहले साल 1882 में महाकुंभ का आयोजन महज 20.2 हजार रुपये खर्च हुए थे।

महाकुंभ 2025 में करोड़ों रुपये का खर्चा

अगर साल 2025 के इस महाकुंभ की बात की जाए तो 7500 करोड़ रुपए है।  यह अब तक का सबसे बड़े महाकुंभ को लेकर तैयारी का यह आंकड़ा सामने आया है। जहां चालीस करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु इस बार स्नान करने के लिए पहुंचेंगे। अभिलेखागार से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक साल 1882 में मौनी अमावस्या पर 8 लाख श्रद्धालुओं स्नान किया था। उस वक्त भारत की आबादी 22.5 करोड़ थी। इस आयोजन पर 20,288 रुपये खर्च हुए थे। अगर आज के खर्च से तुलना की जाए तो तकरीबन 3.65 करोड़ रुपए होता है।

जबकि साल 1906 के कुंभ में करीब 25 लाख लोग शामिल हुए थे और उस पर 90,000 रुपये (इस वक्त के खर्च के हिसाब से  13.5 करोड़ रुपये होता है ) उस समय देश की आबादी 24 करोड़ थी। वहीं, 1918 के महाकुंभ में करीब 30 लाख लोगों ने संगम में डुबकी लगाई थी, जबकि उस समय की आबादी 25.20 करोड़ थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1.37 लाख रुपये आज के समय के हिसाब से 16.44 करोड़ रुपए खर्च होता है।

आपको बता दें कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने साल 1954 में कुंभ मेले में कल्पवास किया था। उनके लिए अकबर के किले में कल्पवास का आयोजन किया गया था। ये जगह प्रेसिडेंट व्यू के नाम से जानी जाती है।

ये भी पढ़ें- एक बार में 100 साल के कल्पवास का फल, जानें महत्व और प्रयागराज के प्रमुख घाटों की पौराणिक कथाएं

HISTORY

Edited By

Simran Singh

First published on: Dec 27, 2024 04:24 PM

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