दीपक दुबे,
प्रयागराज: Maha Kumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ की तैयारी पूरी हो चुकी है। कई साधु-संत और श्रद्धालुओं के कदम कुंभ जाने के लिए बढ़ चले हैं। महाकुंभ से संबंधित कई किस्से-कहानियां है जिनके बारे में जाना जा रहा है। इनमें से एक किस्सा बिहार से जुड़ा हुआ है। देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए सागर मंथन की कहानी तो आपने सुनी होगी उसी से जुड़ा एक किस्सा अमृत के लिए देवताओं की रणनीति से जुड़ा हुआ है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे महाकुंभ का बिहार के मंदार पर्वत से रिश्ता जुड़ा हुआ है।
समुद्र मंथन के लिए देवराज को मनाया
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने देव राज को सलाह दी थी जिसके बाद देवराज को समुद्र मंथन के लिए मना लिया और फिर त्रिलोक में इसकी जानकारी पहुंची और फिर देवताओं ने मृतक मंथन के लिए तैयारी शुरू की। मगर देवताओं के मन में सवाल उठा कि समुद्र इतना विशाल है और कैसे मंथन होगा। ऐसे में देवताओं के सवाल का जवाब देते हुए विष्णु जी उपाय बताया।
विशाल मंदार पर्वत को चुना गया
विष्णु जी ने बिहार के विशाल मंदार पर्वत को इस कार्य के लिए चुना लेकिन अब सवाल था कि इतने बड़े विशाल पर्वत को मथने के लिए भारी भरकम रस्सी कितनी बड़ी होनी चाहिए फिर भगवान शिव शंकर ने इस समस्या का निवारण किया जहां उनके गले में लिप्त कंठहार नागराज वासुकी ने इस विशाल मथानी के लिए रस्सी बनना स्वीकार कर लिया। इसके बाद सागर मंथन की तैयारी पूर्ण की गई।
नारद मुनि ने चली विशेष चाल
इसके बाद भी एक सबसे बड़ा सवाल था कि नागवासुकी बड़ा ही क्रोधित होता है और ऐसे में वो अगर दंश मारेगा तो खतरनाक होगा क्योंकि उसका जहर काफी विषैला होता है। नारद मुनि ने देवताओं के लिए एक विशेष चाल रची जिसके बाद असुर और देवताओं तय दिन और समय पर समुद्र के किनारे पहुंचे। यहां एक बड़ी समस्या सामने आ गई कि समुद्र मंथन के समय विशाल मंदार पहाड़ की रगड़ से वासुकी नाग को जब खरोंच लगेगी तो वो कई बार गुस्से में दंश भी सकता था। पर्वत को अगर नाग वासुकी के जरिए मंथन किया जाएगा तो उसके मुंह को पकड़ना खतरे से खाली नहीं होगा।
नारद मुनि की रणनीति में फंसे असुर
नारद मुनि ने रणनीति के तहत असुरों के आने से पहले ही सभी देवता वासुकी के मुख की ओर खड़े हो जाएं। देवता नारद मुनि की बातों की गंभीरता को समझ नहीं सके। जब असुर वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि देवता पहले से ही वासुकी नाग के मुख की ओर खड़े हैं। फिर उन्होंने इसका विरोध किया और कहा कि इन देवताओं ने हमें हमेशा असुरों को कम समझा है और देवता अपने आप को शीर्ष पर मानते हैं। इसीलिए देवताओं को नाग वासुकी का मुख पकड़ने को दिया गया है और असुरों को इसकी पूंछ। आखिर असुर ही क्यों वासुकी के पैर क्यों पकड़े?
नारद मुनि के सिखाए अनुसार देवता भी इस बात पर अड़े रहे कि वासुकी नाग का मुख तो वही पकड़ेंगे। पूंछ का भाग असुरों को पकड़ना होगा। फिर बड़ी देर तक तर्क-वितर्क चलने के बाद जब देवताओं और असुरों के बीच समाधान निकलता नहीं नजर आया तब जाकर नारद मुनि ने मध्यस्थता करते हुए देवराज इंद्र को समझाने के अंदाज में बोला कि हमारा लक्ष्य अमृत पाना है। आप थोड़ा बड़प्पन दिखाइए। असुरों को कह दीजिए कि वो वासुकी का मुख पकड़ें। देवराज इंद्र ने ऐलान किया लेकिन देवताओं ने असुरों से हार नहीं मानी, लेकिन देवर्षि नारद की बात के सम्मान में वो और अन्य देवता पूंछ की ओर होने के लिए तैयार हो गए।
असुरों को सागर मंथन के दौरान कई बार नागराज वासुकी के मुंह से निकलने वाले जहर का सामना करना पड़ा। देवता इससे बच गए। जब देवताओं और असुरों के बीच ये तय हो गया कि देवता वासुकी का पैर और असुर वासुकी का मुंह पकड़ लिया।मंदार पर्वत को जैसे ही सागर में उतारा गया वो स्थिर नहीं रह सका और इसके तल की ओर डूबता ही चला गया। अब जब तक पर्वत स्थिर न हो तो सागर मंथन कैसे हो? इसके समाधान के लिए देवताओं ने फिर से भगवान विष्णु को पुकारा और फिर भगवान शंकर के निवेदन के बाद विष्णु जी आए।
भगवान विष्णु ने लिया कूर्म अवतार
भगवान विष्णु ने इसी दौरान एक प्रमुख अवतार लिया। भगवान विष्णु एक विशाल कछुए के रूप में आए और उन्होंने मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया। इस तरह पर्वत स्थिर हो सका और सागर तल में डूबने से बच गया। भगवान विष्णु का यह अवतार उनके 10 अवतारों में से दूसरा अवतर है, जिसे कूर्म नाम से जाना जाता है।
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18 पुराणों में से एक कूर्म पुराण
कूर्म अवतार जल और स्थलीय प्राणियों के बीच की एक कड़ी है। कूर्म अवतर एक कछुए के रूप में था जो जल और स्थल दोनों जगह रह सकते हैं। बता दें कि 18 पुराणों में से एक कूर्म पुराण है जो कूर्म अवतार के नाम पर है। 10 में से पहला अवतार मत्स्य यानी मछली का था और ये पूर्ण विकसित जलीय प्राणी है।
बिहार का मंदार पर्वत
पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस मंदार पर्वत का उपयोग सागर मंथन के दौरान मथनी के रूप में किया गया था, वह आज के समय में बिहार राज्य के बांका जिले में स्थित है और इसे मंदार हिल के नाम से जाना जाता है। यह भागलपुर से लगभग 45 किमी दूर है। गौरतलब है कि इस मंदार पर्वत के चारों तरफ आज भी वासुकी नाग के रगड़ के निशान देखने को मिलते हैं। ये वो ही निशान माने जाते हैं जो सागर मंथन के समय वासुकी नाग की रगड़ के कारण लगे थे।
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