Vishnu Puran Story: धर्मग्रंथों में कलियुग को एक श्रापित युग कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि कलयुग में जन्म लेने वाले मनुष्य सबसे ज्यादा अधर्म करते हैं। बांकी युगों की तरह इस युग में भगवान तप करने से नहीं मिलते। कलियुग में धर्म अपने एक पैर पर खड़ा होता है। कहा जाता है कि कलियुग जब अपने चरम पर होगा हो मनुष्य धर्म का सम्मान करना छोड़ देंगे। कलिपुरुष नाम का राक्षस मनुष्यों को अपने वश में कर लेगा। फिर भी विष्णु पुराण में महर्षि व्यास ने कलियुग को चारों युगों में सबसे उत्तम बताया है। आइए इसका क्या कारण है विस्तार से जानते हैं।
विष्णु पुराण की कथा
विष्णु पुराण के छठे अंश में वर्णित कथा के अनुसार एक दिन महर्षि व्यास, गंगा नदी में स्नान कर रहे थे। तभी कुछ ऋषि और मुनि वहां पहुंचे। उन्होंने देखा कि व्यास जी नदी में डुबकी लगाकर ध्यान कर रहे हैं। ये देखकर सभी ऋषि-मुनि गण वही एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। फिर कुछ समय बाद जब महर्षि व्यास ध्यान से उठकर खड़े हुए तो कहने लगे युगों में कलयुग, वर्णों में शूद्र और इंसानों में स्त्री श्रेष्ठ है। ऐसा कहकर उन्होंने जल में फिर से एक गोता लगाया।
फिर कुछ समय बाद जल से बाहर निकलकर बोले, शूद्र तुम श्रेष्ठ हो,फिर जल में गोता लगाया और बाहर आकर बोले स्त्रियां ही साधु हैं। इस लोक में स्त्रियों से ज्यादा धन्य कोई नहीं है। गंगा तट पर बैठे ऋषियों ने जब यह सुना तो उन सभी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। वे सभी आपस में बात करने लगे कि उन्होंने अब तक तो सुना था कि युगों में कलियुग सबसे श्रापित युग है। जातियों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है। फिर महर्षि व्यास ऐसा क्यों कह रहे हैं। तब उनमें से एक ऋषि ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर केवल व्यास जी ही दे सकते हैं।
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ऋषियों के सवाल
फिर कुछ देर के बाद स्नान करने के बाद महर्षि व्यास उन सभी ऋषि-मुनियों के पास पहुंचे। व्यास जी ने उन सभी से यहां आने का कारण पूछा। ऋषियों ने कहा हे महर्षि! हम लोग तो आपके पास कुछ प्रश्नो का उत्तर खोजने आए थे, किन्तु इस समय उन बातों को जाने दीजिए। हमें आप कृपया कर यह बताइए कि युगों में कलयुग, जातियों में शूद्र और इंसानों में स्त्रियां कैसे श्रेष्ठ हैं। आप जैसे महर्षि कुछ भी व्यर्थ नहीं कहते? मुनियों के इस प्रकार पूछ्ने पर व्यास जी ने हंसते हुए जवाब दिया हे मुनियों! मैंने जो इसे बार-बार श्रेष्ठ कहा था, इसके पीछे का कारण भी सुनिए।
शूद्रों को क्यों कहा श्रेष्ठ?
उसके बाद महर्षि व्यास बोले,अब शूद्र क्यों श्रेष्ठ है यह सुनिए। अन्य जातियों को पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए वेदाध्ययन करना पड़ता है। फिर स्वधर्माचरण से उपार्जित धन के द्वारा विधि पूर्वक यज्ञ करने पड़ते हैं। इसमें भी व्यर्थ वार्तालाप, व्यर्थ भोजन और व्यर्थ यज्ञ उनके पतन के कारण होते हैं, इसलिए उन्हें सदा संयमी रहना आवश्यक है। सभी कर्मों में अनुचित करने से उन्हें दोष लगता है। यहां तक कि भोजन और जल आदि भी वे अपने इच्छानुसार नहीं भोग सकते। क्योंकि उन्हें सम्पूर्ण कार्यों में परतंत्रता रहती है। इस प्रकार वे अत्यंत क्लेश से पुण्य लोकों को प्राप्त करते हैं। किन्तु जिसे केवल पाक यज्ञ का ही अधिकार है, वह शूद्र इनकी सेवा करके ही सद्गति को प्राप्त कर लेता है। इसलिए मैंने शूद्रों को जातियों में श्रेष्ठ कहा है।
स्त्रियां साधु क्यों हैं?
आगे महर्षि व्यास कहते हैं पुरुषों को अपने धर्मानुकूल प्राप्त किये हुए धन से ही, सुपात्र को दान और विधि पूर्वक यज्ञ करना चाहिए। इस धन के उपार्जन तथा रक्षण में महान क्लेश होता है और उसको अनुचित कार्य मे लगाने से भी पुरुषों को कष्ट भोगना पड़ता है। इस प्रकार पुरुषगण ऐसे ही अन्य कष्ट साध्य उपायों से क्रमशः प्राजापत्य आदि शुभ लोकों को प्राप्त करते हैं। किंतु स्त्रियां तो तन, मन, वचन से पति की सेवा करने से ही उनकी हितकारिणी होकर, पति के समान शुभ लोकों को अनायास ही प्राप्त कर लेती हैं, जो कि पुरुषों को अत्यन्त परिश्रम से मिलते हैं। स्त्रियां धन्य भी इसलिए हैं कि वह अपने पति के हर पुण्य का भागिदार होती हैं। पति यदि कोई शुभ कार्य करता है तो वह उसके बिना अधूरी मानी जाती हैं। इसीलिये मैंने यह कहा था कि स्त्रियां साधु हैं।
कलियुग क्यों है सर्वश्रेष्ठ युग?
महर्षि व्यास ने कहा हे ऋषिगण, जो फल सतयुग में दस वर्ष तपस्या, ब्रह्मचर्य और जप आदि करने से मिलता है, उसे मनुष्य त्रेतायुग में एक वर्ष, द्वापरयुग में एक मास और कलियुग में केवल एक दिन-रात में प्राप्त कर लेता है। इस कारण ही मैंने कलियुग को श्रेष्ठ कहा है। जो फल सतयुग में ध्यान, त्रेता में यज्ञ और द्वापर में देवार्चन करने से प्राप्त होता है, वही कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण का नाम कीर्तन करने से मिल जाता है। कलियुग में थोड़े से परिश्रम से ही पुरुष को महान धर्म की प्राप्ति हो जाती है, इसलिए मैं कलियुग को सर्वश्रेष्ठ कहता हूं।
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