Lohri 2025: लोहड़ी न केवल उत्तर भारत का एक सबसे लोकप्रिय त्योहार है, बल्कि यह नई फसल की खुशी और आपसी भाईचारे का बेजोड़ प्रतीक है। सर्द जनवरी की ठंडी हवाओं के बीच, 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार सर्दी को अलविदा कहने और नई फसल का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। प्रचलित रिवाजों के अनुसार, इस खास मौके पर तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां बांटी जाती हैं। यह परंपरा न केवल रिश्तों को मजबूत करती है, बल्कि जीवन मे मिठास लाती हैं और एकता और सौहार्द का संदेश भी देती है। लोग अलाव के चारों ओर इकट्ठा होते हैं, तिल-गुड़ चढ़ाकर फसल की अच्छी पैदावार के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं और भविष्य में भी समृद्धि की कामना करते हैं।
तिलोहरी से बनी है लोहड़ी
‘लोहड़ी’ शब्द तिल और गुड़ के महत्व को दर्शाता है। इसे ‘तिलोहरी’ से लिया गया माना जाता है, जो ‘तिल’ और ‘रोहरी’ (गुड़) के मेल से बना है। ये दोनों चीज़ें न सिर्फ स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि सर्दियों में शरीर को गर्म रखने में भी मदद करती हैं। लोहड़ी के मौके पर तिलगुल, रेवड़ी, गजक और मूंगफली जैसी मिठाइयों का आनंद लिया जाता है। साथ ही, अलाव के पास नाच-गाने और लोकगीतों से माहौल और भी खुशनुमा हो जाता है। लोहड़ी हमें सिखाती है कि जब हम साथ आते हैं और अपनी खुशियां साझा करते हैं, तो जीवन और भी खूबसूरत हो जाता है।
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इसलिए बेहद खास है तिल-गुड़
लोहड़ी में तिल और गुड़ का उपयोग केवल स्वाद के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि इसका गहरा सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व है। भारतीय लोककथाओं में तिल के बीज दिव्य माने गएहैं। मान्यता है कि तिल की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु के माथे से निकली पवित्र पसीने की बूंदों से हुई थी। सूर्य की साधना करने वाले साधकों का मानना है कि तिल के बीजों में सूर्य की ऊर्जा निहित होती है, जो लोहड़ी के त्योहार के लिए इन्हें खास बनाती है। यह त्योहार सूर्य के उत्तरायण यानी उत्तर दिशा की यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है।
प्रकृति के साथ जुड़ाव का संदेश
लोहड़ी और मकर संक्रांति का हर व्यंजन और रस्म हमें प्रकृति और संस्कृति से जुड़ने का संदेश देता है। जहां रेवड़ी छोटी कुरकुरी गोल जैसी मिठाई है, वहीं गजक पिसे हुए तिल और गुड़ से बने मीठी पट्टियां हैं, सर्दियों में गर्माहट देने के साथ ये स्वादिष्ट भी होते हैं। ये मिठाइयां सिर्फ खाने के लिए नहीं होतीं हैं, बल्कि इन्हें शुभ प्रसाद के रूप में लोहड़ी की अग्नि में अर्पित भी किया जाता है। इन मिठाइयों के साथ मूंगफली और गेहूं जैसी मौसमी फसलें भी अलाव में चढ़ाई जाती हैं। यह परंपरा आभार व्यक्त करने और प्रकृति के साथ हमारे जुड़ाव को सम्मान देने का प्रतीक है।
तिल-गुड़ से जुड़ी आयुर्वेदिक मान्यताएं
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, तिल-गुड़ का कॉम्बिनेशन समय और मौसम के लिय विशेष रूप से उपयुक्त है। यह त्योहार शीत ऋतु यानी विकत सर्दियों के मौसम में पड़ता है। ऐसे समय में आयुर्वेद में शरीर को आंतरिक गर्मी प्रदान करने और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए गर्म, पौष्टिक और मीठे भोजन का सेवन करने की सलाह दी गई है। तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां इस आवश्यकता को पूरी तरह से पूरा करता है, कठोर सर्दियों के दौरान गर्मी और पोषण दोनों प्रदान करता है।
मीठे बोलों के लिए तिल-गुड़ की मिठाई
तिल-गुड़ का महत्व केवल पंजाब या उत्तर भारत की सीमाओं तक नहीं बल्कि इससे परे भी फैला हुआ है। पूरे भारत में, क्षेत्रीय मकर संक्रांति समारोहों में समान संयोजन अलग-अलग नामों और रूपों में दिखाई देते हैं। महाराष्ट्र में, लोग “तिलगुल घ्या, गोड़-गोड़ बोला” (“यह मिठाई लें, अच्छे और दयालु शब्द बोलें”) के सार्थक वाक्यांश के साथ तिलगुल (तिल-गुड़ मिठाई) का आदान-प्रदान करते हैं। कर्नाटक में भी इसी भावना को प्रतिबिंबित करते हुए “एल्लु बेल्ला थिंदु ओल्ले मथादी” कहा जाता है, जो इसी तरह से तिल और गुड़ खाने के साथ-साथ बोली में मिठास और दयालुता से बात करने के लिए प्रोत्साहित करता है। जिस प्रकार तिल और गुड़ सर्दियों के दौरान गर्मी और पोषण प्रदान करता है, उसी प्रकार इन मिठाइयों को बांटने से रिश्ते-नाते और सामाजिक बंधनों को पोषण मिलता है और सामुदायिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
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