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Budh Purnima: 1200 साल तक राख में दबा रहा दुन‍िया का सबसे बड़ा बौद्ध मंद‍िर

Buddhist Temple Indonesia: हिंदू पंचांग के अनुसार, आज बुद्ध पूर्णिमा का पर्व है। आज भगवान बुद्ध की पूजा विधि-विधान से की जा रही है। बता दें कि लोग बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध मंदिर में जाकर स्मरण करते हैं। आज इस खबर में भगवान बुद्ध के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जो ज्वालामुखी की राख से दबा हुआ दुनिया का पहला मंदिर है।

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: May 23, 2024 12:32
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Borobudur Temple

Buddhist Temple Indonesia: वैदिक पंचांग के अनुसार, आज बुद्ध पूर्णिमा का पर्व है। आज भगवान बुद्ध के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है। जी हां दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर इंडोनेशिया के जावा में स्थित है। भगवान बुद्ध का यह मंदिर बोरोबुदुर नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में कराया गया था। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण शैलेन्द्र राजवंश ने कराया था। यह बौद्ध मंदिर ऊंची पहाड़ियों पर बना हुआ है। लेकिन एक खास बात यह है कि कई साल तक मंदिर को ज्वालामुखी की राख और जंगलों से ढका रहा। मान्यता है कि यह मंदिर लगभग 1200 साल तक ज्वलामुखी की राख में दबा रहा। तो इस खबर में मंदिर के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में विस्तार से जानने वाले हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

बोरोबुदुर मंदिर को 1970 के दशक में रिस्टोर किया गया है। मान्यता है कि इंडोनेशिया में प्राचीन मंदिरों को चंडी के नाम से जाना जाता है। इसलिए बोरोबुदुर मंदिर को भी चंडी बोरोबुदुर मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर है।

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किसने कराया था मंदिर का निर्माण

कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 778 और 850 ई. के बीच हुआ था। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण शैलेन्द्र राजवंश द्वार कराया गया है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब मंदिर का खोज हुआ इससे पहले कई वर्षों तक ज्वालामुखी राख के नीचे दबा रहा था। साथ ही जंगलों के बीच में भी छिपा रहा। इस मंदिर का खोज एक अंग्रेज लेफ्टिनेंट गवर्नर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स ने 1814 ई. में की थी। कहा जाता है कि जब एक बार लेफ्टिनेंट गवर्नर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स दौरे पर गए थे तब उन्हें एक गांव के पास जंगल में एक बड़े से स्मारक को देखा।

यूनेस्को ने की थी आर्थिक मदद

इसके बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स के कहने पर डच इंजीनियर एचसी कॉर्नेलियस ने मंदिर को सन 1834 ई. में बाहर निकाला। उसके बाद 1842 के में मंदिर के स्तूप को खोजा गया है। उसके बाद 1973 में यूनेस्को ने मंदिर को बेहतरीन बनाने के लिए आर्थिक मदद की थी। इसके बाद से ही बोरोबुदुर मंदिर पूजा स्थल के रूप में बदल गया है।

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बोरोबुदुर मंदिर की बनावट

बोरोबुदुर मंदिर आर्किटेक्चर का जीता-जागता नमूना है। इस मंदिर को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया गया है जिसे देखकर लोग सम्मोहित हो जाते हैं। बोरोबुदुर मंदिर को एक बड़े स्तूप के रूप में बनाया गया है। बोरोबुदुर मंदिर को ऊपर से देखने के बाद यह एक विशाल तांत्रिक बौद्ध मंडल के रूप में देखा जाता है। बोरोबुदुर मंदिर की नींव वर्गाकार है। मंदिर की नींव एक तरफ से 118 मीटर चौड़ी है। साथ ही मंदिर के अंदर एक गोलाकार प्लैटफॉर्म भी बना हुआ है। जिसके चारों ओर 72 ओपनवर्क स्तूप हैं। बोरोबुदुर मंदिर के 72 स्तूप पर भगवान बुद्ध की मूर्ति लगी हुई है।

मंदिर की खासियत

बता दें कि मंदिर में भगवान बुद्ध की कुल 504 मूर्तियां मौजूद है साथ ही 2672 पैनल भी है। बोरोबुदुर मंदिर के प्रमुख स्तूप की ऊंचाई 115 फीट है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में लगभग 20 लाख क्यूबिक फीट ग्रे ज्वालामुखी पत्थर का प्रयोग किया गया था। बता दें कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन इंडोनेशिया और देश दुनिया के लोग यहां पूजा-पाठ करने के लिए आते रहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा पर इंडोनेशिया में राष्ट्रीय छुट्टी मनाया जाता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

HISTORY

Written By

Raghvendra Tiwari

First published on: May 23, 2024 12:32 PM

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