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Mahabharat Story: महाभारत युद्ध में कैसे बनता था योद्धाओं का भोजन? कैसे पता चलता था आज कितने योद्धा जीवित बचेंगे?

Mahabharat Story: महाभारत युद्ध में लाखों योद्धाओं ने भाग लिया था। ऐसा माना जाता है कि यह द्वापरयुग का सबसे भयानक युद्ध था। इसे उस समय का विश्वयुद्ध भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाखों योद्धाओं के लिए भोजन कैसे और कौन बनाता था? साथ ही क्या आप ये जानते हैं कि भोजन का प्रबंध करने वाला कैसे जान जाता था कि युद्ध के बाद कितने योद्धा जीवित रह जाएंगे?

Edited By : Nishit Mishra | Oct 19, 2024 22:00
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mahabharata story How was the food of the warriors prepared in the Mahabharata war

Mahabharat Story: ये तो सभी जानते हैं कि महाभारत युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच में हुआ था। इस युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेनाओं ने भाग लिया था। पुराणों के अनुसार एक अक्षौहिणी सेना में दो लाख से ज्यादा योद्धा होते थे। ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध में करीब पचास लाख योद्धाओं ने भाग लिया था। महाभारत का युद्ध अठारह दिनों तक चला था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाखों योद्धाओं के लिए खाना कैसे बनता था? अगर नहीं तो चलिए मिलकर जानते हैं कि महाभारत युद्ध के दौरान खाने का प्रबंध कौन करता था?

महाभारत की कथा

महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध निश्चित हो गया तो, दोनों अपने-अपने पक्ष में योद्धाओं को करने लगे। इसी क्रम में एक दिन उडुपी के राजा वासुदेव कुरुक्षेत्र पहुंचे। उडुपी के राजा को कौरव और पांडव अपने पक्ष में लाने का प्रयत्न करने लगे। लेकिन उडुपी के राजा बहुत दूरदर्शी थे उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा, हे कृष्ण! दोनों ओर से जिसे देखो वह युद्ध के लिए लालायित दिखता है। लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध कौन करेगा? इस पर श्री कृष्ण ने कहा, महाराज आपने बिलकुल सही कहा। आपकी इन बातों से ज्ञात होता है कि आपके पास इससे जुड़ी कोई योजना है। अगर ऐसा है तो कृपया बताएं।

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उडुपी नरेश ने युद्ध में भाग क्यों नहीं लिया?

उसके बाद उडुपी के महाराज ने कहा हे माधव सत्य तो ये है कि भाइयों के बीच हो रहे इस महायुद्ध को मैं उचित नहीं मानता। इसलिए मैं इस युद्ध में भाग नहीं लेना चाहता। किन्तु इस युद्ध को अब टाला भी नहीं जा सकता। इसलिए मेरी ये इच्छा है कि मैं अपनी पूरी सेना के साथ इस युद्ध में भाग ले रहे लाखों सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध करूं। उनकी बातें सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले महाराज आपका विचार अति उत्तम है। इस युद्ध में करीब पचास लाख योद्धा भाग लेंगे और अगर आप जैसा राजा उनके भोजन का प्रबंधन देखेगा तो, हम सभी उस ओर से निश्चिन्त रहेंगे।

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वैसे भी मुझे पता है इस विशाल सेना के लिए आप और भीम सेन ही भोजन का प्रबंध कर सकते हैं। किन्तु भीमसेन इस युद्ध से दूर नहीं रह सकते। इसलिए मेरी आप से प्रार्थना है कि आप इस युद्ध में भोजन का भार संभालिए। उसके बाद उडुपी के राजा ने भोजन का भार संभाल लिया।

भोजन कभी बर्बाद नहीं हुआ

युद्ध के पहले दिन उन्होंने सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध किया। उनकी कुशलता ऐसी थी कि दिन के अंत तक भोजन का एक भी दाना बर्बाद नहीं होता था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए योद्धाओं की संख्या भी कम होती गई। दोनों और के योद्धा यह देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे कि, हर दिन के अंत तक उडुपी नरेश केवल उतने ही लोगों के लिए भोजन बनवाते थे जितने वास्तव में जीवित रहते थे। किसी को भी ये समझ नहीं आता था कि आखिर उन्हें वास्तव में कैसे पता चल जाता है कि, आज युद्ध में कितने योद्धा मृत्यु को प्राप्त होंगे, ताकि उस आधार पर भोजन की व्यवस्था करवा सकें।

युधिष्ठिर के प्रश्न

फिर अठाहरवें दिन जब दुर्योधन की मृत्यु हो गई तो पांडवों ने इस युद्ध को जीत लिया। उसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। राज बनने के कुछ दिनों बाद सभी पांडव, श्री कृष्ण और उडुपी नरेश वासुदेव एक कक्ष में बैठे हुए थे। तभी युधिष्ठिर ने उडुपी नरेश से पूछा, हे महाराज! सभी राजा आपकी प्रशंसा कर रहे हैं। सभी ये जानना चाहते हैं कि आपने युद्ध के दौरान भोजन का प्रबंधन ऐसी कुशलता से कैसे किया? आप कैसे जान जाते थे कि आज युद्ध में कितने सैनिक मरने वाले हैं? तब उडुपी नरेश वासुदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, सम्राट आपने जो इस युद्ध में विजय पायी है उसका श्रेय किसे देंगें?

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तब युधिष्ठिर ने कहा, माधव के अतिरिक्त इसका श्रेय और किसी को जा ही नहीं सकता। अगर माधव न होते तो हमारे लिए कौरव सेना को परास्त करना असंभव था। फिर उडुपी नरेश ने कहा, हे महाराज! आप जिसे मेरा चमत्कार कह रहे हैं वो भी माधव का ही प्रताप है। माधव की कृपा से ही मैं जान जाता था कि, किस दिन युद्ध में कितने योद्धा वीरगति को प्राप्त होने वाले हैं? ऐसा सुनकर वहां उपस्थित सारे लोग हैरान हो गए। फिर युधिष्ठिर ने पूछा, माधव की सहायता से आप कैसे जान जाते थे कि युद्ध में कितने योद्धा किस दिन मरने वाले हैं?

कैसे पता चलता था मरने वालों की संख्या?

उसके बाद उडुपी नरेश बोले, हे धर्मराज ! युद्ध के बाद श्री कृष्ण प्रतिदिन रात्रि को मूंगफली खाते थे। मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिनकर मूंगफली रखता था। फिर उनके खाने के बाद मैं गिनती करता था कि श्री कृष्ण ने कितनी मूंगफली खाई है। वे जितनी मूंगफली खाते थे उसके ठीक हजार गुणा सैनिक और योद्धा अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे। अर्थात यदि वो सौ मूंगफली खाते थे तो मैं समझ जाता था अगले दिन एक लाख योद्धा, युद्ध में मारे जाएंगे। उसी अनुपात में मैं अगले दिन कम भोजन बनवाता था। यही कारण था कि कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं हुआ।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है

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Edited By

Nishit Mishra

First published on: Oct 19, 2024 10:00 PM

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